BJP CM candidate Delhi elections: दिल्ली के दंगल में आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे पर पूरी ताकत लगा दी है कि चुनाव में बीजेपी का सीएम चेहरा कौन है? आम आदमी पार्टी पानी, बिजली, सड़क शिक्षा के क्षेत्र में उसकी सरकार के द्वारा किए गए कामों को लेकर तो लोगों के बीच जा ही रही है लेकिन इस सवाल को भी वह जोर-शोर से उठा रही है कि बीजेपी के पास दिल्ली में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं है।

दिल्ली की राजनीति में राजमहल बनाम शीशमहल, कालकाजी सीट से बीजेपी के उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी के बयानों को लेकर अच्छा-खासा हंगामा हो चुका है।

सवाल यह उठता है कि पिछले कुछ चुनाव में अक्सर (2020 को छोड़कर) मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने वाली बीजेपी इस बार ऐसा करने से क्यों हिचक रही है? बता दें कि दिल्ली में 5 फरवरी को वोट डाले जाएंगे और 8 फरवरी को नतीजों का ऐलान होगा।

आम आदमी पार्टी के सीएम के चेहरे को लेकर सवाल पूछने पर बीजेपी के नेता यही जवाब देते हैं कि उनकी पार्टी में कोई भी कार्यकर्ता मुख्यमंत्री का चेहरा बन सकता है।

दिल्ली में बीजेपी, AAP और कांग्रेस को कितना नुकसान पहुंचाएंगे ओवैसी-मायावती? इस बड़ी रणनीति के साथ उतर रहे सियासी अखाड़े में 

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दिल्ली चुनाव में किस ओर जाएंगे मुस्लिम-दलित मतदाता। (Source-PTI)

दिल्ली में पहली बार 1993 में विधानसभा के चुनाव हुए थे और तब से अब तक बीजेपी की ओर से कौन-कौन मुख्यमंत्री बने और किस-किस को पार्टी ने चेहरा बनाया, आईए इस बारे में थोड़ा बातचीत करते हैं।

पांच साल में बनाए तीन मुख्यमंत्री

1993 में बीजेपी ने दिल्ली में अपनी सरकार बनाई और सबसे पहले उसने मदनलाल खुराना को मुख्यमंत्री बनाया था। लेकिन खुराना अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और बीच में ही साहिब सिंह वर्मा को पार्टी ने मुख्यमंत्री की कमान सौंप दी। 1998 के विधानसभा चुनाव से ठीक महीने पहले ही बीजेपी ने साहिब सिंह वर्मा को भी हटा दिया और वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन पार्टी का यह दांव नहीं चला और 1998 के विधानसभा चुनाव में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने यहां सरकार बनाई। तब सुषमा स्वराज पार्टी का सीएम चेहरा थीं लेकिन पार्टी चुनाव हार गई।

खुराना-मल्होत्रा पर जताया भरोसा लेकिन नहीं हुआ फायदा

2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मदनलाल खुराना को बतौर सीएम फेस आगे किया लेकिन शीला दीक्षित के सामने पार्टी को फिर से हार का सामना करना पड़ा। 2008 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अपने सीनियर नेता विजय कुमार मल्होत्रा को मुख्यमंत्री बनाया। मल्होत्रा दिल्ली के पंजाबी समुदाय में जाने-पहचाने चेहरे थे लेकिन वह भी शीला दीक्षित के सामने असरदार साबित नहीं हुए और बीजेपी इस बार भी जीत दर्ज नहीं कर सकी।

दिल्ली में नई रणनीति के साथ मैदान में उतर रही कांग्रेस, AAP-BJP को कितनी सीटों पर दे पाएगी टक्कर?

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दिल्ली में पिछले दो चुनाव में नहीं खुला था कांग्रेस का खाता। (Source-ANI/PTI)

डॉ. हर्षवर्धन के नेतृत्व में सिर्फ 4 सीटों से चूकी

अब आया 2013 का विधानसभा चुनाव। इस चुनाव में बीजेपी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को सीएम का चेहरा बनाया। पार्टी को ऐसी उम्मीद थी कि डॉक्टर हर्षवर्धन के सियासी अनुभव की वजह से वह दिल्ली का चुनाव जीत सकती है। यह वह साल था जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपना पहला चुनाव लड़ रही थी और लोकपाल आंदोलन के जरिए उसने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का एक रोडमैप लोगों के सामने रखा था।

इस चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला लेकिन बीजेपी 32 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। 70 सीटों वाली दिल्ली की विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 36 है। ऐसे में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई लेकिन यह सरकार सिर्फ 49 दिन ही चल सकी क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।

केजरीवाल और आतिशी को उनके गढ़ में घेरने के लिए पूरी ताकत लगा रही बीजेपी और कांग्रेस, क्या इससे AAP को नुकसान होगा?

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दिल्ली में रोमांचक हुआ चुनावी मुकाबला। (Source-PTI)

किरण बेदी को बनाया चेहरा, हुआ बड़ा नुकसान

केजरीवाल के इस्तीफा देने के बाद 2015 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। आम आदमी पार्टी के पास अरविंद केजरीवाल सीएम के चेहरे के रूप में थे। बीजेपी एक नई रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरी और चर्चित आईपीएस अफसर किरण बेदी को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया लेकिन पार्टी का यह दांव भी बुरी तरह फ्लॉप हो गया। इस चुनाव में किरण बेदी खुद उस कृष्णा नगर की सीट से चुनाव हार गईं, जहां से डॉक्टर हर्षवर्धन चुनाव जीतते थे। बीजेपी को दिल्ली में तब सिर्फ तीन सीटें मिली थी।

इसके बाद आया 2020 का विधानसभा चुनाव। पिछले कुछ चुनाव से मिल रही लगातार हार को देखते हुए बीजेपी ने इस बार बिना सीएम चेहरे के ही मैदान में उतरने का फैसला किया। पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे रखकर वोट मांगे लेकिन पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ हालांकि उसकी सीटों का आंकड़ा 3 से बढ़कर 8 हो गया।

कौन करेगा केजरीवाल का मुकाबला?

इस बार भी बीजेपी 2020 के विधानसभा चुनाव की तरह ही बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के चुनाव लड़ रही है। ऐसे में जब आम आदमी पार्टी ने उस पर बड़ा दबाव बना दिया है कि वह अपना सीएम का चेहरा बताए तो निश्चित रूप से बीजेपी के लिए इस सवाल का जवाब देना मुश्किल साबित हो रहा है। चूंकि पार्टी लंबे वक्त से सत्ता से बाहर है इसलिए उसके पास कोई बड़ा चेहरा दिल्ली की राजनीति के लिए नहीं दिखाई देता जो केजरीवाल का मुकाबला कर सके।

देखना होगा कि पार्टी को क्या चुनाव में बिना सीएम चेहरे के उतरने का कोई फायदा मिलेगा? दिल्ली में बीजेपी उसे 1998 से लगातार मिल रही हार के इस क्रम को तोड़ना चाहती है जबकि 2014, 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में वह यहां सभी सातों लोकसभा सीटें जीत चुकी है लेकिन इसके बाद भी उसके लिए पिछले दो विधानसभा चुनाव से दहाई के आंकड़े तक पहुंचना भी मुश्किल हो रहा है।

देखना होगा कि क्या इस बार भी बिना सीएम चेहरे के चुनाव लड़ रही बीजेपी आम आदमी पार्टी को हरा पाएगी?

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