सोवियत संघ के पूर्व राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोफ का मंगलवार को 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 20वीं सदी के सबसे अधिक प्रभावशाली राजनीतिक शख्सियतों में से एक गोर्बाचोफ को शीत युद्ध समाप्त करने श्रेय दिया जाता है। लेकिन साथ ही सोवियत संघ के विघटन का सूत्रधार भी माना जाता है।

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मिखाइल सोवियत संघ के 8वें और आखिरी राष्ट्रपति थे। 1985 से 1991 के बीच मिखाइल ने सोवियत-भारत संबंधों को मजबूत करना भरपूर प्रयास किया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने दो बार भारत का दौरा किया – पहली बार 1986 और दूसरी बार 1988 में।

गोर्बाचोफ को तत्कालीन संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के साथ ऐतिहासिक परमाणु हथियार समझौते पर बातचीत के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

पहली भारत यात्रा – 1986

पहली यात्रा में गोर्बाचोफ 110 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत आए थे। तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। उनकी चार दिवसीय यात्रा ऐसे समय में हुई है जब भारत चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ अपनी सीमाओं पर भारी सुरक्षा चिंताओं से निपट रहा था। भारत के लिए यह यात्रा विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसने अमेरिका के साथ पाकिस्तान की बढ़ती नजदीकियों का मुकाबला करने का प्रयास किया था। गोर्बाचोफ की यह यात्रा इसलिए भी ऐतिहासिक थी क्योंकि सोवियत संघ में शीर्ष पद ग्रहण करने के बाद उन्होंने पहली बार किसी एशियाई देश का दौरा किया था।

दोनों देशों की वार्ता के बाद जारी “दिल्ली घोषणापत्र” में व्यापक सहयोग का उल्लेख मिलता है। घोषणापत्र में परमाणु हथियार मुक्त और अहिंसक दुनिया के लिए भारत और सोवियत संघ की प्रतिबद्धता के संकल्प का भी जिक्र मिलता है। राजीव गांधी ने गोर्बाचोफ के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, “हम आपको अपने बीच पाकर खुश हैं।” गोर्बाचोफ ने दिल्ली में मीडिया ब्रीफिंग में कहा, “हम अपनी विदेश नीति में ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे भारत के हितों को नुकसान पहुंचे।”

सोवियत नेता के रूप में गोर्बाचोफ ने भारत की सैन्य जरूरतों को पूरा करने में भी मदद किया। यूएसएसआर ने अपने कुछ करीबी सहयोगियों से भी पहले भारत को टी-72 टैंक दिया

दूसरी भारत यात्रा- 1988

साल 1988 में गोर्बाचोफ भारत की अपनी दूसरी यात्रा पर आए। तब गोर्बाचोफ और गांधी ने “दिल्ली घोषणा” के कार्यान्वयन की समीक्षा की और रक्षा, अंतरिक्ष और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को और मजबूत करने का संकल्प लिया।