लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे सामने आने के बाद एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या बीजेपी और आरएसएस में दूरी बन रही है? क्‍या भाजपा से आरएसएस खुश नहीं है? सवाल उठने की वजह भी है। ये कुछ वजह हैं-

यह साफ है क‍ि इस लोकसभा चुनाव में आरएसएस ने भाजपा की वैसी मदद नहीं की, जैसा पहले करता आया था। बीच चुनाव में भाजपा अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने कहा क‍ि अब भाजपा उस स्‍थ‍ित‍ि में नहीं रह गई है क‍ि वह आरएसएस का हाथ पकड़ कर चले। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा क‍ि इस चुनाव में दोनों तरफ से मर्यादा तोड़ी गई। यान‍ि, उन्‍होंने भाजपा को भी इसमें शाम‍िल क‍िया। आरएसएस के एक नेता रतन शारदा ने साफ तौर पर कहा क‍ि बीजेपी के सांसद तक जनता के ल‍िए आसानी से उपलब्‍ध नहीं हैं। उन्‍होंने बीजेपी की कई खाम‍ियों के बारे में खुल कर ल‍िखा है।

बीजेपी-आरएसएस के संबंधों के बारे में बात करते हुए इंडियन एक्सप्रेस की कॉन्ट्रीब्यूटिंग एडिटर नीरजा चौधरी ने कहा कि आरएसएस ने इस बार भाजपा के लिए उस तरह जी-जान से चुनाव प्रचार नहीं किया था जैसा वह हर बार करता है।

नीरजा चौधरी ने कहा, “कुछ मुद्दे तो हैं आरएसएस और भाजपा के बीच तभी चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि बीजेपी को सपोर्ट की जरूरत नहीं है, हम खुद चल सकते हैं। मुझे नहीं पता आरएसएस ने इसे कैसे लिया।” उन्होंने आगे कहा, “मीटिंग हो रही हैं, आरएसएस और बीजेपी के टॉप लीडर्स के बीच, आरआरएस लीडर्स की आपसी मीटिंग। अभी वो शांत हैं और देख रहे हैं पर प्रधानमंत्री को भी बातचीत के लिए बुलाया जा सकता है।”

पीएम मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में सीनियर लीडर्स को कैसे लेकर चलते हैं?

नीरजा चौधरी ने कहा क‍ि पीएम नरेंद्र मोदी अपने पहले साल में पूरी कैबिनेट को लेकर आरएसएस के बड़े नेताओं से मिलने गए थे। उसके बाद ऐसा नहीं हुआ। अब ये देखना होगा कि इस बार आरएसएस की क्या भूमिका होती है और पीएम मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में अपने सीनियर लीडर्स को कैसे लेकर चलते हैं? यह सब चुनौतियां हैं।

बीजेपी और आरएसएस के संबंधों में खटास?

चुनाव प्रचार के बीच में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का यह कहना कि पार्टी अब आरएसएस से स्वतंत्र हो गई है और उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं है, मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा और आरएसएस के बीच कई स्थानों पर विरोध को दर्शाता है। हालांकि, इस दूरी का कारण समझना आसान नहीं है लेकिन इसके नतीजे निश्चित रूप से न केवल भाजपा के भविष्य पर बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर डालेंगे।

ऐसी खबरें सामने आई थी कि कुछ आरएसएस कैडर जो चुनाव से पहले और मतदान के दिन माइक्रो- मैनेजमेंट करते थे, इस बार बहुत उत्साहित नहीं थे। कुछ भाजपा प्रत्याशियों ने आरएसएस की गैर-भागीदारी की पुष्टि की थी। कुछ स्थानों पर अगर आरएसएस कार्यकर्ताओं ने मदद की, तो इसका मुख्य कारण उम्मीदवारों के साथ उनके लंबे समय से चले आ रहे व्यक्तिगत संबंध थे। आरएसएस ने अगर अब खुद को बीजेपी से अलग करने का फैसला किया है तो इसकी कोई बहुत बड़ी वजह होगी, जो समय के साथ सामने आ ही जाएगी।

आरएसएस की मैगजीन में भाजपा पर लेख

आरएसएस से संबंधित पत्रिका ऑर्गनाइजर के ताजा अंक में प्रकाशित एक लेख में लोकसभा चुनाव परिणामों का दोष बीजेपी पर मढ़ते हुए कहा गया है, ”2024 के आम चुनावों के नतीजे अति आत्मविश्वास वाले बीजेपी कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए रियलिटी चेक के रूप में आए हैं। उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी का 400+ का नाराभाजपा के लिए एक लक्ष्य था और विपक्ष के लिए एक चुनौती थी। लक्ष्य मैदान पर कड़ी मेहनत से हासिल होते हैं, सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से नहीं। चूंकि, वे अपनी दुनिया में खुश थे, मोदीजी की आभा से झलकती चमक का आनंद ले रहे थे, वे ज़मीन पर आवाज़ें नहीं सुन रहे थे।”

आरएसएस ने हमेशा भाजपा का समर्थन किया

यह भी देखा गया है कि अतीत में आरएसएस ने हमेशा भाजपा का समर्थन किया है, लेकिन कुछ अवसरों पर वह अन्य दलों को समर्थन देने के मामले में लचीला रहा है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि संघ का मानना ​​था कि इससे उस समय देश को मदद मिलेगी। इसी संदर्भ में आरएसएस ने 1980 में कांग्रेस का समर्थन किया था क्योंकि जनता पार्टी के असफल प्रयोग के कारण उसके अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा था।

चुनाव नतीजों पर क्या बोले मोहन भागवत

इससे पहले चुनाव के नतीजों पर बात करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को कहा था कि एक सच्चे सेवक में अहंकार नहीं होता है और वह दूसरों को कोई चोट पहुंचाए बिना काम करता है।

RSS पर क्या बोले थे जेपी नड्डा?

बीजेपी प्रमुख ने द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक साक्षात्कार में आरएसएस पर कहा था, “शुरू में हम अक्षम थे, थोड़ा कमजोर थे तब आरएसएस की जरूरत थी। आज हम बढ़ गए हैं, सक्षम हैं तो बीजेपी अब अपने आप को चलाती है यही अंतर है।”

यह पूछे जाने पर कि क्या भाजपा को आरएसएस के समर्थन की जरूरत है, जेपी नड्डा ने कहा कि पार्टी बड़ी हो गई है और इसके नेता अपने कर्तव्य और भूमिकाएं निभाते हैं। उन्होंने कहा कि आरएसएस एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है जबकि भाजपा एक राजनीतिक दल है। जेपी नड्डा ने कहा कि आरएसएस वैचारिक तौर पर काम करता रहा है। उन्होंने कहा, “हम अपने मामलों को अपने तरीके से मैनेज कर रहे हैं और राजनीतिक दलों को यही करना चाहिए।”

BJP-RSS की बैठक

वहीं, भाजपा नेतृत्व ने बीते गुरुवार को अरुण कुमार सहित आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी। यह बैठक उस दिन हुई, जब भाजपा नेतृत्व कैबिनेट गठन के लिए एक फार्मूला तैयार करने और और गठबंधन सरकार में साझेदारों की भागीदारी पर बातचीत में उलझा हुआ था।

सरकार गठन को अंतिम रूप देने से पहले भाजपा नेताओं के बीच गहन बातचीत हुई थी। सूत्रों ने बताया कि पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा के आवास पर हुई बैठक में आरएसएस नेता, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष शामिल हुए थे। सूत्रों ने कहा कि आरएसएस नेताओं के साथ बैठक लोकसभा चुनाव के नतीजे, बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य के संदर्भ में थी।