Nepal Govt Collapsed: नेपाल में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बैन करना प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार के लिए भारी पड़ा है। युवा प्रदर्शनकारियों के दबाव के चलते केपी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। वहीं हालात इतने ज्यादा बिगड़ गए कि नेपाली ससंद में हिंसक प्रदर्शनकारियों ने घुसकर आग लगा दी। केवल नेपाली संसद ही नहीं बल्कि काठमांडू की कई ऊंची इमारतों पर कब्जा करके वहां इन उग्र प्रदर्शनकारियों ने आग लगा दी।
केपी शर्मा ओली से पहले उनकी कैबिनेट और गठबंधन सरकार के कई मंत्रियों ने भी इस्तीफा दे दिया था। नेपाल में यह आग केवल सोशल मीडिया ब्लॉक होने से नहीं भड़की, बल्कि यह युवाओं की आजादी छीनने की कोशिश के खिलाफ गुस्से का प्रतीक के मानी जा रही है। सोमवार को प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षाबलों ने जो कार्रवाई की थी, उसके चलते लगभग- 19-20 लोगों की मौत हुई और 300-400 लोग घायल हुए थे।
आज की बड़ी खबरें | Nepal Protest LIVE
भारत के पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता
युवाओं के गुस्से और ज्यादा उग्र होने की वजह भी प्रशासन की कार्रवाई को माना जा रहा है। केपी शर्मा ओली का इस्तीफा राष्ट्रपति द्वारा स्वीकार कर लिया गया है लेकिन अब यहां राजनीतिक अस्थिरता ने भारत की टेंशन भी बढ़ा दी है। भारत सरकार नेपाल की स्थिति पर नजर बनाए हुए है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने भारतीय मूल के लोगों को सलाह दी है कि वे प्रशासन के निर्देशों का पालन करें। अहम बात यह है कि नेपाल के पहले भारत के पड़ोस में कई तख्तापलट हुए हैं। इसमें बांग्लादेश से लेकर अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका जैसे देश शामिल हैं, जो कि सामरिक तौर पर भारत के लिए अहमियत रखते हैं।
यह भी पढ़ेंः कौन हैं बालेन शाह? प्रदर्शनकारी कर रहे प्रधानमंत्री बनाने की मांग, पीएम ओली दे चुके हैं इस्तीफा
बांग्लादेश में गिरी थी शेख हसीना की सरकार
पड़ोसी देशों में तख्तापलट में हालिया मामला बांग्लादेश का है। बांग्लादेश में साल 2022 से ही राजनीतिक माहौल देखने को मिला है। मई 2024 में तो जनता का गुस्सा चरम पर पहुंच गया, राजधानी ढाका समेत कई शहरों में शेख हसीना सरकार के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए थे।
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि अवामी लीग और उसकी छात्र इकाई लंबे समय से विपक्ष को दबा रही है। नतीजा ये हुआ था कि 5 अगस्त 2024 को शेख हसीना सरकार का तख्तापलट हो गया था। इसके बाद से राज्य में अंतरिम सरकार की जिम्मेदारी मोहम्मद यूनुस के हाथ में हैं और अभी भी वहां राजनीतिक अस्थिरता है, क्योंकि आए दिन मुल्क में विरोध प्रदर्शन होते रहते हैं।
यह भी पढ़ेंः नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने दिया इस्तीफा, संसद में घुसे प्रदर्शनकारियों ने लगा दी आग
जब पाकिस्तान में बिगड़े थे हालात
राजनीतिक अस्थिरता के मामले में भारत का दूसरा पड़ोसी देश पाकिस्तान भी मुसीबतें खड़ा करता रहा है। मई 2023 में तोशाखान मामले में इमरान खान की गिरफ्तारी ने देशभर में आग लगा दी थी। लाहौर से लेकर इस्लामाबाद तक सरकारी इमारतें जलने लगीं, यहां तक कि सेना के ठिकाने भी निशाने पर आ गए थे। इसके चलते देश में इंटरनेट बंद कर दिया गया और कर्फ्यू जैसे हालात हो गए थे।
इस राजनीतिक अस्थिरता के चलते ही यह वो मौका था, जब पहली बार यह वो पल था जब पाकिस्तान की जनता ने पहली बार खुलेआम सेना के खिलाफ गुस्सा दिखाया था। इस प्रदर्शन में 10,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी तो वहीं हजारों की संख्या में लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
यह भी पढ़ेंः कौन हैं सुदन गुरुंग, जिन्होंने नेपाल में खड़ा कर दिया Gen-Z का विशाल विरोध प्रदर्शन
श्रीलंका मे आर्थिक संकट
पाकिस्तान से पहले भारत के दक्षिण में पड़ोसी मुल्क श्रीलंका के भी हालात ठीक नहीं रहे हैं। 2022 में श्रीलंका में आर्थिक संकट ने जनता के सब्र का बांध तोड़ दिया था। वहां पर बिजली कटौती, महंगाई और ईंधन की कीमतों ने विरोध की ऐसी चिंगारी भड़काई कि उसके बाद मुल्क में तख्तापलट हो गया। विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोग कोलंबो में राष्ट्रपति भवन तक जा पहुंचे और तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ गया था।
श्रीलंका में हुए इस आंदोलन को ‘अरगलाया आंदोलन’ के नाम से जाना गया। आर्थिक संकट के चलते हुए इस आंदोलन ने श्रीलंका की राजनीतिक तस्वीर बदल दी थी। वहीं श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति और पीएम रानिल विक्रमसिंघे को इस्तीफा देना पड़ा था। उन पर सरकारी फंड के दुरुपयोग के लिए सलाखों के पीछे हैं।
अफगानिस्तान में तालिबान का राज
भारत के एक और मित्र राष्ट्र यानी अफगानिस्तान का तख्तापलट भी अपने हैरान करने वाला है। अगस्त 2021 में अमेरिका की सेना के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो गया था। अमेरिका के इसी फैसले के बाद पड़ोसी मुल्क में तालिबान का कब्जा हो गया था। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में तालिबान का शासन हो गया तो राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए, तब से वहां लोकतांत्रिक व्यवस्था की जगह एक कठोर शासन कायम है।
म्यांमार में तख्तापलट और लोकतंत्र की लड़ाई
भारत के नॉर्थ-ईस्ट में से सटे म्यांमार में फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट हुआ था। देश में तब से हालात अस्थिर हैं और अब वहां सेना का सत्ता पर काबिज है। जनता द्वारा चुनी गई नेता आंग सान सू की जेल में हैं। म्यांमार छात्र, नागरिक समूह और भिक्षु सड़कों पर उतरकर लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं। देश में इन हालातों में गोलीबारी, इंटरनेट ब्लैकआउट, गिरफ्तारियां और मीडिया पर पाबंदी आए दिन चर्चा का विषय रहती हैं। देश पर अंतरराष्ट्रीय दबाव होने के बाद भी सैन्य शासन सत्ता में है, जो कि वहां के आम लोगों के लिए बर्बादी का सबब बन गया है।
यह भी पढ़ेंः नेपाल के हालातों पर भारत करीब से रख रहा नजर, MEA ने भारतीय नागरिकों की दी यह सलाह