Sheikh Hasina News: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने मानवता के खिलाफ अपराध का दोषी पाते हुए मौत की सजा सुनाई है। हसीना पर पिछले साल जुलाई-अगस्त में हुए विद्रोह के दौरान मानवता के विरुद्ध अपराध के आरोप तय किए गए थे। भारत में निर्वासन में रह रहीं शेख हसीना की गैर मौजूदगी में उनके खिलाफ केस चलाया गया था। जस्टिस मोहम्मद गुलाम मुर्तजा मजूमदार की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने यह फैसला सुनाया है।

सोमवार (17 नवंबर) को सुनाए गए 453 पृष्ठों के फैसले में अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने 78 वर्षीय हसीना और दो सह-आरोपियों को प्रदर्शनकारियों के खिलाफ घातक बल के प्रयोग की अनुमति देने और पिछले जुलाई के विरोध प्रदर्शनों के दौरान उनके खिलाफ अत्याचारों को रोकने में विफल रहने का दोषी पाया।

भ्रष्टाचार के आरोपों और सरकारी नौकरियों में बेहद अलोकप्रिय कोटा प्रणाली को लेकर महीनों तक चले विरोध प्रदर्शनों के बाद पिछले जुलाई में बांग्लादेश में हसीना का 15 साल का शासन अचानक समाप्त हो गया। तब से वह भारत में निर्वासन में रह रही हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ आरोप

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर) द्वारा फरवरी में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल बांग्लादेश में हुए विरोध प्रदर्शनों में 46 दिनों की अवधि में 1,400 से अधिक लोग मारे गए थे। हजारों लोग घायल हुए थे।

रिपोर्ट में कहा गया है, “यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि पूर्व सरकार के अधिकारियों, उसके सुरक्षा और खुफिया तंत्र ने पूर्व सत्तारूढ़ दल से जुड़े हिंसक तत्वों के साथ मिलकर गंभीर और व्यवस्थित मानवाधिकार उल्लंघन किए हैं।”

शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद, मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार ने पिछली सरकार द्वारा किए गए अपराधों के लिए “न्याय” दिलाने का वादा किया। हसीना पर उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया गया और उनके (और अन्य आरोपियों के) विरुद्ध पांच आरोप लगाए गए-

भड़काऊ भाषण देना

प्रदर्शनकारियों को दबाने और खत्म करने के लिए घातक हथियारों के इस्तेमाल का आदेश देना

रंगपुर में बेगम रोकेया विश्वविद्यालय के छात्र अबू सईद की गोली मारकर हत्या

ढाका के चंखरपुल क्षेत्र में छह प्रदर्शनकारियों की गोली मारकर हत्या

अशुलिया में छह लोगों को जलाकर मार डाला गया

डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार , हसीना को सभी आरोपों में दोषी ठहराया गया है। उन्हें पिछले वर्ष 5 अगस्त को चंखरपुल में छह निहत्थे प्रदर्शनकारियों की गोली मारकर हत्या करने के मामले में धारा 4 के तहत मृत्युदंड दिया गया।

हसीना ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इनकार किया है। पिछले हफ़्ते द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में उन्होंने बांग्लादेश में मौजूदा सत्ताधारी सरकार को विरोध प्रदर्शनों के लिए जिम्मेदार ठहराया था।

उन्होंने कहा, “विरोध प्रदर्शनों के शुरुआती दिनों में मेरी सरकार ने छात्रों को स्वतंत्र और सुरक्षित तरीके से प्रदर्शन करने की अनुमति दी थी… हालांकि, मामला तब बिगड़ गया जब कट्टरपंथी तत्वों ने भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया… विदेशी भाड़े के सैनिक मौजूद थे और उन्होंने उकसावे की भूमिका निभाई… मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि यूनुस और उनका समर्थन करने वाले विद्रोह को भड़काने में शामिल थे।”

2008 के आम चुनाव के दौरान शेख हसीना की अवामी लीग ने 1971 के मुक्ति संग्राम (Liberation War) के दौरान पाकिस्तान के साथ सहयोग करने वाले “युद्ध अपराधियों” पर मुकदमा चलाने का संकल्प लिया था। दो-तिहाई बहुमत से सत्ता में आने के बाद, हसीना ने 2009 में आईसीटी की स्थापना की।

