मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलने के बाद मुख्यमंत्री के रूप में मोहन यादव का नाम आगे कर भाजपा ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था। अब मोहन यादव न सिर्फ मध्य प्रदेश की कमान संभाल रहे हैं, बल्कि पार्टी उनका उपयोग बिहार और उत्तर प्रदेश में भी कर रही है। मोहन यादव के जरिए भाजपा यादव समुदाय तक अपनी पहुंच बनाने की कोशिश कर रही है।
एक महीने से भी कम समय में यूपी की अपनी दूसरी यात्रा में मध्य प्रदेश के सीएम ने लखनऊ में “यादव महाकुंभ” को संबोधित किया और भीड़ से कहा कि उन्हें “यदुवंशी (कृष्ण के वंश से)” होने पर गर्व होना चाहिए। मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मामले में याचिकाकर्ता मनीष यादव ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था।
यादवों को लेकर भाजपा का क्या है प्लान?
कार्यक्रम के दौरान दिए गए मैसेज से पता चलता है कि भाजपा की रणनीति उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के यादव वोट बैंक को तोड़ना है।
कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर कटाक्ष करते हुए कहा कि “यदुवंशियों” को केवल “एक परिवार” के रूप में नहीं, बल्कि एक समुदाय के रूप में समृद्ध होने का अधिकार है। मोहन यादव ने लखनऊ में भीड़ से कहा, “हमें गर्व है कि हम श्री कृष्ण से जुड़े वंश से आते हैं।”
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भीड़ को बताया कि उन्होंने अपने राज्य में कृष्ण से जुड़े “तीर्थ क्षेत्र” को विकसित करने पर काम शुरू कर दिया है। यूपी के साथ अपने संबंध पर जोर देते हुए मोहन यादव ने भीड़ को याद दिलाया कि उनका “ससुराल” यूपी में है और दशकों पहले उनके पूर्वज आजमगढ़ से मध्य प्रदेश चले गए थे। उन्होंने राज्य में वापस आते रहने का भी वादा किया। उन्होंने कहा, “मैं आपसे मिलता रहूंगा… किसी को इससे कोई समस्या हो तो मुझे फर्क नहीं पड़ता।”
कार्यक्रम से पहले ‘यादव महाकुंभ’ के आयोजक मनीष यादव ने अखिलेश पर निशाना साधते हुए कहा कि मुट्ठी भर क्षेत्रों में समुदाय के कुछ चुनिंदा सदस्यों को सपा शासन के तहत लाभ हुआ।
भाजपा के सूत्रों ने कहा कि सत्तारूढ़ दल ने यादव चेहरों की पहचान की है। इसमें वर्तमान और पूर्व विधायक और समुदाय में प्रभाव रखने वाले कुछ सांसद भी शामिल हैं। इन चेहरों से भाजपा राज्य भर में प्रचार करवाएगी। भाजपा अपनी योजना के मुताबिक, यादवों को राज्य के एक परिवार की छत्रछाया से बाहर आने के लिए कहेगी।
विपक्ष के यादवों की कैसी है तैयारी?
मोहन यादव के दौरों पर प्रतिक्रिया देते हुए अखिलेश यादव ने कहा, “ये पहले भी होता रहा है, लेकिन ये प्लान कभी सफल नहीं होते।” राज्य में कांग्रेस के संगठन सचिव अनिल यादव ने “यादव महाकुंभ” को महज चुनावी नाटक बताया। समुदाय को “नफरत का जहर” फैलाने वालों से सावधान रहने के लिए कहते हुए, कांग्रेस नेता ने पूछा कि ‘ये यादव कहां थे’ जब यूपी में यादव समुदाय के लोग अपराध का शिकार हो रहे थे।
सपा और कांग्रेस के सूत्रों ने कहा कि उनकी पार्टी कृष्ण के नाम पर यादवों तक पहुंचने की भाजपा की कोशिशों पर नजर रख रही है। एक विपक्षी नेता ने कहा, “हर कोई जानता है कि ये चुनावी रणनीति है और भाजपा नेता 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान समुदाय को ‘गुंडा’ कहकर निशाना बना रहे थे। लेकिन हमें डर है कि वे पहले की तरह फिर से ध्रुवीकरण करने की कोशिश करेंगे। हम समुदाय से कहेंगे कि वे उनकी रणनीति से अवगत रहें और उनके झांसे में न आएं।”
बता दें कि यूपी में यादव सपा का मुख्य मतदाता आधार रहे हैं, बिहार में वे सबसे बड़ा जाति समूह हैं और राजद के प्रति वफादार रहे हैं। जनवरी में भाजपा द्वारा अनौपचारिक रूप से समर्थित एक मंच ने पटना के एक कार्यक्रम में मोहन यादव को सम्मानित किया था।
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के साथ-साथ अपने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के एजेंडे के कारण कम से कम कुछ यादव वोट हासिल करने में कामयाब देखा गया था। लेकिन पार्टी अब उन यादव परिवारों के प्रभाव को कम करना चाहती है जो बड़े पैमाने पर लोहियावादी राजनीति के पक्ष में हैं। यहां तक कि अगर लोकसभा में यादवों का एक वर्ग भाजपा में चला जाता है, तो भी इसका प्रभाव बहुत बड़ा होगा क्योंकि भाजपा के पास पहले से ही अन्य समूहों के बीच महत्वपूर्ण बढ़त है।