गिरीश कुबेर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 जून को भोपाल गए थे। यहां, उन्होंने शरद पवार की पार्टी एनसीपी पर 70000 करोड़ रुपए के घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया। प्रधानमंत्री के इस आरोप के ठीक 5 दिन बाद 2 जुलाई को पवार की पार्टी में दो फाड़ हो गई। शरद पवार के भतीजे अजीत पवार, महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना-बीजेपी की सरकार में डिप्टी सीएम बन गए।

NCP में दो फाड़ की असली कहानी

एनसीपी में दो फाड़ से ठीक एक साल पहले शिवसेना में भी यही हुआ था। तब एकनाथ शिंदे इसी तरह अलग हुए थे। महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी सरकार चलाने के लिए अजित पवार के समर्थन की कोई जरूरत नहीं थी, फिर पवार को इतनी हड़बड़ी में डिप्टी सीएम क्यों बनाया गया? इसकी असली वजह 2024 के लोकसभा चुनाव में छिपी है। दरअसल, एकनाथ शिंदे के साथ साल भर बिताने के बाद बीजेपी को एहसास हो गया था कि 2024 के चुनाव में उसे जैसे समर्थन की जरूरत होगी, शायद शिंदे गुट से वह हासिल न हो पाए। यही वजह है कि सरकार बनने के साल भर बाद भी न तो शिंदे कैबिनेट का विस्तार हो पाया और न तो नगरपालिका चुनावों पर कोई फैसला हुआ।

अजित पवार एनसीपी में थे, लेकिन 1999 से ही शरद पवार के लिए एक तरीके से मुसीबत बने थे। पार्टी लगातार उन्हें नजरअंदाज कर रही थी। न तो कोई महत्वपूर्ण पद दिया और न ही कोई अहम जिम्मेदारी। इसी के चलते अजित पार्टी से लगातार नाराज थे। खासकर 2019 में जिस तरीके से अजित पवार के समर्थन से देवेंद्र फडणवीस रातों-रात मुख्यमंत्री बन गए थे और उसके बाद अजित पवार फिर वापस आए, उस घटनाक्रम के बाद NCP का एक धड़ा लगातार उन्हें अपमानित कर रहा था।

किस इंतजार में बैठी थी बीजेपी?

दूसरा घटनाक्रम इसी साल मई का है, जब शरद पवार ने पार्टी के अध्यक्ष पद से हटने का ऐलान किया। इसके बाद से ही अजित पवार सही मौके का इंतजार कर रहे थे। पवार की इस मंशा को बीजेपी भली-भांति समझ रही। बीजेपी का प्लान बिल्कुल सिंपल था- अजित पवार के जरिए शरद पवार को किनारे लगाना, क्योंकि बीजेपी के लिए महाराष्ट्र की राजनीति में पवार आखिरी रोड़ा थे। बीजेपी लंबे समय से इंतजार में थी और सही मौका तलाश रही थी।

इसे उदाहरण से समझते हैं। साल 2014 में जब देवेंद्र फडणवीस ने राज्य में अपनी चुनावी यात्रा शुरू की तो हर रैली में अजित पवार के सिंचाई घोटाले का जिक्र किया, तमाम आरोप लगाए। लेकिन जब वह मुख्यमंत्री बने तो अजित को सजा दिलाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। बीजेपी ने जानबूझकर अजित पवार पर लगे तमाम आरोपों को नजरअंदाज किया, क्योंकि उसे पता था कि केंद्र की सत्ता में बने रहने के लिए महाराष्ट्र कितना जरूरी है।

शरद पवार के खिलाफ उन्हीं का ‘खेल’

एनसीपी में जिस तरीके से दो फाड़ हुई, उस घटनाक्रम को देखें तो बीजेपी ने शरद पवार के खिलाफ उन्हीं वाला दांव- ‘एक तीर से दो शिकार’ चला। अजित पवार के अलग होने से न सिर्फ एनसीपी कमजोर हुई, बल्कि एकनाथ शिंदे भी जिस तरीके से आश्वस्त हो गए थे उन्हें भी एक मैसेज मिल गया।

अब क्या करेंगे शिंदे?

महाराष्ट्र सरकार को अब अजित पवार का समर्थन जरूर मिल गया है, लेकिन शिवसेना के जो विधायक एकनाथ शिंदे के साथ आए थे उनमें से तमाम अभी भी उस वादे का पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं जो उनसे किया गया था। ज्यादातर को मंत्री पद या कोई और रसूखदार पद देने का वादा किया गया था, लेकिन अब तक कैबिनेट का विस्तार ही नहीं हो पाया है। ऐसे में अब शिंदे के सामने भी चुनौती है।