सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में बने रहे राम मंदिर के पहले चरण का काम पूरा होने को है। 22 जनवरी को मंदिर की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी मंदिर निर्माण का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देती नजर आ रही है।

11 जनवरी, 2023 के एक सोशल मीडिया पोस्ट में भाजपा ने ‘मंदिर आंदोलन’ के एक प्रमुख चरण की राजनीति का पूरा श्रेय नरेंद्र मोदी मोदी को दे दिया है। भाजपा के आधिकारिक एक्स (पहले ट्विटर) हैंडल से मंदिर आंदोलन के ‘इतिहास’ से जुड़ा एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा गया है, “1990 में मंदिर निर्माण के लिए भाजपा ने शुरू की सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा, जिसके शिल्पी और रणनीतिकार थे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी।”

हालांकि 1990 की रथ यात्रा को ग्राउंड से कवर करने वाले पत्रकार और कुछ भाजपा नेता भी यह मानते हैं कि न सिर्फ ‘रथ यात्रा’ बल्कि पूरे मंदिर आंदोलन में नरेंद्र मोदी की भूमिका बहुत सीमित थी।

screenshot
भाजपा के पोस्ट का स्क्रीनशॉट। तस्वीर पर क्लिक कर भाजपा के आधिकारिक एक्स हैंडल पर पोस्ट को देखा जा सकता है।

‘राम मंदिर में मोदी का कोई योगदान नहीं’

अगस्त 2020 में राम मंदिर निर्माण के लिए हुए भूमि पूजन के बाद रेडिफ डॉट कॉम के सैयद फिरदौस अशरफ ने वरिष्ठ पत्रकार सुमन गुप्ता से बातचीत की थी। गुप्ता के पास 30 वर्षों से अधिक समय तक मंदिर आंदोलन को कवर करने का अनुभव है।

मंदिर आंदोलन में नरेंद्र मोदी की भूमिका पर बात करते हुए गुप्ता कहती हैं,

1985 से 1992 तक किसी का ध्यान राम जन्मभूमि आंदोलन के संघर्ष में मोदी के योगदान की तरफ नहीं गया। तब वह कुछ नहीं थे। उनका जो भी थोड़ा बहुत योगदान था वह गुजरात राज्य तक ही सीमित था। 80 के दशक के अंत में लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अपनी रथयात्रा शुरू की थी। 1984 से 1992 तक मोदी को अयोध्या या यहां तक कि उत्तर प्रदेश में भी कोई नहीं जानता था। 1992 तक अयोध्या में राम मंदिर के लिए मोदी का कोई योगदान नहीं था।

गुप्ता बताती हैं कि मोदी अयोध्या के कारण नहीं बल्कि गोधरा के कारण चर्चा में आए थे। वह कहती हैं,

पहली बार उनका नाम तब चर्चा में आया जब 2002 में कारसेवक अयोध्या में शिलान्यास करने के बाद उस मनहूस ट्रेन से गुजरात वापस चले गए और गोधरा में जला दिए गए। मोदी गोधरा के कारण हिंदुत्व आइकन बन गए, न कि अयोध्या के कारण।

लखनऊ की जानी-मानी हिंदी पत्रकार सुमन गुप्ता ने 6 दिसंबर, 1992 को जनमोर्चा अखबार के रिपोर्टर के रूप में बाबरी मस्जिद विध्वंस को कवर किया था। वह उन कई पत्रकारों में से हैं, जिन्हें उस दिन कार सेवकों ने पीटा था।

बीबीसी से बातचीत में गुप्ता दावा करती हैं कि रिपोर्टिंग के दौरान उन्हें चाकू मारने की कोशिश की गई थी। उनके कपड़े फट गए थे। वह कार की डिक्की में छिपकर वहां से भागी थीं। गुप्ता ने ‘बाबरी विध्वंस मामले’ में कई अदालतों को विध्वंस का विवरण भी दिया था।

