सुप्रीम कोर्ट के 50वें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के पूर्वजों के पास अपनी जमीन थी। वह खेती-बाड़ी किया करते थे। लेकिन महाराष्ट्र सरकार के एक कानून से सब बदल गया। पूरे परिवार को अपना पेशा बदलना पड़ा। कई को विस्थापित होना पड़ा।
द वीक की अंजुली मथाई को दिए एक इंटरव्यू में सीजेआई चंद्रचूड़ ने बताया है, “हमारे पास अपनी संपत्ति थी। मेरे दादाजी से पहले, मेरा परिवार मुख्यतः कृषि पर निर्भर था। लेकिन महाराष्ट्र कृषि भूमि (सीलिंग और होल्डिंग्स) अधिनियम के बाद परिवार ने अपनी जमीन खो दी। अंततः हर किसी को जीवन यापन के लिए किसी पेशे पर निर्भर रहना पड़ा। मेरे पिता ने अपने चाचा और दादा की राह पर चलकर कानून के पेशे को अपनाया। इस तरह परिवार धीरे-धीरे वकालत में आ गया। मेरे कुछ चाचाओं ने डॉक्टरी की पढ़ाई की।”
पूजा घर में परदादी
जस्टिस चंद्रचूड़ बताते हैं कि उनके परिवार की महिलाएं सशक्त रही हैं। वह बताते हैं, “मेरी परदादी अपने नौ बच्चों के साथ गांव से पुणे आईं। उन्होंने अपने गहने गिरवी रख दिए ताकि उनके बच्चे उच्च शिक्षा हासिल कर सकें। हमारे परिवार में बहुत मजबूत महिलाओं की परंपरा रही है। हम सभी परिवार में उन महिलाओं का सम्मान करने लगे हैं जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक रही हैं। मेरे पूजा घर में अभी भी परदादी की तस्वीर है, जिनके सामने मैं हर सुबह सिर झुकता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि वह एक ऐसी व्यक्ति थीं, जो परिवार को बड़े शहर (पुणे) में ले आईं। उनकी ही वजह से परिवार की कृषि पर निर्भरता कम होती गई और घरवाले शिक्षा की राह पर निकल पड़े।” बाद में अपनी आजीविका के लिए डीवाई चंद्रचूड़ के माता-पिता मुंबई में बस गए।
मुंबई में मुश्किल थी जिंदगी
शुरुआत में मुंबई जैसे बड़े शहर में डीवाई चंद्रचूड़ के माता-पिता की जिंदगी में कठिनाइयों से भरी थी। उनके पास पारिवारिक सहयोग बहुत कम था। जस्टिस चंद्रचूड़ बताते हैं, “माता-पिता मुंबई के एक छोटे से मकान में रहते थे। मेरी मां पास के नल पर कपड़े धोने जाती थीं। हालांकि मेरे पिता ने एक वकील के रूप में बहुत अच्छा काम किया। उन्हें हमेशा इस बात का हमेशा था कि वह अपने दम पर सफल हुए।”
अंग्रेजी स्कूल में जाना बड़ी बात थी
डीवाई चंद्रचूड़ के पिता का नाम वाईवी चंद्रचूड़ था। वह भारत के 16वें सीजेआई थे। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तौर पर उनका कार्यकाल अब तक सबसे लंबा कार्यकाल रहा है। मां प्रभा प्रशिक्षित शास्त्रीय संगीतकार थीं। अपनी परवरिश के बारे में बताते हुए डीवाई चंद्रचूड़ कहते हैं, “माता-पिता हमें अच्छी शिक्षा देना चाहते थे। जब मैं स्कूल गया तो वह हमारे माता-पिता की परवरिश से बहुत अलग था। मैं और मेरी बहन एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल में गए, जो हमारे परिवार में एक नई बात थी। मेरे माता-पिता दोनों मराठी माध्यम के स्कूलों में गए। उन्होंने जो भी अंग्रेजी सीखी वह कक्षा सात या आठ के बाद ही सीखी। मुंबई के एक अंग्रेजी स्कूल में जाना घर से बिल्कुल अलग सांस्कृतिक अनुभव था। घर हमेशा हमारी पारिवारिक संस्कृति और परंपराओं से जुड़ा रहा है।”