राजस्थान में पांच ओबीसी समुदायों ने अलग-अलग आरक्षण की मांग के लिए 12 जून को भरतपुर में जयपुर-आगरा राजमार्ग पर उग्र प्रदर्शन किया था। यह विरोध-प्रदर्शन साल 2000 के मध्य में राज्य में गुर्जर आरक्षण विरोध की यादों को ताजा करता है।
साल 2008 में विरोध के बाद गुर्जर समुदाय अधिक पिछड़ा वर्ग (एमबीसी) श्रेणी के तहत पांच प्रतिशत आरक्षण प्राप्त करने में सफल रहा, लेकिन अब पांच ओबीसी समुदाय विरोध कर रहे हैं। जिसमें सैनी, कुशवाहा, माली, मौर्य और शाक्य शामिल हैं। ये पांचों जातियां 12 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रही हैं। जो सबसे बड़ी बात है, वो यह है कि गहलोत खुद माली समुदाय से हैं और बीजेपी ने इस मौके का फायदा उठाते हुए सीएम को उनके समुदाय की उनसे उम्मीदों के बारे में याद दिलाया है।
जैतरन से भाजपा विधायक अविनाश गहलोत (जो खुद माली समुदाय से आते हैं) ने कहा, “मैं समाज (समुदाय) के साथ हूं और आरक्षण की मांग का भी समर्थन करता हूं। मैं जल्द ही धरना स्थल का दौरा करूंगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यह भी याद रखना चाहिए कि उनके समुदाय को उनसे उम्मीदें हैं, क्योंकि वह तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं। वह अक्सर कहते हैं कि राजस्थान में वह अपने समुदाय का एकमात्र चेहरा हैं। उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि मुख्यमंत्री की वजह से समुदाय कई क्षेत्रों में कांग्रेस उम्मीदवारों का समर्थन करता है। हमें अपनी आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया जाना चाहिए।”
राज्य में ओबीसी आरक्षण 21 फीसदी है। जिसका सबसे ज्यादा फायदा जाट समुदाय को होता है। साथ ही कुमावत और यादव जातियों को भी आरक्षण मिलता है। क्योंकि विरोध करने वाले समुदाय जो वर्तमान में ओबीसी आरक्षण प्राप्त करते हैं, कुल मिलाकर या अलग से 12 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहे हैं। वहीं भरतपुर में प्रदर्शनकारी भी सरकार से अपने समुदायों की आबादी का निर्धारण करने के लिए एक सर्वेक्षण करने की मांग कर रहे हैं।
12 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहा सैनी समाज फिलहाल ओबीसी वर्ग को मिलने वाले आरक्षण में शामिल है। केंद्र में ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी और राज्य में 21 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है। राज्य में ओबीसी वर्ग में करीब 92 जातियां शामिल हैं। ओबीसी में शामिल सभी जातियों की जनसंख्या देखें तो राज्य का एक बड़ा तबका इस वर्ग में शामिल है। देश के कई अन्य राज्यों से दबी आवाज में जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की मांग उठाई जा रही है।
राजस्थान में प्रदेश आरक्षण संघर्ष समिति के नेता मुरारी लाल सैनी का दावा है, ‘सैनी, कुशवाहा, माली, मौर्य और शाक्य समुदायों की राजस्थान में सामूहिक आबादी 1.5 करोड़ से अधिक है। सरकार को हमारी जनसंख्या का निर्धारण करने के लिए एक सर्वेक्षण करना चाहिए। हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आरक्षण किस वर्ग के तहत दिया जाता है, लेकिन हम इन जातियों के लिए 12 प्रतिशत आरक्षण चाहते हैं। हम अन्य समुदायों के हिस्से से नहीं लेना चाहते हैं।’
सैनी का कहना है कि वर्तमान में समुदायों के पास राज्य विधानसभा में सीएम गहलोत सहित तीन विधायक हैं, वे राज्य के 200 निर्वाचन क्षेत्रों में 60 से अधिक सीटों को प्रभावित करते हैं, यह कहते हुए कि जब तक मांगें पूरी नहीं हो जाती, प्रदर्शनकारी हिलेंगे नहीं। उन्होंने कहा, “सरकार को मालूम करना चाहिए कि हमारे समाज के कितने लोग पुलिस में हैं, मास्टर हैं, इंजीनियर हैं, उद्योग धंधों में हैं और हमारे पास कितनी ज़मीनें हैं। सब मालूम करने के बाद जो बनता है वो दे दें।”
भाजपा विधायक अविनाश गहलोत का कहना है, ‘अगर सरकार ने आरक्षण की मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो इसका असर अगले साल होने वाले चुनाव में जरूर दिखेगा।’ हाल के दिनों में, ओबीसी समुदायों ने चुनावों के परिणाम तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उत्तर प्रदेश में उदाहरण के लिए छोटी जातियों ने यादव नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी जैसे प्रमुख जाति-आधारित दलों के खिलाफ मतदान किया है।