देव आनंद ज‍िंंदा होते तो इस साल (26 स‍ितंबर, 2023) सौ साल के हो गए होते। वे सशरीर भले नहीं हैं, लेक‍िन अपने करोड़ों प्रशंसकों के द‍िलों में ज‍िंंदा है। तभी तो देश अपने अजीज सिने कलाकार देव आनंद के जन्म की 100वीं सालगिरह मना रहा है।

हिंदी सिनेमा के स्टाइल आइकन रहे देव आनंद का जन्म 26 सितंबर, 1923 को गुरदासपुर जिले में हुआ था। तब उनका नाम धरमदेव पिशोरीमल आनंद हुआ करता था। वह 20 साल की उम्र में घर से 30 रुपये लेकर मुंबई पहुंचे थे। दो साल के संघर्ष के बाद उन्हें साल 1945 में ‘हम एक हैं’ फिल्म में मुख्य अभिनेता के रूप में ब्रेक मिला। इसके बाद वह आठ दशक तक हिंदी सिनेमा जगत में छाए रहे।

देवानंद के पर‍िवार के बारे में ज्‍यादातर लोग यही जानते हैं क‍ि वह छह भाई-बहन थे। लेकिन सच यह है कि देव आनंद कुल नौ भाई बहन थे। उनकी तीन बहनें दिल्ली में ही रहती थीं। देवानंद के भांजे राजीव खन्ना ने यह बात बताई।

देव आनंद के भाई ने भांजी से की थी शादी

द‍िल्‍ली में 30 सितंबर को न्यू डेल्ही फिल्म फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘ऐन इवनिंग विद देव’ में राजीव खन्‍ना ने आनंद पर‍िवार से जुड़ा एक और क‍िस्‍सा शेयर क‍िया। उन्‍होंने बताया क‍ि कि देवानंद के भाई व‍िजय आनंद ने अपनी ही भांजी सुषमा कोहली से शादी कर ली थी। इस घटना से घर में सब उदास हो गए थे। सब अवाक थे- “ये क्या कर लिया!”

कानून के प्रोफेसर रहे राजीव खन्‍ना ने वाकया याद करते हुए कहा, “मेरी मां के छोटे भाई ने अपनी बहन की बेटी यानी भांजी से शादी कर ली थी। यह फैक्ट है। शादी हो गई थी, तो परिवार को स्वीकार करना ही था। मैं भी यह स्वीकार करना चाहूंगा कि मैं उन्हें दीदी कहकर पुकारता था। एक रोज उन्होंने मुझे टोकते हुए कहा कि मैं अब तुम्हारी दीदी नहीं, मामी हूं।” उनकी मामी सुषमा कोहली इसी साल अगस्‍त में दुन‍िया से रुखसत हुई हैं।

कार्यक्रम में खन्ना ने देव आनंद की हैंडराइटिंग वाले नोट्स भी दिखाए थे। अभिनेता ने वो नोट्स 1939 में लाहौर स्थित गवर्नमेंट कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान लिए थे।

आखिर क्यों इतनी सफल हुई थी ‘गाइड’?

बता दें क‍ि देवानंद के बड़े भाई चेतन आनंद और छोटे भाई विजय आनंद भी हिंदी सिनेमा के बेहतरीन निर्देशक रहे हैं। देवानंद की कालजयी फिल्म ‘गाइड’ के न‍िर्देशक भी व‍िजय आनंद ही थे। गाइड फिल्म आरके नारायण के उपन्यास पर बनी थी।

हाल में गाइड फ‍िल्‍म पर एक किताब ‘गाइड, द फिल्म: पर्सपेक्टिव्स’ लिखी गई है। इस किताब में गाइड फिल्म के विभिन्न पहलुओं पर 14 लेखकों ने अध्ययन और शोध कर विस्तार से लिखा है। किताब में इस बात को लेकर चर्चा की गई है कि आखिर ये फिल्म इतनी सफल क्यों हुई थी।

एंटी-हीरो और एंटी-हीरोइन की जोड़ी

किताब में बताया गया है कि गाइड एक अलग तरह का प्रयोग था। फिल्म के ना सिर्फ हीरो बल्कि हीरोइन भी समाज की सच्चाई से ऊपर नहीं थी। गाइड में ना तो हीरो को अच्छाई का पुलिंदा दिखाया गया था। ना ही हीरोइन को त्याग की देवी। दोनों ही किसी आम इंसान की तरह मानवीय खामियों से भरे थे। हिंदी सिनेमा ने पहली बार एंटी-हीरो और एंटी-हीरोइन की जोड़ी देखी गई थी।

काला पानी (1958), काला बाजार (1959), ज्वेल थीफ (1967) और तेरे मेरे सपने (1971) जैसी फिल्मों में भी अवगुणों वाला हीरो था। लेकिन तब भी केवल गाइड ही ऐसी फिल्म थी, जिसमें हीरो और हीरोइन दोनों दोषपूर्ण थे और दोनों में से अधिक खामी नायिका में थी।

उपन्‍यास का वह ह‍िस्‍सा, जो फ‍िल्‍म में नहीं ल‍िया गया

फिल्म के निर्देशक विजय आनंद के हाथों में कठिन काम था। वह न केवल फिल्म के निर्देशक थे, बल्कि वह इसके पटकथा लेखक और इसके एडिटर भी थे। उनके पास 11 चैप्टर के उपन्यास को एक फिल्म में बदलने का चुनौतीपूर्ण काम था। उपन्यास के 256 पेज में 80,000 शब्द थे। विजय आनंद को कहानी का सार खोए बिना उपन्यास को तीन घंटे के 22 रील्स में तब्दील करना था।

ऐसे में विजय आनंद ने नायक राजू गाइड के बचपन और जेल की सजा के साथ-साथ उपन्यास में दर्शाए गए उनके जीवन के कुछ अन्य हिस्सों शूट ही नहीं किया। उन्होंने अन्य फार्मूला फिल्मों के विपरीत, फिल्म में किसी भी हास्य अभिनेता या वैम्प को नहीं रखने का फैसला किया।

उपन्‍यास में जो नहीं था, वह फ‍िल्‍म में ल‍िया गया

मुख्य कहानी में कोई सूत्रधार यानी नरेटर नहीं था। लेकिन विजय आनंद ने पूरी फिल्म के लिए एक सूत्रधार रखा। पहले गाइड का अंग्रेजी, फिर हिंदी संस्करण आया था। विजय आनंद और देव आनंद दोनों को अपने असफल अंग्रेजी संस्करण के बाद एक सफल फिल्म की सख्त जरूरत थी।

बाद में देव आनंद ने कहा भी, “हमें भारतीय लोकाचार और सोच के अनुरूप एक नई पटकथा की आवश्यकता थी।” तब दर्शक धार्मिक और पुराने ज़माने के थे। उनके लोकाचार को तब भी ध्यान रखना पड़ा जब फिल्म ने समाज की कुछ वर्जनाओं को चुनौती देने का प्रयास किया।

वैसे पीछे मुड़कर देखें तो, यह अंग्रेजी असफल संस्करण ही था जिसने विजय आनंद को सफल हिंदी संस्करण बनाने में बहुत मदद की; इसने उनके लिए वैसे ही काम किया जैसे एक रिहर्सल मुख्य शो के लिए करता है।