चीन पिछले काफी समय से भारत के दबदबे वाले हिंद महासागर में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इन्हीं कोशिशों के तहत चीन ने म्यांमार के साथ शनिवार को 33 महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इन समझौतों के तहत चीन को हिंद महासागर में अपनी पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी, वहीं भारत की सुरक्षा के दृष्टि से यह चिंता की बात है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शनिवार को म्यांमार की काउंसलर आंग सन सू की से मुलाकात की और दोनों देशों के बीच 33 अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इनमें राजनीति, व्यापार, निवेश और सांस्कृतिक मामलों में सहयोग प्रमुख है। चीन अपनी महत्वकांक्षी योजना ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ (BRI) के तहत म्यांमार में इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में सहयोग करेगा।

चीन म्यांमार में म्यांमार-चाइना इकॉनोमिक कॉरिडोर का निर्माण करेगा। जिससे दोनों देशों के बीच यातायात, ऊर्जा, उत्पादन आदि क्षेत्रों में सहयोग बढ़ेगा। माना जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट के तहत चीन हिंद महासागर में अपनी पहुंच बढ़ा सकता है। चीन का दक्षिणी पश्चिमी इलाका इस परियोजना से हिंद महासागर से जुड़ जाएगा। चीन पाकिस्तान में भी ऐसी ही परियोजना CPEC का निर्माण कर चुका है।

उल्लेखनीय है कि सीपेक के अलावा चीन श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को भी करीब 100 साल के लिए लीज पर ले चुका है। दरअसल चीन की पॉलिसी रही है कि वह आर्थिक मदद के बहाने हिंद महासागर के कई देशों में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। चीन यह सब व्यापार के नाम पर कर रहा है, लेकिन इससे भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा पैदा हो रहा है।

म्यांमार की सैन्य सरकार के साथ भी चीन के काफी अच्छे संबंध थे, लेकिन लोकतंत्र आने के बाद चीन का प्रभाव म्यांमार में कुछ कम हुआ। लेकिन रोहिंग्या मामले को लेकर विश्व समुदाय की आलोचनाओं के निशाने पर आए म्यांमार को एक बार फिर चीन का समर्थन मिला है।

म्यांमार की काउंसलर आंग सान सू की ने अपने एक बयान में कहा कि ‘कुछ देश मानवाधिकार, धर्म आदि के मामलों को लेकर अन्य देशों के आंतरिम मामलों में हस्तक्षेप करते हैं, लेकिन म्यांमार इस तरह की कोई दखल बर्दाश्त नहीं करेगा।’ चीन के अखबार चाइना डेली ने इस बात की जानकारी दी है।