35 साल की उम्र में लेखिका-एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय को विश्व का अग्रणी साहित्यिक पुरस्कार ‘बुकर’ मिल चुका था। इस बात को 26 साल बीत चुके हैं। इस वर्ष (2023) 24 नवंबर को रॉय 62 साल की हो गईं। उनका जन्म मेघालय में हुआ था। उनकी मां सीरियाई मूल की ईसाई थीं, जिनका जन्म कोट्टयम में हुआ था। उन्होंने चेन्नई के क्वीन्स मेरी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था। पिता बंगाली हिंदू थे, जिन्हें शराब पीने की लत थी। वह चाय बागान का प्रबंधन करते थे।
अरुंधति रॉय जब दो साल की थी, तो उनके माता-पिता का तलाक हो गया था। अरुंधति अपनी मां मैरी रॉय और भाई के साथ पहले तमिलनाडु और फिर केरल चली गईं। केरल में मैरी रॉय ने लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला और एक मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में जानी गईं। अरुंधति ने अपने बचपन का अधिकांश समय अपनी मां की स्कूल में लड़कियों की देखभाल करते हुए बिताया।
अरुंधति रॉय की मां को ‘द मैरी रॉय केस’ के लिए भी याद किया जाता है। उन्होंने एक लंबी कानून लड़ाई लड़कर केरल में सीरियाई ईसाई महिलाओं को पिता की संपत्ति में बराबरी का हक दिलवाया था।

16 साल की उम्र में छोड़ा घर
रॉय की शुरुआती पढ़ाई बोर्डिंग स्कूल में हुई, जहां उन्हें एक डिबेटर के रूप में ख्याति मिली। वहां से वह सेक्रेटेरियल कॉलेज गईं, जिसे उन्होंने 16 साल की उम्र में छोड़ दिया और आर्किटेक्चर स्कूल में पढ़ने के लिए दिल्ली चली गईं।
अरुंधति रॉय एक इंटरव्यू में बताती हैं कि जिस तरह वह सोचती और व्यवहार करती थीं, उनके लिए परिवार के बीच रहना मुश्किल था। उन्होंने 16 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और आर्किटेक्चर पढ़ने के लिए दिल्ली आ गईं। रॉय ने 17 साल की उम्र में अपने क्लासमेट से शादी की। दोनों एक झुग्गी में रहती थी। फिर कुछ समय गोवा में रहे। इस रिश्ते से दो लड़कियों का जन्म हुआ।
द गार्जियन में प्रकाशित एक इंटरव्यू में अरुंधति अपने पहले पति के बारे में कहती हैं, “वह बहुत अच्छा लड़का था, लेकिन मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया।” रॉय ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स के लिए काम किया, जहां 1984 में उनकी मुलाकात फिल्म-निर्माता प्रदीप कृष्णन से हुई। जल्द ही दोनों ने शादी कर ली। पहले विवाह से रॉय को जो दो बेटियां हुई थीं, उनके पालन-पोषण में कृष्णन ने मदद की।
कुछ साल पहले रॉय अपने दूसरे पति से भी अलग हो गई थीं। लेकिन दोनों ने कभी तलाक नहीं लिया। उनका कहना है कि वह कृष्णन और दोनों बेटियों को परिवार मानती हैं। दोनों बेटियां अब बड़ी हो चुकी हैं। अरुंधति रॉय दिल्ली में अकेली रहती हैं।
इंटरव्यू में रॉय बताती हैं, “मैं खुद को पत्नी नहीं मानती, लेकिन तकनीकी रूप से मैं शादीशुदा हूं।” वह रुकती है, मुस्कुराती है और फिर कहती हैं, “जब मैं शादीशुदा थी, तब भी मैं खुद को पत्नी नहीं मानती थी।”
अलग क्यों रहती हैं? इस सवाल के जवाब में रॉय कहती हैं, “मेरा जीवन बहुत अजीब है। इसमें बहुत अधिक दबाव और विचित्रता है। मेरा कोई निश्चित ठिकाना नहीं है। मेरे और दुनिया के बीच मध्यस्थता करने वाला कोई नहीं है।”

अरुंधति रॉय क्या हैं?
अरुंधति रॉय को उनकी रचना ‘गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ के लिए पहला बड़ा पुरस्कार मिला था। फिल्म (इन व्हॉट एनी गिव्स इट देज़ वन्स) के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। वह आंदोलन करने के लिए जेल गईं। ऐसे में रॉय के कई साहित्यिक प्रशंसकों के लिए, पिछले दो-तीन दशक का उनका काम एक पहेली जैसा रहा है। क्या वह सचमुच एक साहित्यिक हस्ती हैं या उनका पहला उपन्यास एक प्रकार का संयोग था?
रॉय 35 वर्ष की थीं, जब उन्होंने उनकी पहली पुस्तक द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स प्रकाशित हुई। उसे खूब सराहा गया। यह एक अर्ध-आत्मकथात्मक कहानी है। बुकर पुरस्कार के अलावा, द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स की 42 भाषाओं में 8 मिलियन से अधिक प्रतियां बेची गईं। इस एक किताब ने एक अज्ञात पटकथा लेखक को एक ग्लोबल सेलिब्रिटी में बदल दिया।
तब से रॉय ने कई दर्जन निबंध और फिक्शन- नॉन फिक्शन किताबें लिखी हैं। फिल्में बनाई हैं। सरकारी भ्रष्टाचार, हिंदू राष्ट्रवाद, पर्यावरण को बचाने और असमानता के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है। उनके राजनीतिक कारण उन्हें जंगल में भारतीय माओवादियों के साथ रहने, मॉस्को में एडवर्ड स्नोडेन से मिलने, अफगानिस्तान में अमेरिकी विदेश नीति के खिलाफ अभियान चलाने, भारत के परमाणु परीक्षण कार्यक्रम के खिलाफ विरोध करने, वैश्वीकरण विरोधी आंदोलन की वकालत करने ले गए। उन्होंने कश्मीर की स्वतंत्रता और स्वदेशी भूमि अधिकारों के लिए भी अभियान चलाया है। कई प्रमुख समाचारों संस्थानों के लिए लिखा।
टाइम मैगजीन ने अरुंधति रॉय को दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया था। अपने राजनीतिक प्रशंसकों के लिए वह सैद्धांतिक प्रतिरोध की कट्टरपंथी वामपंथी आवाज हैं; उनके आलोचकों के लिए वह ‘देशद्रोही’ तक हैं। उन्हें अवमानना और राजद्रोह के आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ा है, जेल जाना पड़ा है और यहां तक की अपनी बचान के लिए थोड़े समय के लिए भारत से भागना भी पड़ा है।