22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद को निमंत्रण मिला है। द इंडियन एक्सप्रेस के दैनिक कॉलम ‘Delhi Confidential’ के मुताबिक, पटना साहिब लोकसभा सांसद रविशंकर प्रसाद को रामलला के वकील के रूप में आमंत्रित किया गया है।
रविशंकर प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई के दौरान एक वकील के रूप में ‘भगवान रामलला’ का प्रतिनिधित्व किया था। हालांकि, जब मामला सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए आया, तो प्रसाद एक वकील के रूप में भाग नहीं ले सके क्योंकि वह उस समय केंद्रीय मंत्री थे।
कैसे बने रामलला के वकील?
द इंडियन एक्सप्रेस की डिप्टी एडिटर लिज़ मैथ्यू ने रविशंकर प्रसाद से बातचीत में पूछा कि उन्होंने रामलला को मामले में पक्षकार बनाने का फैसला कैसे लिया था? जवाब में प्रसाद ने कहा, “यह बहुत शुरुआत की बात है। मूल मामलों में एक मुसलमानों द्वारा नमाज अदा करने का दाखिल किया गया था, और दूसरा गोपाल सिंह विशारद द्वारा दायर किया गया था। मैं यहां भारत के अटॉर्नी जनरल लाल नारायण सिन्हा के योगदान को याद करना चाहूंगा। वह एक कानूनी विद्वान और राम भक्त थे। ये उन दिनों की बात है जब मैं दो साल की प्रैक्टिस कर चुका था और पटना हाईकोर्ट में काम कर रहा था। तभी मेरी मुलाकात लाल नारायण सिन्हा से हुई। उन्होंने मुझसे सवाल पूछा- यंग मैन, अगर मुसलमानों का दावा खारिज हो गया, तो वे वहां नमाज नहीं पढ़ पाएंगे। लेकिन हिंदू भी पूजा नहीं कर सकेंगे। ऐसे में भगवान रामलला के जन्मस्थान को लेकर तुम्हारी रणनीति क्या होगी? रामलला विराजमान देवता हैं या नहीं? जाओ और उनकी ओर से मुकदमा दायर करो कि मैं भगवान राम लला विराजमान हूं, मैं इस परिसर का मालिक हूं, मैं अपने भक्तों को मेरे दर्शन करने में सक्षम बनाने के लिए अपना अधिकार घोषित करता हूं।”
प्रसाद आगे बताते हैं, “हिंदू कानून के तहत, भगवान एक देवता है, एक न्यायिक व्यक्ति है जिसे अपनी संपत्ति मिलती है। यह बंदोबस्ती के हिंदू कानून का एक विशिष्ट पहलू है… इसलिए रामलला विराजमान स्वयं वादी बन गए। सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया।”
बातचीत से समाधान खोजने का प्रयास किया गया था, मुकदमेबाजी को अंतिम विकल्प के रूप में देखा गया, ऐसा हुआ?
इस सवाल के जवाब में प्रसाद बताते हैं, “सुप्रीम कोर्ट ने भी सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने के लिए कहा था। इसमें श्री श्री रविशंकर और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों सहित कई लोग शामिल थे। लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। मैं आपको बता दूं कि मुसलमानों को पता था कि अयोध्या में कोई केस ही नहीं है। वे जानते थे कि यह भगवान राम का मामला है और यह हिंदुओं को मिलना ही चाहिए। लेकिन वे रिकॉर्ड पर नहीं जाना चाहते थे। जब मैं कानून मंत्री था तब वे मुझे यह बताया करते थे।”
अयोध्या ने राष्ट्रीय राजनीति को कैसे प्रभावित किया है?
रविशंकर प्रसाद मानते हैं कि रथ यात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी और कारसेवकों पर गोली चलाने की घटना से कांग्रेस को नुकसान हुआ और भाजपा का उभार हुआ। वह कहते हैं, “जब आडवाणी जी को (बिहार में उनकी रथ यात्रा के दौरान) गिरफ्तार किया गया था, तब मैं पटना हाईकोर्ट में वकील था। मैं उनसे मिलने गया। वह जमानत नहीं, बल्कि वीपी सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर वोट करने के लिए नई दिल्ली जाने की अनुमति चाहते थे। लालू प्रसाद (बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री) उन्हें गिरफ्तार करके चैंपियन बन गए, मुलायम सिंह यादव कारसेवकों पर गोली चलवाकर धर्मनिरपेक्ष राजनीति के चैंपियन बन गए। इन दोनों ने अंततः कांग्रेस के दबदबे को ख़त्म कर दिया, उन्हें वह सब मिला जो वामपंथी पार्टियां चाहती थीं। बिहार में अब भी सीपीआई की मजबूत मौजूदगी है।और इस तरह हम राजनीतिक परिदृश्य में उभरने लगे।”
प्राण प्रतिष्ठा में सरकार की भागीदारी और पीएम द्वारा समारोह में शामिल होने के सवाल पर प्रसाद ने कहा, “इतने सारे लोग आ रहे हैं और सरकार सिर्फ उन्हें सुविधा प्रदान कर रही है। क्या भारत में धार्मिक स्थलों को गंदगी से भर देना चाहिए? हमारे धार्मिक स्थल वेटिकन की तरह असाधारण क्यों नहीं बन सकते? अयोध्या हिंदुओं के लिए पवित्र है। पुजारी वहां हैं। मोदी, हमारे प्रधानमंत्री और एक राम भक्त हैं। भारत के राष्ट्रपति सोमनाथ समारोह में गये थे। मैं इस पर नेहरू के विचारों से पूरी तरह असहमत हूं। प्रधानमंत्री भगवान राम के सच्चे उपासक के तौर पर वहां जा रहे हैं और इसके लिए जरूरी अनुशासन का पालन भी कर रहे हैं।”