BJP Foundation Day: बीजेपी की स्थापना 6 अप्रैल, 1980 को हुई थी और आज पार्टी अपना 45वां स्थापना दिवस मना रही है। केंद्र की एनडीए सरकार की अगुवाई कर रही बीजेपी कैसे बनी, इसका नाम कैसे पड़ा, भारतीय जनसंघ क्या है, इसके पीछे एक लंबी कहानी है। आइए, इतिहास के पन्नों से इसके जवाब खोजते हैं।

बात शुरू करते हैं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा लगाए गए आपातकाल से। देश में आपातकाल 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 तक चला। आपातकाल खत्म होने के बाद विपक्षी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का फैसला किया। उस समय देश की राजनीति में सात राष्ट्रीय दल थे।

इसमें से चार दलों- कांग्रेस (ओ), भारतीय जनसंघ (बीजेएस), सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय लोक दल (बीएलडी) ने मिलकर जनता पार्टी बनाई और कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी जैसे कुछ संगठन भी इसमें शामिल हो गए और इसे जनता पार्टी का नाम दिया गया। 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी ने सरकार बनाई लेकिन पहले मोरारजी देसाई और फिर चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी।

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वक्फ बिल पर सियासी रार। (Source-Jansatta)

आरएसएस के कार्यक्रमों में भाग लेने पर आपत्ति

जनता पार्टी और इसकी सरकार को कई तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ा। सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि जनता पार्टी में शामिल भारतीय जनसंघ के नेता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेते थे जबकि जनता पार्टी के कई बड़े नेता ऐसा नहीं चाहते थे।

जनता पार्टी के गठन के बाद दिग्गज समाजवादी नेता मधु लिमये ने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी से इसे लेकर आपत्ति जताई थी लेकिन भारतीय जनसंघ और इसके नेताओं के लिए ऐसा करना मुश्किल था क्योंकि वे खुद को आरएसएस से अलग नहीं कर सकते थे। लेकिन क्यों, इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है।

भारतीय जनसंघ कैसे बना?

हुआ यह था कि 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस के भीतर इस बात को लेकर मंथन चल रहा था कि राजनीति में हिस्सा लिया जाए या राजनीतिक दल का गठन किया जाए। आखिरकार श्यामा प्रसाद मुखर्जी और आरएसएस के कुछ प्रचारकों ने भारतीय जनसंघ का गठन किया क्योंकि आरएसएस खुद राजनीति में भाग नहीं लेना चाहता था। हालांकि उस वक्त भी आरएसएस में प्रचारकों का एक तबका जिसमें प्रोफेसर राजेंद्र सिंह, बालासाहेब देवरस, नानाजी देशमुख, दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी शामिल थे, ये सभी चाहते थे कि आरएसएस को सीधे तौर पर राजनीति में हिस्सा लेना चाहिए लेकिन संघ के तत्कालीन सर संघचालक एमएस गोलवलकर ने इससे इनकार कर दिया था।

अक्टूबर, 1951 में जब भारतीय जनसंघ का गठन हुआ तब आरएसएस के कई प्रचारक इसमें शामिल हुए थे।

बहरहाल, फिर पुरानी बात पर लौटते हैं कि जनता पार्टी की सरकार के सत्ता में रहने और इसके गिरने के बाद किस तरह के हालात बने। 2 सितंबर, 1979 को जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। इस बैठक में भी बड़ा मुद्दा यही था कि जनसंघ के सदस्य क्या आरएसएस की गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं। उस वक्त जनता पार्टी के अध्यक्ष तत्कालीन आरएसएस प्रमुख देवरस से मिले और उन्हें सुझाव दिया कि भारतीय जनसंघ को इसके सांसदों और विधायकों को संघ की गतिविधियों में शामिल होने से रोकना चाहिए।

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कोलकाता में वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करते SDPI के कार्यकर्ता। (Source- PTI)

देवरस ने उन्हें बताया कि इस बारे में कोई भी फैसला अगली अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में ही लिया जा सकता है। यह वह वक्त था जब जनता पार्टी भी बिखर रही थी और कांग्रेस में भी विभाजन हो रहा था। कांग्रेस दो हिस्सों कांग्रेस (आई) और कांग्रेस (यू) में बंट गई थी।

1980 में मिली जनता पार्टी को हार

1980 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की हार हुई थी और इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में आ गई थी। जनता पार्टी की हार के बाद जगजीवन राम और कुछ अन्य नेताओं ने एक बार फिर जनता पार्टी के नेताओं के आरएसएस के कार्यक्रमों में शामिल होने का मुद्दा उठाया लेकिन आरएसएस और भारतीय जनसंघ ने फिर से कहा कि इस बारे में 21-22 मार्च, 1980 को होने वाली अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में चर्चा होगी। लेकिन इस बैठक से पहले ही जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड ने 19 मार्च, 1980 को बहुमत से फैसला किया कि पार्टी का कोई भी पदाधिकारी या नेता आरएसएस के कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं ले सकता।

इस दौरान जनता पार्टी के नाम और उसके चुनाव चिन्ह पर भी कब्जा लेने के लिए लड़ाई छिड़ गई थी।

अगस्त, 1979 में चौधरी चरण सिंह के गुट ने चुनाव आयोग से कहा कि उनके खेमे को असली जनता पार्टी घोषित किया जाए और जब तक इस बारे में अंतिम फैसला नहीं आता तब तक पार्टी के चुनाव चिन्ह को सीज कर दिया जाए। लेकिन सितंबर, 1979 में चुनाव आयोग ने जनता पार्टी (सेक्युलर) को एक नया चुनाव चिन्ह दिया और राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दे दी। इसके बाद चरण सिंह ने कहा कि जनता पार्टी (सेक्युलर) का नाम बदलकर लोक दल कर दिया जाएगा।

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अटल बिहारी वाजपेयी को चुना गया अध्यक्ष

इस तरह जनता पार्टी पर कब्जे की लड़ाई और तेज हो गई जब 6 अप्रैल, 1980 को जनता पार्टी में शामिल भारतीय जनसंघ के खेमे ने अटल बिहारी वाजपेयी को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में अपना अध्यक्ष चुन लिया। वाजपेयी के गुट ने दावा किया कि वही असली जनता पार्टी है और उसने चुनाव आयोग के दरवाजे पर दस्तक दी। इस बीच, चंद्रशेखर की अगुवाई वाला खेमा भी चुनाव आयोग के पास पहुंच गया।

चुनाव आयोग (EC) ने 24 अप्रैल, 1980 को सभी दावों और प्रतिदावों पर विचार करने के बाद जनता पार्टी के चुनाव चिह्न को फ्रीज कर दिया। आयोग ने जनता पार्टी के नाम के आगे भारतीय जोड़ दिया और वाजपेयी की अगुवाई वाले गुट को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दे दी। इसके साथ ही बीजेपी को कमल का चुनाव चिन्ह भी आवंटित कर दिया गया। हालांकि इसके विरोध में चंद्रशेखर के गुट ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस तरह बीजेपी बनी और लगातार आगे बढ़ती गई।

(इंडियन एक्सप्रेस के लिए श्यामलाल यादव की रिपोर्ट)

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