दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंंद केजरीवाल ने दिल्ली शराब नीति से जुड़े मनी लांन्ड्रिंग मामले में ईडी द्वारा अपनी गिरफ्तारी को चुनाव से जोड़ा है। उन्होंने अदालत में अपनी गिरफ्तारी की टाइमिंंग पर सवाल उठाया, जिसे ईडी ने खारिज किया। आप संयोजक केजरीवाल 15 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में हैं। ईडी ने 8 समन के बाद केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार कर लिया था। आप इसे चुनावी मुद्दा बना रही है। पर, कानूनी तौर पर यह कितना जायज है? सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन लोकुर ने इसे ईडी द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग का मामला बताया है।
न्यूज चैनल इंडिया टुडे के साथ बातचीत में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज मदन बी लोकुर ने केजरीवाल की ईडी द्वारा की गई गिरफ्तारी पर अपनी राय रखी।
केजरीवाल की गिरफ्तारी पर SC के पूर्व जज ने उठाए सवाल
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने जस्टिस (रि.) लोकुर से सवाल किया कि आप दिल्ली के मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी को किस तरह देखते हैं? क्या यह ताकत का दुरुपयोग है या जिस तरह से ईडी कह रही है कि यह मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने और इस केस को सॉल्व करने कि दिशा में एक जरूरी कदम है?
इस सवाल के जवाब में जस्टिस (रि.) मदन बी लोकुर ने कहा, “यह ईडी द्वारा उसकी शक्तियों का गलत इस्तेमाल ही है। यह मामला 2020 में शुरू हुआ और अब तक 1.5 साल का समय बीत चुका है। ईडी का कहना है कि वो अब तक यह मामला सुलझा नहीं पायी है जबकि उसने इतने लंबे समय तक मनीष सिसोदिया को जेल में रखा है, उन्हें यह केस सुलझाने से क्या चीज रोक रही है? अगर उनके पास सभी सबूत हैं तो वह चार्जशीट क्यों नहीं फाइल कर रहे हैं? उन्हें क्या करना है यह पता लगाने में उन्हें इतना समय क्यों लग रहा है? और वह कौन से मटेरियल हैं जिनके आधार पर वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया जाना चाहिए?”
चुनाव से पहले क्यों हुई केजरीवाल की गिरफ्तारी?
जज से बातचीत में एंकर ने कहा कि ईडी का कहना है कि उन्होंने अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से पहले सभी प्रक्रियाओं का पालन किया। इसी के तहत उसने अक्टूबर 2023 से अब तक केजरीवाल को 8 समन भेजे। साथ ही कई अन्य लोगों को गिरफ्तार किया ताकि इन सभी के आपस में लिंक की जांच कर सके।
एंकर ने कहा, “लोगों के इस सवाल पर कि केजरीवाल की गिरफ्तारी चुनाव से पहले की गयी है, ईडी ने कहा कि उसने पिछले 6 महीने में आप संयोजक को कई समन भेजे, पूरी प्रक्रिया का पालन किया।”
आरोपियों को जमानत मिलनी चाहिए- जस्टिस (रि.) लोकुर
दिल्ली शराब नीति से जुड़े मनी लांन्ड्रिंग मामले आप नेताओं को जमानत न मिलने के सवाल पर जस्टिस (रि.) मदन बी लोकुर ने कहा, “मुझे लगता है कि आरोपियों को जमानत मिलनी चाहिए, उन्हें जेल में क्यों रखा गया है। यह पहला सवाल है। उदाहरण के लिए क्या ऐसा कोई सबूत है जिससे मनीष सिसोदिया छेड़छाड़ कर सकते हैं या वो गवाहों को प्रभावित कर सकते है? अगर उन्हें ऐसा करना होता तो वह पहले ही कर लेते। ऐसे में ऐसा क्या है जो ईडी को इन सभी को गिरफ्तार करने पर मजबूर कर रहा है। और अदालतों को भी ऐसा क्या मजबूर कर रहा है जो वह कह रहे हैं कि इन लोगों को सलाखों के पीछे होना चाहिए।”
रिटायर्ड जस्टिस ने आगे कहा, “ईडी का कहना है कि अरविंद केजरीवाल सहयोग नहीं कर रहे हैं तो आप क्या चाहते हैं? यह किसी भी आरोपी का संवैधानिक अधिकार है कि वो चुप रहे। अगर आप किसी को गिरफ्तार करते हैं तो आप उससे यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वो सबकुछ कबूल कर ले।”
आरोपी को अपनी बेगुनाही साबित करने का अधिकार- जस्टिस लोकुर
एंकर का अगला सवाल था कि क्या पीएमएलए समस्या है या ईडी या कोई और ईडी का हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है यह समस्या है?
