बिहार विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग 6 और 11 नवंबर को होगी और 14 नवंबर को नतीजे आएंगे। इस बीच बिहार में मुस्लिम विधायकों को लेकर चर्चा शुरू हो गई। बिहार में मुस्लिम आबादी 17 फीसदी से अधिक है लेकिन 1990 के बाद से पिछले 8 चुनावों में बिहार विधानसभा के लिए चुने गए मुस्लिम सदस्यों की संख्या राज्य के कुल विधायकों में औसतन लगभग 8% रही है। यानी जितनी उनकी आबादी है, उससे कम उनके प्रतिनिधि निर्वाचित हो रहे हैं।

1990 में सबसे कम मुस्लिम नेता पहुंचे विधानसभा

1990 के चुनावों में सबसे कम 5.55% मुस्लिम नेता विधानसभा पहुंचे थे। वहीं 2015 और 2005 (फरवरी) के चुनावों में सबसे अधिक 9.87% मुस्लिम नेता विधानसभा पहुंचे। 2022-23 के राज्य जाति सर्वेक्षण के अनुसार बिहार की 13.07 करोड़ आबादी में मुस्लिम समुदाय 17.7% है।

आरजेडी, कांग्रेस, वामदल और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) वाले विपक्षी महागठबंधन और भाजपा और जदयू के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ एनडीए दोनों ने आगामी विधानसभा चुनावों में 2020 के चुनावों की तुलना में कम मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। ऐसे में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी अपने अभियान में मुस्लिम नेतृत्व विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं।

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2020 में चुने गए 19 मुस्लिम विधायक

243 सदस्यीय बिहार विधानसभा के 2020 के चुनावों में 19 मुस्लिम उम्मीदवार विधायक चुने गए, जिनमें से अधिकांश आठ विधायक आरजेडी से थे। उसके बाद एआईएमआईएम के पांच, कांग्रेस के चार, और बसपा और सीपीआई (माले) लिबरेशन के एक-एक विधायक थे। इस प्रकार निवर्तमान विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व 7.81% था। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू ने 11 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सभी चुनाव हार गए थे।

2015 में बढ़ा प्रतिनिधित्व

2020 की तुलना में 2015 में बिहार विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व 9.87 प्रतिशत बढ़कर 9.87 प्रतिशत हो गया था। तब 24 मुस्लिम उम्मीदवार विधायक चुने गए थे, जिनमें आरजेडी के 12, कांग्रेस के 6 और जदयू के पांच विधायक शामिल थे। एक विधायक सीपीआई (माले) लिबरेशन का था। 2010 में, बिहार विधानसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व 7.81 प्रतिशत था और 19 विधायक चुने गए थे, जिनमें जदयू के सात, आरजेडी के 6, कांग्रेस के 3, लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के दो और भाजपा का एक विधायक शामिल था। भाजपा की एकमात्र मुस्लिम विधायक सबा जफर थीं, जिन्होंने पूर्णिया की अमौर विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार अब्दुल जलील मस्तान को हराया था। इसके बाद मस्तान ने 2015 में जफर को हराया था।

फरवरी 2000 में हुए अविभाजित बिहार के पिछले विधानसभा चुनावों में 324 सदस्यीय सदन में कुल 30 मुस्लिम विधायक चुने गए थे, जो 9.25% था। इनमें से सबसे ज़्यादा 17 मुस्लिम विधायक आरजेडी के चुनाव चिन्ह पर चुने गए थे। वहीं कांग्रेस के 6, समता पार्टी (सपा) और भाकपा के दो-दो, और बसपा और भाकपा (माले) लिबरेशन के एक-एक विधायक शामिल थे। 1997 में लालू प्रसाद द्वारा जनता दल से अलग होकर अलग पार्टी बनाने के बाद से यह आरजेडी का पहला विधानसभा चुनाव था।

