मल्लिकार्जुन खड़गे अब सोनिया गांधी की जगह कांग्रेस के नए अध्यक्ष बने हैं। सोनिया गांधी जब पार्टी की अध्यक्ष बनी थीं तब उनके सामने ठीक ऐसा ही कठिन रास्ता और चुनौती थी, जैसी अब 80 वर्षीय खड़गे के सामने है। सोनिया गांधी ने यह चुनौती साल 2004 में पार्टी को सत्ता में लौटाकर पार की थी, लेकिन अब सवाल यह है कि क्या खड़गे भी कुछ ऐसा कर पाएंगे ?
सोनिया गांधी के सामने क्या चुनौतियां थीं?
1998 में सोनिया गांधी जब कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनी थीं तब उन्होंने शपथ लेते हुए कहा था कि मैं कोई उद्धारकर्ता नहीं हूं क्योंकि आप में से कुछ लोग ऐसा विश्वास कर रहे होंगे। हमें अपनी अपेक्षाओं में यथार्थवादी होना चाहिए। हमारी पार्टी का पुनरुद्धार एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया होने जा रही है, जिसमें हम में से हर एक की ईमानदारी से कड़ी मेहनत शामिल होनी चाहिए। आपको बता दें कि इससे पहले 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया ने राजनीति में आने से इंकार कर दिया था।
कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने 14 मार्च 1998 को एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी को पद से हटने के लिए कहा था। इसके बाद सोनिया गांधी को कमान दी गई थी। उस वक़्त पार्टी 1996 और 1998 की चुनावी हार से जूझ रही थी। नेतृत्व का संकट था। सोनिया को पार्टी के भीतर जान फूंकने और चुनौतियों से निकलने में छह साल लग गए थे।
खड़गे ने संभाली कांग्रेस की कमान, देखें ये वीडियो
1998 में जब सोनिया ने सत्ता संभाली थी, तब कांग्रेस केवल तीन राज्यों – मध्य प्रदेश, ओडिशा और मिजोरम में सत्ता में थी, जिसमें दिग्विजय सिंह, जेबी पटनायक और ललथनहावला मुख्यमंत्री थे। पार्टी के पास लोकसभा में 141 सांसद मौजूद थे।
सोनिया गांधी ने 1998 में कहा था “मैं अपनी पार्टी के इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर इस पद पर आई हूं, संसद में हमारी संख्या कम है, मतदाताओं के बीच हमारा समर्थन कम हो गया है, आदिवासियों, दलितों और अल्पसंख्यकों सहित मतदाताओं के कुछ वर्ग हमसे दूर हो गए हैं। हमारे सामने देश की राजनीति में अपना केंद्रीय स्थान खोने का खतरा है।
खड़गे कैसे पाएंगे पार, क्या हैं चुनौतियां ?
अब जब खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभाली है तो उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं – नरेंद्र मोदी के रूप में आजादी के बाद से अब तक कांग्रेस ने सबसे बड़ी चुनौती का सामना किया है, लेकिन अब आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और यहां तक कि एआईएमआईएम जैसे राजनीतिक दल भी कांग्रेस को चुनौती दे रहे हैं। पार्टी अब सिर्फ दो राज्यों मे सत्ता में है, राजस्थान और छत्तीसगढ़। ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव खड़गे के लिए पहली परीक्षा की तरह देखे जाएंगे।
पार्टी का पूरा ध्यान राहुल के नेतृत्व वाली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को सफल बनाने पर केंद्रित है, आने वाले दिनों में यह यात्रा ऐसे राज्यों में प्रवेश करेगी जहां पार्टी का सफाया हो चुका है। इस यात्रा से हटकर खड़गे के सामने उन राज्यों में पार्टी को मजबूत करने की चुनौती होगी, जहां राहुल गांधी यात्रा नहीं करेंगे। उदाहरण के लिए, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल, ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस दशकों से सत्ता से बाहर है और इसे लेकर ज्यादा गंभीर भी दिखाई नहीं देती। ऐसे में इन राज्यों में कांग्रेस की वापसी खड़गे के लिए एक चुनौती होगी।