केंद्र की मोदी सरकार के कार्यकाल को 8 साल पूरे हो चुके हैं। विज्ञापन, रोड शो समेत जनसंपर्क के दूसरे माध्यमों के जरिए सरकार अपने कार्यकाल की उपलब्धियों को गिनवा रही है। सरकार की ओर से प्रचारित की जा रही ज्यादातर उपलब्धियों के केंद्र में ‘डिजिटल इंडिया’ है। सरकार इस बात को स्वीकार करती है कि डिजिटल इंडिया का रास्ता अपनाए बिना राह आसान नहीं होती। गुरुवार को पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अपने एक लेख के जरिए बताया है कि डिजिटल इंडिया ने कुछ सबसे कठिन समस्याओं का समाधान किया, जिनका देश दशकों से सामना कर रहा था। जन-धन, आधार और मोबाइल की वजह से सबसे गरीब लोगों को उनके हक का एक-एक पैसा बिना किसी भ्रष्टाचार के मिलना संभव हुआ।
तो कहां तक पहुंचा डिजिटल इंडिया?
आधिकारिक तौर पर डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत जुलाई 2015 में हुई थी। लेकिन इसकी पहली झलक प्रधानमंत्री द्वारा 2014 में दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण में दिखता है। आज इस यात्रा के 8 साल बाद भारत के खाते में कई उपलब्धियां हैं।
1. यूपीआई- यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) डिजिटल इंडिया का इसका सबसे चमकता सितारा है। पैसों के लेनदेन को यूपीआई ने इतना आसान बना दिया कि आज इसका इस्तेमाल रेहड़ी-पटरी वाले से लेकर बड़े-बड़े व्यवसायी भी कर रहे हैं। आम लोगों के बीच ये इतना सहज हो गया है कि वित्त वर्ष 2021-22 में यूपीआई के माध्यम से 452.75 करोड़ का ट्रांजैक्शन किया गया था। इस सर्विस का इस्तेमाल अब भारत के साथ-साथ सिंगापुर, मलेशिया, भूटान और नेपाल जैसे देश भी कर रहे हैं।
2.आईआरसीटीसी- रेलवे को देश की लाइफ लाइन कहा जाता है। पहले जहां रेलवे की टिकट के लिए स्टेशन के आरक्षण केंद्र पर निर्भर रहना पड़ता है। वहीं अब इंटरनेट और मोबाइल के जरिए हर हाथ टिकट बुक करने की सुविधा प्राप्त है। सरकार की तरफ से इसे लगातार यूजर फ्रेंडली बनाने की कोशिश की जा रही है। हाल ही में आईआरसीटीसी ने एक ट्वीट कर जानकारी दी है कि यात्री अब आईआरसीटीसी ऐप में वॉइस कमांड की मदद से भी टिकट बुक कर सकते हैं। इस नए अपडेट से यात्रियों का वो तबका भी अपने मोबाइल से टिकट बुक कर पाएगा जो ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है।
3.आरोग्य सेतु- सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान आरोग्य सेतु एप को लॉन्च किया था। इस ऐप को शुरुआती 40 दिन के भीतर ही करीब 10 करोड़ लोगों ने इंस्टॉल किया था। इस ऐप ने यूजर्स को कोविड से जुड़ी जानकारी और वैक्सीन बुकिंग में काफी मदद की थी।
इन सबके अलावा मोदी सरकार ने ‘डिजिटल रूपी’ को लॉन्च किया है, जिसे भारतीय करेंसी का भविष्य बताया जा रहा है। ई-केवाईसी प्रणाली और डिजी लॉकर जैसे प्लेटफॉर्म ने नागरिकों के जीवन को आसान बनाया है।
क्या है चुनौती?
देश में डिजिटल लेनदेन तो बढ़ रहा है। लेकिन उतनी तेजी से ऑनलाइन फ्रॉड का खतरा भी बढ़ रहा है। आरबीआई की ओर से जारी हालिया रिपोर्ट के मुताबिक एक साल में 9103 लोगों से 60414 करोड़ रुपए की ठगी हुई है। वहीं पिछले साल ठगी के शिकार हुए लोगों की संख्या तो कम थी लेकिन ठगी की रकम बहुत ज्यादा थी। वर्ष 2020-21 में 7359 लोगों से 1 लाख 38 हजार 211 करोड़ रुपए की ठगी हुई थी। साल 2019 में इंडियन बैंकिंग सिस्टम से डेटा चोरी का मामला भी सामने आ चुका है। सरकार के पास इस समस्या से निपटने के लिए फिलहाल कोई ठोस उपाय नहीं है। साइबर सिक्योरिटी का मसौदा तैयार होने की बात सरकार की तरफ से कही गई है। अलग-अलग अभियान के माध्यम से लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है। लेकिन फिलहाल ये प्रयास नाकाफी नजर आ रहे हैं।
इसके अलावा डिजिटल निरक्षरता एक बड़ी समस्या है। उपराष्ट्रपति अपने एक वक्तव्य डिजिटल साक्षरता की जरूरत को रेखांकित कर चुके हैं। उन्होंने कहा था, डिजिटल साक्षरता और वित्तीय साक्षरता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी मूलभूत साक्षरता।
इंटरनेट पर स्थानीय भाषा में जानकारी का उपलब्ध न होना भी डिजिटल इंडिया की राह में एक बड़ा रोड़ा है। मोदी सरकार मंत्रालयों की वेबसाइट तो हिन्दी में लॉन्च कर चुकी है लेकिन अन्य भारतीय भाषाओं को लेकर अभी कोई पहल नहीं दिख रही। हिन्दी में मौजूद वेबसाइट भी बहुत सरल नहीं है। सरकार अपनी योजनाओं की जानकारी जिस वंचित समुदाय तक पहुंचाना चाहती है उसके लिए क्लिष्ट ‘सरकारी हिन्दी’ को समझना आसान नहीं होता।
कोविड के दौरान कुछ ऐसे तथ्य भी सामने आए जिसने भारत के डिजिटल डिवाइड को उजागर किया। डिजिटल डिवाइड की खाई को पाटे बिना डिजिटल इंडिया बनाना आसान नहीं है। महामारी के दौरान सरकार ने कोविड वैक्सीनेशन के लिए राष्ट्रीय पोर्टल पर पंजीकरण को आवश्यक बताया था। मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फटकार लगाते हुए डिजिटल डिवाइड को ध्यान में रखने की सलाह दी थी।
खैर, तमाम खामियों के बावजूद डिजिटल इंडिया एक महत्वपूर्ण पहल है, सशक्त तकनीकी समाधान है। लेकिन डिजिटल इंडिया का सपना सरकारी योजनाओं के नाम की शुरुआत में सिर्फ E लगा देने भर से पूरा नहीं होने वाला। जाहिर है इसके लिए एक सुरक्षित, समावेशी और सस्ता साइबर स्पेस बनाने की जरूरत है।