भाजपा ने अपनी वेबसाइट पर भी मोदी के योगदान का नहीं किया है जिक्र

भारतीय जनता पार्टी ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर ‘राम रथ यात्रा’ नाम से एक पेज बनाया है। उस पेज पर रथ यात्रा से जुड़ी जानकारी उपलब्ध है। भाजपा ने बताया है कि यात्रा की शुरुआत 25 सितंबर को क्यों की गई थी? यात्रा की शुरुआत सोमनाथ से क्यों की गई थी? यात्रा क्यों महत्वपूर्ण थी? आदि। इसमें यह तो बताया गया है क‍ि यात्रा लाल कृष्‍ण आडवाणी ने न‍िकाली ने लेक‍िन इसके श‍िल्पी और रणनीत‍िकार के बारे में कुछ नहीं बताया गया है।  

करीब 800 शब्दों में विभिन्न जानकारियों को पिरोया गया है, जिस पढ़ते हुए महात्मा गांधी, लालकृष्ण आडवाणी, दीनदयाल उपाध्याय, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, विश्वनाथ प्रताप सिंह आदि का नाम तो मिलता है, लेकिन नरेंद्र मोदी का नाम कहीं नजर नहीं आता, जिसे भाजपा ने अपने सोशल मीड‍िया पेज पर आज ‘रथ यात्रा’ का शिल्पी और रणनीतिकार बताया है।

मोदी कभी भी राम जन्मभूमि आंदोलन से करीब से नहीं जुड़े रहे- भाजपा पदाधिकारी

द इंडियन एक्सप्रेस की लिज मैथ्यू अपनी एक रिपोर्ट में भाजपा नेता के हवाले से लिखती हैं कि मोदी कभी भी राम जन्मभूमि आंदोलन से करीब से नहीं जुड़े रहे। एक भाजपा पदाधिकारी ने मैथ्यू को बताया,

रथ यात्रा के लिए (दिवंगत) प्रमोद महाजन, आडवाणी जी के बाद दूसरे नंबर के नेता थे। नरेंद्र मोदी 1991 में मुरली मनोहर जोशी जी के नेतृत्व में हुई ‘एकता यात्रा’ में दूसरे नंबर के नेता थे। यह उनका (मोदी)  सचेत निर्णय था कि राष्ट्रीय परिदृश्य में आने के बाद उन्हें अयोध्या आंदोलन से न जोड़ा जाए क्योंकि मामला अदालत में था।

बता दें, 1991 की एकता यात्रा (कन्याकुमारी से कश्मीर तक) का नेतृत्व भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने किया था। उसका उद्देश्य यह संकेत देना था कि भाजपा राष्ट्रीय एकता का समर्थन करती है और अलगाववादी आंदोलनों का विरोध करती है।

लिज मैथ्यू अपनी रिपोर्ट में बताती हैं, “जब आडवाणी ने रथ यात्रा शुरू की, तो मोदी को सोमनाथ से मुंबई तक यात्रा के समन्वय का काम सौंपा गया था। तब मोदी भाजपा की राष्ट्रीय चुनाव समिति के सदस्य थे। हालांकि उन शुरुआती वर्षों में उनकी भूमिका को गुजरात में केशुभाई पटेल, शंकर सिंह वाघेला और यहां तक कि काशीराम राणा जैसे भाजपा के दिग्गजों ने नजरअंदाज कर दिया था। लेकिन 2002 के गुजरात दंगों ने सब कुछ बदल दिया।”

मंदिर आंदोलन से नहीं रही मोदी की पहचान!

लिज़ मैथ्यू को ऐसा लगता है जब मोदी नई दिल्ली की राजनीति करने आए, तब भी वह राम मंदिर के मुद्दे के साथ खुद को जोड़ने के इच्छुक नहीं थे। मोदी ने 2014 के लिए अपने एजेंडे के रूप में विकास को चुना था। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में राम मंदिर के निर्माण को ‘सांस्कृतिक विरासत’ नामक उपशीर्षक (Subhead) में रखा था, जिसमें लिखा था, “भाजपा अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को सुविधाजनक बनाने के लिए संविधान के ढांचे के भीतर सभी संभावनाओं का पता लगाने के अपने रुख को दोहराएगी।”

2014 और 2019 में अपने दो सफल चुनाव अभियानों के दौरान मोदी ने तत्कालीन विवादित स्थल पर जाने से परहेज किया। 2014 में भाजपा उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक चुनावी लाभ की उम्मीद कर रही थी। मोदी ने अयोध्या के करीब एक चुनावी रैली को संबोधित भी किया, लेकिन ‘राम जन्मभूमि स्थल’ पर नहीं गए।

