रूस और अमेरिका, दोनों ही दशकों से भारत के लिए अहम रणनीतिक साझेदार रहे हैं। मौजूदा वैश्विक हालात ने इस सवाल को और तीखा कर दिया है कि भारत के लिए किसके साथ रहना ज्यादा फायदेमंद है? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने के चलते भारत पर अतिरिक्त 25 फीसद का शुल्क लगा दिया है। रूस के साथ भारत के रिश्ते पुराने और भरोसेमंद रहे हैं। रक्षा सौदों से लेकर ऊर्जा आपूर्ति तक रूस, भारत का अहम साझेदार रहा है।

स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के मुताबिक 2019 से 2023 के बीच रूस से होने वाला हथियार आयात 36 फीसद का था। वहींं हाल के सालों में रूस से आने वाले सस्ते कच्चे तेल ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ी राहत दी है। दूसरी तरफ, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। साल 2024-25 में दोनों देशों के बीच 131.84 बिलियन डालर का व्यापार हुआ। वहीं, उच्च तकनीक वाले हथियार से लेकर स्वच्छ ऊर्जा तक के क्षेत्र में अमेरिका पर भारत की निर्भरता बढ़ी है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते टकराव में भारत के लिए किसका साथ फायदेमंद रहेगा?

आर्थिक नजरिए से नफा-नुकसान

भारत अपनी कुल जरूरत का करीब 88 फीसद तेल आयात करता है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के कुल तेल आयात का लगभग 35 फीसद हिस्सा रूस से आया, जबकि वित्त वर्ष 2018 में यह केवल 1.3 फीसद ही था। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाए। उसके बाद वह सस्ते दामों पर तेल बेच रहा है, जिससे भारत को फायदा पहुंच रहा है।

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सर्च ग्रुप ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (जीटीआरआइ) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का मानना है कि रूस से सस्ता तेल खरीदकर भारत सालाना दस बिलियन डालर की बचत कर रहा है। वे कहते हैं, वहीं दूसरी तरफ भारत का अमेरिका के साथ करीब 41 बिलियन डालर का ट्रेड सरप्लस (निर्यात ज्यादा, आयात कम) है। हम करीब 87 बिलियन डालर का सामान अमेरिका को दे रहे हैं। अजय श्रीवास्तव कहते हैं,अगर ट्रंप का 50 फीसद शुल्क बना रहता है तो भारत के निर्यात में 50 बिलियन डालर तक की गिरावट आ सकती है।

ऐसी ही बात ‘द इमेज इंडिया इंस्टीट्यूट’ के अध्यक्ष राबिंद्र सचदेव भी करते हैं। उनका मानना है, अमेरिकी शुल्क का एक फीसद, करीब एक बिलियन के बराबर है। अगर 50 फीसद शुल्क ट्रंप लगाते हैं तो भारत को करीब 50 बिलियन डालर का नुकसान होगा। सचदेव कहते हैं, ना सिर्फ पैसा बल्कि भारत में बड़े पैमाने पर नौकरियां भी जा सकती है। शुल्क बढ़ने पर सामान अमेरिका कम जाएगा और भारत में व्यापार पर असर पड़ेगा और नौकरियां जाएंगी।

भारत के साथ दोस्ती

विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि सिर्फ आर्थिक नजरिए से दो देशों के बीच फैसले नहीं लिए जाते हैं, बल्कि भू-राजनीति, कूटनीति और राष्ट्रीय हितों को भी तरजीह दी जाती है। निकोर एसोसिएट्स की अर्थशास्त्री मिताली निकोर का मानना है कि भारत को ट्रंप के दबाव में आकर फैसला नहीं लेना चाहिए। वहीं अजय श्रीवास्तव का मानना है कि ट्रंप के दबाव में भारत, रूस से रिश्ते खराब नहीं कर सकता है। वे कहते हैं, इतिहास हमें बताता है कि संकट के समय में अमेरिका की बजाय रूस ने भारत की मदद की है।

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में रूस ने भारत को सैन्य हथियार के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष लिया था। वहीं अमेरिका ने खुले तौर पर पाकिस्तान का समर्थन किया और हिंद महासागर में भारत के खिलाफ अपना 7वां बेड़ा भेजा। 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद रूस ने भारत को हथियार आपूर्ति जारी रखी। ये ऐसा वक्त था जब पश्चिमी देश, भारत पर अलग-अलग पाबंदियां लग रहे थे। अजय श्रीवास्तव कहते हैं, भारत और अमेरिका के बीच में भरोसे का भी सवाल है। यह जरूरी नहीं है कि अगर भारत, रूस से तेल खरीदना बंद कर दे, तो अमेरिका अपने 25 फीसद अतिरिक्त शुल्क को हटा देगा।

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‘द इमेज इंडिया’ इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष राबिंद्र सचदेव ने बताया कि अमेरिकी शुल्क का एक फीसद, करीब एक बिलियन के बराबर है। अगर 50 फीसद शुल्क ट्रंप लगाते हैं तो भारत को करीब 50 बिलियन डालर का नुकसान होगा। इससे ना सिर्फ आर्थिक नुकसान बल्कि भारत में बड़े पैमाने पर नौकरियां भी जा सकती है। शुल्क बढ़ने पर सामान अमेरिका कम जाएगा और भारत में व्यापार पर असर पड़ेगा और नौकरियां जाएंगी।

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (जीटीआरआइ) के प्रमुख अजय श्रीवास्तव ने बताया कि ट्रंप के दबाव में भारत, रूस से रिश्ते खराब नहीं कर सकता है। इतिहास हमें बताता है कि संकट के समय में अमेरिका की बजाय रूस ने भारत की मदद की है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में रूस ने भारत को सैन्य हथियार के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष लिया था। वहीं अमेरिका ने खुले तौर पर पाकिस्तान का समर्थन किया।

संतुलन बनाने की जरूरत

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में दो या अधिक बड़े सैन्य या राजनीतिक गुटों में से भारत किसी एक का हिस्सा नहीं रहा है। भारत ने स्वतंत्र और निष्पक्ष रुख रखा है। अजय श्रीवास्तव कहते हैं, सवाल है कि रूस से कब तक भारत को सस्ता तेल मिलता रहेगा? तेल बहुत मामूली मामला है। राबिंद्र सचदेव कहते हैं, ना सिर्फ भारत के लिए अमेरिका जरूरी है, बल्कि अमेरिका भी भारत के बिना कुछ नहीं कर सकता। चीन उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

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भारत को अपने व्यापार को मजबूत करने की जरूरत है। सरकार को छोटे व्यापारियों का भी साथ देना चाहिए, ताकि वे ‘मेक इन इंडिया‘ को मजबूत कर पाएं। भारत सालाना 25 हजार करोड़ का झींगा अमेरिका को भेजता है, लेकिन अब भारत ने यूके के साथ समझौता किया है जिसके बाद भारत झींगे यूके भेज पाएगा।