2000 में चुने गए थे 24 मुस्लिम विधायक

नवंबर 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बनने के बाद 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा के लिए पहली बार फरवरी 2005 में चुनाव हुए, जिसमें 24 मुस्लिम विधायक चुने गए, जो सदन की कुल संख्या का 9.87% था। इनमें आरजेडी के 11, जदयू के 4, कांग्रेस के 3, एनसीपी के 2, भाकपा (माले) लिबरेशन, बसपा, समाजवादी पार्टी के एक-एक और एक निर्दलीय विधायक शामिल थे। चूंकि इस चुनाव में कोई सरकार नहीं बन पाई, इसलिए बिहार में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। अक्टूबर-नवंबर 2005 में जब राज्य में नए चुनाव हुए, तो केवल 16 मुस्लिम उम्मीदवार ही चुने गए, जिससे उनका प्रतिनिधित्व घटकर 6.58% रह गया। इन विधायकों में आरजेडी, कांग्रेस, जदयू के चार-चार, लोजपा, एनसीपी और भाकपा (माले) लिबरेशन के एक-एक और एक निर्दलीय विधायक शामिल थे।

1990 में जब जनता दल ने 324 में से 122 सीटें जीतीं और लालू प्रसाद पहली बार मुख्यमंत्री बने, तब 18 मुस्लिम उम्मीदवार विधायक चुने गए, जिनमें जनता दल के 10, कांग्रेस के चार, झामुमो का एक और तीन निर्दलीय शामिल थे। उस समय सदन में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व केवल 5.55% था। 1995 में यह बढ़कर 7.09% हो गया, जब 23 मुस्लिम विधायक चुने गए। इनमें से अधिकतम 13 जनता दल से, पांच कांग्रेस से, दो सपा से, और एक-एक भाकपा, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और झामुमो (मरांडी) से थे। 9 बार मुख्यमंत्री रहे नीतीश नवंबर 2005 से बिहार सरकार की बागडोर संभाल रहे हैं, जिसमें उन्होंने बारी-बारी से एनडीए और महागठबंधन के साथ गठबंधन किया है।

2025 के चुनावों में मुस्लिम उम्मीदवार

वहीं इस बार आरजेडी ने अपने 143 उम्मीदवारों में 18 मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया है। पार्टी ने 2020 में भी 144 उम्मीदवारों में से 18 मुसलमानों को मैदान में उतारा था, जिनमें से आठ ने जीत हासिल की थी। कांग्रेस ने 10 मुसलमानों को मैदान में उतारा है वहीं 2020 के चुनावों 12 उतारे थे और उसके चार मुस्लिम उम्मीदवार विधायक चुने गए थे।

भाकपा (माले) लिबरेशन ने अपने 20 उम्मीदवारों में से दो मुसलमानों को टिकट दिया है। 2020 में पार्टी के 19 उम्मीदवारों में से तीन मुसलमान थे, जिनमें से एक विधायक चुने गए। मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली वीआईपी (15 सीटों पर चुनाव लड़ रही है) ने इस बार किसी भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया है। पार्टी ने 2020 में एनडीए के सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ा था और दो मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, लेकिन दोनों ही चुनाव हार गए थे।

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जदयू ने कम की संख्या

जदयू ने अपने 101 उम्मीदवारों में से केवल चार मुस्लिम चेहरों को मैदान में उतारा है। 2020 में, जदयू ने 11 मुसलमानों को टिकट दिया था, लेकिन उनमें से कोई भी जीत नहीं सका था। पार्टी ने 2015 का चुनाव आरजेडी के साथ गठबंधन में लड़ा था, जिसमें छह मुसलमानों को मैदान में उतारा था, जिनमें से पांच निर्वाचित हुए थे। 2010 में जदयू ने 14 मुसलमानों को मैदान में उतारा था, जिनमें से छह आसानी से जीत गए थे।

एनडीए के सीट बंटवारे में 29 सीटें पाने वाली चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा (रामविलास) ने किशनगंज की बहादुरगंज सीट से केवल एक मुस्लिम उम्मीदवार मोहम्मद कलीमुद्दीन को मैदान में उतारा है। 2020 में, जब लोजपा ने अकेले 135 सीटों पर चुनाव लड़ा था, तब उसने सात मुसलमानों को टिकट दिया था, जिनमें से कोई भी जीत नहीं सका। एआईएमआईएम ने 25 उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें से 23 मुस्लिम समुदाय से हैं। 2020 में पार्टी के 20 उम्मीदवारों में 15 मुस्लिम थे, जिनमें से पांच चुनाव जीत गए।