जवाब में रिटायर्ड जस्टिस ने कहा, “दोनों ही समस्या है। यह जरूरी नहीं है कि आप आरोपी को गिरफ्तार करें और अगर आपने किसी को गिरफ्तार किया है तो कानून के तहत उसे अपनी बेगुनाही साबित करने का अधिकार है। सामान्य तौर पर कोई तब तक बेगुनाह है जब तक कि वह दोषी साबित नहीं हो जाता लेकिन यहां यह पलट दिया गया है। दूसरी बात यह है कि आपने उन्हें गिरफ्तार सिर्फ इसलिए किया है क्योंकि आपके पास ऐसा करने का अधिकार है।”

राजदीप ने कहा, “क्या यह सच नहीं है सुप्रीम कोर्ट ने ही पीएमएलए के तहत यह अधिकार दिया है कि कुछ लोगों को सिर्फ संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता है और इस फैसले को अब तक रिव्यू नहीं किया गया है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो इसे रिव्यू करेगी।”
जस्टिस (रि.) लोकुर ने जवाब दिया, “सिर्फ संदेह काफी नहीं है, लॉ के अनुसार अधिकारी के पास कोई ठोस कारण होना चाहिए यह मानने के लिए शख्स आरोपी है और वह कारण न्यायोचित होना चाहिए। तो सिर्फ संदेह ही गिरफ्तारी के लिए काफी नहीं नहीं है इसके पीछे कानूनी कारण होने चाहिए।”
बता दें कि आप नेता संजय सिंंह भी इस मामले में गिरफ्तार किए गए थे, जो छह महीने बाद 3 अप्रैल को तिहाड़ जेल से रिहा हुए। नीचे फोटो पर क्लिक कर पढ़ें उनकी रिहाई पर चुनावी नजरिए से विश्लेषण:

‘किसी को आरोपी मानने के कारण लिखित में होने चाहिए’
एंकर ने कहा, “पीएमएलए के सेक्शन 19 के तहत ईडी को यह अधिकार है कि अगर उसके पास यह मानने के कारण हैं कि शख्स आरोपी है तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। इसे देखते हुए क्या आपको लगता है कि कानून में ज्यादा स्पष्टता की जरूरत है, सुप्रीम कोर्ट को बताना चाहिए कि रीज़न टू अरेस्ट का सही मतलब क्या है?”
जस्टिस (रि.) लोकुन ने जवाब दिया, “अगर अथॉरिटी कहती है कि उसके पास किसी को आरोपी मानने के कारण हैं तो वह लिखित में होने चाहिए। यह सब्जेक्टिव नहीं ऑब्जेक्टिव होना चाहिए। यह कारण न्यायोचित होने चाहिए।”
राजदीप ने आगे कहा, “क्या सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज होने के आधार पर आपको लगता है कि पीएमएलए और ईडी का वर्तमान सरकार द्वारा अपने राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार करने में गलत इस्तेमाल किया जा रहा है? यहां बहुत सारे बिजनेसमैन भी हैं जिन्हें छोड़कर सिर्फ राजनीतिक विरोधियों पर फोकस किया जा रहा है।
जस्टिस ने कहा, “ऐसा लग रहा है कि सिर्फ विरोधियों को ही निशाना बनाया जा रहा है।” जिस पर एंकर ने कहा, “ऐसे में क्या रास्ते हैं कि न्याय की हत्या न हो और इंसान की अपनी लिबर्टी भी बनी रहे जिसे जेल भेजा गया है।”
लोकुर ने कहा, “आप कानून को हथियार नहीं बना सकते। कानून की प्रक्रिया का पालन होना चाहिए। ऐसा लगता है कि कोर्ट उस प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहा है जो कानून में है और न ही ईडी से कह रहा है कि आप प्रक्रिया का पालन करो।”
एंकर ने कहा, “केजरीवाल के केस में ईडी का मानना है कि वह इस केस के मास्टरमाइंड हैं और दिल्ली के सीएम होने की वजह से ऐसी पोजीशन में हैं कि सबूतों से छेड़छाड़ कर सकें या गवाहों को प्रभावित कर सकें।” जिसके जवाब में पूर्व जज ने कहा, “सिर्फ ऐसा कहना काफी नहीं है कि वो सबूतों और गवाहों से छेड़छाड़ कर सकते हैं, इसके पीछे वाजिब कारण भी तो होने चाहिए।”
‘जेल से सरकार चलाना गलत नहीं’
एंकर ने पूर्व से पूछा, “क्या आपको ऐसा लगता है यह एक राजनीतिक दल को पीएमएलए के तहत लाकर खत्म करने की कोशिश है?” इस पर मदन लोकुर ने कहा कि ऐसा नहीं है। अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के सवाल पर मदन लोकुर ने कहा, “यह एक Constitutional Morality है पर अगर कोई ऐसा न कर अपनी सरकार जेल से भी चलाना चाहता है तो इसमें कुछ गलत नहीं है। बहुत से लोग Constitutional Morality को इग्नोर करते हैं इसमें कोई हर्ज नहीं है।”
राजदीप का अगला सवाल था कि “क्या आपको लगता है कि पीएमएलए का रिव्यू होना चाहिए? इसके जवाब में जस्टिस ने कहा कि हां यह तुरंत होना चाहिए।
राजदीप ने फिर पूछा- आप जजों के पैनल में होते तो मौजूदा तथ्यों के आधार पर अरविंद केजरीवाल को बेल देते, इसके जवाब में जस्टिस ने कहा कि हां जरूर, पर हो सकता है ऐसा कुछ और भी हो जो हम नहीं जानते हैं, जो पब्लिक डोमेन में न हो। पर जो तथ्य पब्लिक डोमेन में हैं उसके आधार पर बेल दे देता।
राजदीप ने विभिन्न दलों के नेताओं से भी सवाल किया कि क्या केस के इतने महीने बाद केजरीवाल की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए थी, क्या उन्हें बेल मिलनी चाहिए थी? जिसके जवाब में भाजपा प्रवक्ता आर पी सिंह ने कहा, “मदन लोकुर कानून से ऊपर नहीं हैं, अगर वो इस मामले में इतना जानते हैं तो कोर्ट में जाएं यहां स्टूडियो में नहीं।”