न्यायाधिकरण ने कथित युद्ध अपराधियों के खिलाफ जोरदार कार्रवाई की, तथा उसे जनता का पूरा समर्थन प्राप्त हुआ। 2010 के दशक के आरंभ में बांग्लादेश में हुए जनमत सर्वे में न्यायाधिकरण की स्थापना को हसीना द्वारा उठाए गए सबसे “सकारात्मक” कदमों में से एक बताया गया।

कई लोगों को उनकी अनुपस्थिति में दोषी ठहराया गया। अन्य को हिरासत में लेकर सज़ा सुनाई गई। न्यायाधिकरण ने कई लोगों को आजीवन कारावास और मौत की सज़ा सुनाई, जिनमें से ज़्यादातर बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी और हसीना की प्रमुख राजनीतिक विरोधी जमात-ए-इस्लामी से जुड़े थे।

जबकि जमात निस्संदेह पाकिस्तानी हितों के प्रति सहानुभूति रखती थी और संभवतः युद्ध अपराधों में शामिल रही थी, आलोचकों का आरोप है कि आईसीटी को हसीना द्वारा राजनीतिक विरोधियों पर हमला करने के लिए एक उपकरण के रूप में प्रभावी ढंग से तैनात किया गया था।

यहां तक कि तटस्थ विदेशी पर्यवेक्षकों ने भी न्यायाधिकरण के मुकदमों की वैधता पर सवाल उठाए। उदाहरण के लिए, ह्यूमन राइट्स वॉच की एशिया शाखा के निदेशक ब्रैड एडम्स ने नवंबर 2012 में कहा था, “कथित युद्ध अपराधियों के खिलाफ मुकदमे बेहद समस्याग्रस्त हैं, और न्यायाधीशों की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवालों से घिरे हैं।”

पिछले साल हसीना के अपदस्थ होने के बाद उनके द्वारा स्थापित न्यायाधिकरण, जिसे उनके राजनीतिक विरोधियों ने “समझौतापूर्ण” बताया था। उसको तुरंत उनके खिलाफ कर दिया गया। पूर्व प्रधानमंत्री के ढाका से भागने के दस दिन बाद, आईसीटी ने हसीना सहित 10 लोगों के खिलाफ हत्या, नरसंहार और यातना सहित मानवता के विरुद्ध अपराधों के आरोपों में जांच शुरू कर दी।

अभियोजन पक्ष ने 135 पृष्ठों का आरोपपत्र प्रस्तुत किया, जिसके साथ 8,747 पृष्ठों के दस्तावेज और साक्ष्य भी थे। न्यायाधिकरण ने अपना फैसला सुनाने से पहले महीनों तक गवाहियां सुनीं।

क्या भारत हसीना को बांग्लादेश को सौंपेगा?

हालांकि यह फैसला महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री पर तत्काल कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हसीना, जो पिछले साल से दिल्ली में एक अज्ञात स्थान पर रह रही हैं। वो तब तक भारत में ही रहेंगी, जब तक कि नई दिल्ली ढाका के प्रत्यर्पण अनुरोध को स्वीकार नहीं कर लेता। और ऐसा निकट भविष्य में होने की संभावना कम ही है।

हसीना भारत के लिए हमेशा से सहयोगी की भूमिका में रही हैं। उनके नेतृत्व में, नई दिल्ली और ढाका के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक और मानवीय आदान-प्रदान फल-फूल रहा था। इसके अलावा, अपनी पूर्ववर्ती खालिदा ज़िया के विपरीत , हसीना भारत के सुरक्षा हितों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध थीं और बांग्लादेश में सुरक्षित पनाहगाहों से पूर्वोत्तर में सक्रिय सभी उग्रवादी संगठनों पर नकेल कसती थीं।

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भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के अनुच्छेद 8 में प्रत्यर्पण अनुरोध को अस्वीकार करने के लिए कई आधार दिए गए हैं। जिनमें ऐसे मामले भी शामिल हैं, जिनमें आरोप “न्याय के हित में सद्भावनापूर्वक नहीं लगाया गया है” या सैन्य अपराधों के मामले में जो “सामान्य आपराधिक कानून के तहत अपराध नहीं हैं”।

हालांकि भारत ने अभी तक ढाका के अनुरोध पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन संधि उसे इनकार करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश देती है। चूंकि ढाका में अभी तक कोई औपचारिक उत्तराधिकारी सरकार नहीं बनी है। बांग्लादेश में अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने हैं। नई दिल्ली के लिए हसीना को वापस सौंपने के किसी भी बांग्लादेशी दबाव के आगे झुकने की संभावना नहीं है।

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