2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा (BJP) को सत्ता से बाहर करने के लिए संयुक्त उम्मीदवार की रणनीति की चर्चा छिड़ी है। इस बीच, 23 जून को पटना में नीतीश कुमार की अगुआई में विपक्षी दलों का सम्मेलन हो रहा है। हालांकि, इसमें सभी पार्टियां शामिल नहीं हो रही हैं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव नतीजों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि संपूर्ण विपक्ष एक हो जाए तो भी बीजेपी को सत्ता से दूर रखना आसान नहीं होगा।
2019 में तो यह बिल्कुल संभव नहीं था। इसकी वजह यह है कि बीजेपी ने 303 में से 224 सीटें 50 फीसदी से ज्यादा वोट पाकर जीती थीं। 79 सीटें ऐसी जीतीं, जहां बीजेपी को 50 फीसदी से कम वोट मिले थे, लेकिन इनमें से केवल 48 सीटें ही ऐसी थीं जहां दूसरे और तीसरे नंबर के उम्मीदवारों को मिले कुल वोट बीजेपी उम्मीदवार से ज्यादा थे। बीजेपी द्वारा जीती सात राज्यों की 106 सीटें ऐसी थीं जहां लड़ाई में तीसरा दल कोई था ही नहीं। छह राज्यों का हाल ऐसा था जहां विपक्षी एकता नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर थी।
संयुक्त उम्मीदवार से BJP को रोक सकता है विपक्ष?
विपक्षी एकता की कवायद के बीच जिस बात की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह यह कि अगर 2024 में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष एक संयुक्त उम्मीदवार उतारे तो एंटी बीजेपी वोट को बिखरने से रोका जा सकता है और जीत हासिल की जा सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव यानी 2019 में बीजेपी के खाते में कुल 303 सीटें आई थीं, जिसमें से 224 सीटें ऐसी थीं जहां बीजेपी ने 50 फीसदी या उससे ज्यादा वोट शेयर हासिल किया था। इससे पहले 2014 में 136 सीटों पर ऐसी स्थिति थी। अगर 2019 या 2014 में इन सीटों पर विपक्ष की तरफ से साझा उम्मीदवार उतारा भी जाता तब भी बीजेपी इन सीटों पर नहीं हारती।
2019 में विपक्ष एक होता तो भी बीजेपी को नहीं पड़ता फर्क
2019 के लोकसभा चुनाव में 79 सीटें ऐसी थीं, जहां बीजेपी का वोट शेयर 50% से कम था। इन 79 सीटों में से दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले विपक्षी पार्टी के उम्मीदवार का वोट शेयर संयुक्त रूप से 48 लोकसभा क्षेत्रों में ही बीजेपी से ज्यादा था। इसका मतलब यह है कि अगर बीजेपी की विरोधी दो बड़ी पार्टियों में कोई समझौता हुआ भी होता तो 2019 में बीजेपी की कुल सीटों पर कुछ खास असर नहीं पड़ता।
इन 7 राज्यों में BJP को कैसे देंगे चुनौती?
2019 में बीजेपी ने जो 303 सीटें जीती थीं उनमें से 106 सीटें 7 राज्यों से हैं। इन राज्यों में गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं। यहां बीजेपी की सीधी लड़ाई कांग्रेस से होती है। हिंदुस्तान टाइम्स और TCPD-IED की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन 7 राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के अलावा कोई तीसरा दल ऐसा नहीं है, जिसका वोट शेयर 5 फ़ीसदी से ज्यादा हो। इसका मतलब यह है कि अगर पिछले चुनाव में संयुक्त विपक्ष जैसी कोई स्थिति बनती भी तो इन राज्यों में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने वाली कोई पार्टी ही नहीं मिलती या परिणाम पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता।
इन 6 राज्यों में गठबंधन क्यों है मुश्किल?
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में 124 सीटें 6 राज्यों से आई थीं। इसमें उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, दिल्ली, कर्नाटक और तेलंगाना शामिल हैं। इन राज्यों के सियासी समीकरण पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा, पश्चिम बंगाल में टीएमसी, कांग्रेस और लेफ्ट हैं, ओडिशा में बीजेडी और कांग्रेस, तेलंगाना में बीआरएस व कांग्रेस, दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस, कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस मुख्य विपक्षी दल हैं। इस समीकरण को देखकर ऐसा लगता है कि इन राज्यों में विपक्षी गठबंधन नामुमकिन तो नहीं लेकिन बहुत मुश्किल है और हुआ भी तो नतीजों पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है।
उदाहरण के तौर पर 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा साथ लड़ी थीं, तो वहीं कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस ने मिलकर बीजेपी का मुकाबला किया था। लेकिन दोनों राज्यों में बीजेपी को कोई खास नुकसान नहीं हुआ।
विपक्ष को सिर्फ दो राज्यों से उम्मीद
फिलहाल बिहार और महाराष्ट्र ही दो ऐसे राज्य दिख रहे हैं, जहां विपक्षी गठबंधन के चलते बीजेपी को थोड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। इन दोनों राज्यों में 88 लोकसभा सीटें हैं। 2019 में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने इनमें से 80 सीटें अपने नाम की थीं। 2019 के बाद से अब दोनों राज्यों का सियासी समीकरण बदल चुका है। एक तरफ बिहार में बीजेपी की मुख्य सहयोगी पार्टी रही जदयू अलग हो चुकी है, तो महाराष्ट्र में शिवसेना में भी दो फाड़ हो गई है। ऐसे में पिछले रिजल्ट के आधार पर अंदाजा लगाना मुश्किल है।