सरकार और न्यायपालिका में टकराव कोई नई बात नहीं है। कई बार तो तनातनी इतनी बढ़ गई कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) इस्तीफे की जिद पर अड़ गए थे। पूर्व CJI पीएन भगवती के कार्यकाल का ऐसा ही एक किस्सा खासा मशहूर है। जस्टिन भगवती 12 जुलाई 1985 को कांग्रेस सरकार में देश के मुख्य न्यायाधीश बने। उन दिनों जस्टिस प्रकाश नारायण दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हुआ करते थे।
किसे नियुक्त कराना चाहती थी सरकार?
कांग्रेस सरकार, जस्टिस नारायण को सुप्रीम कोर्ट में अप्वॉइंट करना चाहती थी, लेकिन सीजेआई पीएन भगवती इसपर राजी नहीं थे। बॉम्बे हाईकोर्ट के एडवोकेट और लेखक अभिनव चंद्रचूड़ (Abhinav Chandrachud) पेंगुइन से प्रकाशित अपनी किताब Supreme Whispers में लिखते हैं कि अगर सीजेआई सरकार की कोई बात नहीं मानते हैं तो उन्हें क्या खामियाजा भुगतना पड़ता है, जस्टिस भगवती का उदाहरण सबके सामने है। जस्टिस भगवती किसी भी कीमत पर जस्टिस प्रकाश नारायण को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त नहीं करना चाहते थे, लेकिन सरकार अड़ी थी।
इस्तीफे की जिद पर अड़ गए CJI
आखिरकार जस्टिस भगवती इस्तीफे की जिद पर अड़ गए और कहा कि यदि प्रकाश नारायण की नियुक्ति हुई तो वह पद छोड़ देंगे। इसके बाद सरकार को अपने कदम पीछे खींचने पड़े, लेकिन इसके बाद चीफ जस्टिस भगवती ने अपने करीब 17 महीने के कार्यकाल में तमाम सिफारिशें की, लेकिन सरकार ने उनकी एक न सुनी। जस्टिस भगवती जब-जब सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए किसी का नाम भेजते, कांग्रेस सरकार हर बार बिना कोई कारण बताए उनकी सिफारिश खारिज कर देती।
अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि जस्टिस भगवती ने 3 हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस का नाम सरकार को भेजा। इसमें हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी देसाई पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुरजीत सिंह संधावालिया और गुवाहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के एम लाहिड़ी का नाम शामिल था। लेकिन सरकार की तरफ से इन तीनों नाम पर कोई जवाब ही नहीं आया।
CJI पाठक के साथ भी वही सुलूक
सीजेआई पीएन भगवती (Former CJI P.N. Bhagwati) 20 दिसंबर 1986 को रिटायर हो गए। उनके बाद जस्टिस आरएस पाठक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (Former CJI R.S. Pathak) बने। अभिनव लिखते हैं सीजेआई पाठक के साथ भी सरकार का सुलूक लगभग ऐसा ही रहा।
उदाहरण के तौर पर जस्टिस पाठक दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस टीपीएस चावला को सुप्रीम कोर्ट में लाना चाहते थे, लेकिन सरकार हर बार बिना कोई कारण बताए जस्टिस चावला का नाम खारिज कर देती थी।