बिहार में किशनगंज लोकसभा सीट ऐसी है, जहां नेता हिंंदू वोटरों को भी मुसलमानों के मुद्दों की बात करके ही लुभाने की कोशिश करते हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि किशनगंज में 68 फीसदी मुसलमान रहते हैं। 1967 के बाद यहां कोई हिंंदू उम्मीदवार लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाया है। यहां लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में 26 अप्रैल को वोटिंग होगी।
किशनगंज बिहार की एक मात्र संसदीय सीट है जिसे एनडीए 2019 के लोकसभा चुनाव में हार गया था, कांग्रेस के उम्मीदवार से। इस बार एनडीए ने अपना उम्मीदवार बदला है। सैयद महमूद अशरफ की जगह जेडीयू के मुजाहिद आलम को मैदान में उतारा गया है। हालांकि, कांग्रेस और एआईएमआईएम ने अपने पिछले उम्मीदवारों जावेद और अख्तरुल ईमान पर ही भरोसा जताया है।

किशनगंज कई मायनों में ऐतिहासिक सीट
किशनगंज में हिंदू सांसद एक बार ही बना है। जब 1967 में लखन लाल कपूर की जीत हुई थी। महिला उम्मीदवार को भी यहां से अब तक केवल एक ही बार, 1971 के चुनाव में उतारा गया था। वोट देने के मामले में भी यहां के लोग बहुत उदार नहीं हैं। सबसे ज्यादा 66.38 फीसदी वोटिंग 2019 में ही हुई थी। बस एक बार और वोटिंग का आंकड़ा 60 फीसदी से ऊपर गया था। यहां से भाजपा केवल एक बार (1999) जीती है। सैयद शाहनवाज हुसैन के नाम ही यह रिकॉर्ड है।
किशनगंज में कांग्रेस मजबूत
किशनगंज में 68% मुस्लिम और हिंदू आबादी 31% है। 2019 के चुनाव में, 1.06% मतदाताओं ने NOTA (उपरोक्त में से कोई नहीं) का विकल्प चुना था। मुख्य मुकाबला यहां कांग्रेस के वर्तमान सांसद जावेद आजाद, जेडीयू के मास्टर मुजाहिद और AIMIM के अख्तरुल ईमान के बीच है। जेडीयू का भाजपा के साथ गठबंधन होने के चलते उसे मुस्लिमों का समर्थन मिलने की उम्मीद कम है।
मोदी का नाम गायब, नीतीश को भी करनी पड़ती है कब्रिस्तान की बात
किशनगंज के चुनावी माहौल से नरेंद्र मोदी का नाम एक तरह से नदारद है। नीतीश कुमार भी प्रचार करने जाते हैं तो यही गिनाते हैं कि कब्रिस्तान में कितनी लंबी चहारदीवारी बनवाई।

AIMIM पर पूरी तरह भरोसा नहीं
किशनगंज में 2019 के लोकसभा चुनाव में 26.8% वोट के साथ अख्तरुल तीसरे नंबर पर रहे थे। हालांकि 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने किशनगंज की 6 में से 4 सीटों पर कब्जा जमाया था। बाद में अखतरुल को छोड़कर सभी राजद में शामिल हो गए थे।

मुजाहिद को भाजपा से नुकसान
जदयू के मास्टर मुजाहिद ने दो बार किशनगंज के कोचाधामन विधानसभा से विधायक रह चुके हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में तो अख्तरुल ईमान को हराकर ही वे विधानसभा पहुंचे थे। इस बार दोनों लोकसभा चुनाव में आमने-सामने हैं। कोचाधामन में इनकी छवि एक सरल और मददगार नेता की है। लेकिन मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्र में भाजपा गठबंधन का उम्मीदवार होने का खामियाजा इन्हें उठाना पड़ सकता है।
कौन-कौन है किशनगंज के मैदान में?
किशनगंज के चुनावी मैदान में इस बार मुक़ाबले में कांग्रेस से जावेद आजाद, एआईएमआईएम से अख्तरुल ईमान और जेडीयू से मुजाहिद आलम के बीच है। पिछले चुनाव में महागठबंधन के उम्मीदवार मोहम्मद जावेद (कांग्रेस) ने सीट जीती थी जबकि जनता दल (यूनाइटेड) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के उम्मीदवारों ने दूसरा और तीसरा स्थान हासिल किया था। इस बार के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार जावेद आजाद की बात की जाये तो 60 वर्षीय जावेद MBBS हैं। उनके पास कुल 10.68 करोड़ की संपत्ति है। जावेद 2019 में कांग्रेस से जीतने वाले एकमात्र सांसद है।
वहीं, AIMIM के अख्तरुल ईमान भी 60 वर्ष के हैं। उन्होंने पोस्टग्रेजुएशन किया है और उनके खिलाफ 4 क्रिमिनल केस हैं। अख्तरुल के पास 1.57 करोड़ की संपत्ति है। तीन बार के विधायक रहे अख्तरुल पिछली बार किशनगंज से चुनाव हारे थे। जेडीयू उम्मीदवार मुजाहिद आलम ग्रेजुएट हैं और उनके खिलाफ 1 क्रिमिनल केस है। 54 वर्षीय मुजाहिद के पास 1 करोड़ की संपत्ति है। मुजाहिद किशनगंज के कोचाधामन से दो बार एमएलए का चुनाव जीत चुके हैं।
किशनगंज लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम
पिछले चुनाव में बिहार की किशनगंज सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार जावेद ने जीत दर्ज की थी। जावेद को 3.67 लाख वोट मिले थे जो कुल वोटों का 33.32% था। वहीं दूसरे स्थान पर जेडीयू के सैयद महमूद अशरफ थे जिन्हें 3.32 लाख (30.19%) वोट मिले थे। इस सीट पर तीसरे स्थान पर AIMIM के अख्तरुल ईमान थे जिन्हें 2.95 लाख (26.78%) वोट मिले थे। यहां 19 हजार से ज्यादा लोगों ने NOTA का बटन दबाया था।
किशनगंज लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम
2014 के आम चुनाव में किशनगंज सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार मोहम्मद असररुल हक ने जीत दर्ज की थी। मोहम्मद को 4.93 लाख वोट मिले थे जो कुल वोटों का 53.15% था। वहीं दूसरे स्थान पर बीजेपी के दिलीप कुमार जयसवाल थे जिन्हें 2.98 लाख (32.19%) वोट मिले थे। इस सीट पर तीसरे स्थान पर जेडीयू के अख्तरुल ईमान थे 55, 822 (6.018%) वोट मिले थे। यहां 17 हजार से ज्यादा लोगों ने NOTA का बटन दबाया था।