2019 में भी, जब एक बार फिर आम चुनाव का सामना करना था, मोदी ने ‘विवादित स्थल’ का एक भी दौरा नहीं किया। हालांकि उन्होंने 1 मई, 2019 को अयोध्या से सिर्फ 27 किमी दूर गोसाईंगंज में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित जरूर किया।

लिज़ मैथ्यू लिखती हैं, “प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में अयोध्या या राम मंदिर का जिक्र करने से परहेज किया। हालांकि जब 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर निर्माण के लिए रास्ता साफ कर दिया, तब प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि वह अयोध्या में निर्माण की पहल के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में पहचान चाहेंगे।”

बता दें क‍ि कोर्ट का फैसला आने के बाद 5 फरवरी, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद लोकसभा को बताया था कि सरकार मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बना रही है। पीएम मोदी ने कहा था, “मेरी सरकार ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र नामक एक ट्रस्ट स्थापित करने का फैसला किया है, जो राम मंदिर के निर्माण और संबंधित मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेगा।”

दिलचस्प है कि इस घोषणा से पहले भाजपा के वैचारिक एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले फैसलों की घोषणा अमित शाह कर रहे थे। जैसे- कश्मीर से आर्टिकल 370 को खत्म करने की घोषणा। लेकिन राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाए जाने की घोषणा पीएम मोदी ने खुद की।

इसके बाद जब राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन का मौका आया तब भी पीएम मोदी केंद्र में थे। भूमि पूजन के लिए वही बैठे थे। अब सूचना की 22 जनवरी, 2024 को होने वाली प्राण प्रतिष्ठा भी पीएम मोदी के हाथों ही होगी। प्राण प्रतिष्ठा कैसे होती है, यह जानने के लिए यहां क्लिक करें।

लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए विश्व हिंदू परिषद (VHP), भारतीय जनता पार्टी (BJP), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) समेत कई हिंदुत्ववादी संगठनों ने एक लंबा आंदोलन चलाया था, जिसका प्रमुख चरण लालकृष्ण आडवाणी की ‘रथ यात्रा’ थी।

Advani Rath Yatra and Modi
रथ यात्रा में इस्तेमाल हुई गाड़ी (Express Archive)

‘रथ यात्रा’ के लिए भाजपा ने एक वातानुकूलित टोयोटा गाड़ी को रथ का रूप दे दिया था। 25 सितंबर, 1990 (पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती) को आडवाणी ने रथ रूपी टोयोटा पर चढ़कर गुजरात के सोमनाथ से अपनी यात्रा की शुरुआत की थी।

Advani Rath Yatra and Modi
सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा के दौरान लालकृष्ण आडवाणी (Express photo)

योजना के मुताबिक, कई राज्यों से गुजरते हुए आडवाणी की यात्रा 10,000 किमी की यात्रा तय कर 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचती। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने 23 अक्टूबर के तड़के आडवाणी को बिहार के समस्तीपुर से गिरफ्तार कर लिया।

हालांकि आडवाणी के समर्थक अयोध्या की तरफ कूच करते रहे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 30 अक्टूबर को 75,000 कार सेवकों के साथ यात्रा अयोध्या पहुंची थी। राज्य की मुलायम सिंह यादव सरकार की मनाही के बावजूद कारसेवक अयोध्या के पुराने शहर की ओर जाने वाले पुल पर एकत्र हुए।

Advani Rath Yatra and Modi
6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद चढ़े कार सेवक (Express photo)

विहिप ने बाबरी मस्जिद के बगल वाली भूमि पर अपना समारोह आयोजित करने का वादा किया था, लेकिन कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद को गिराने के प्रयास में उस पर चढ़ाई कर दी। मुलायम सिंह ने अपनी पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया और कई कारसेवक मारे गए, लेकिन मस्जिद वहीं खड़ी रही। 

6 दिसम्बर 1992 को ऐसा नहीं हुआ। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं और हिंदू साधु-संतों की मौजूदगी में 16वीं सदी की संरचना को अवैध रूप से ध्वस्त कर दिया गया।