Bangladesh Hindus Protest: बांग्लादेश में हिंसक विरोध प्रदर्शन और तख्तापलट के बाद अंतरिम सरकार बन गई। इसके चीफ नोबेल से सम्मानित मोहम्मद यूनुस हैं लेकिन शेख हसीना की सरकार गिरने और अंतरिम सरकार बनने तक का वक्त बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यकों के लिए काफी मुश्किल भरा रहा था। भारत सरकार ने भी शांति की अपील की थी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तो एक कमेटी भी बनाई थी। मुल्क की बर्बादी देख स्थानीय हिंदू भारत की शरण में आने को व्याकुल थे लेकिन सरकार बनते ही स्थिति बदलती दिख रही है। जो हिंदू पहले भारत आने को बेताब थे, वे अब सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए ढाका की सड़कों पर उतर आए हैं।

दरअसल, आरक्षण के मसले से शुरू हुआ बांग्लादेश में छात्रों का विरोध प्रदर्शन प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे तक चला गया। इस हिंसक विरोध प्रदर्शन के चलते शेख हसीना को आनन-फानन में ढाका छोड़ मित्र देश दिल्ली आना पड़ा। यूके और यूएस से झटका मिलने के बाद वे आज भी शरण के लिए कोई सुरक्षित देश तलाश रही हैं। दूसरी ओर उनकी गैर मौजूदगी में बांग्लादेश में जमकर हिंसा हुई। स्थिति इतनी ज्यादा बदतर हो गई कि पुलिस की सुरक्षा तक के लिए सेना को तैनात करना पड़ा था।

Bangladesh Violence में कट्टरपंथियों ने हिंदुओं को बनाया था निशाना

हसीना सरकार के खिलाफ अचानक हिंसक हुआ ये विरोध प्रदर्शन उनके देश छोड़ने के बाद कट्टरपंथियों द्वारा भी हाइजैक किया गया, जिन्होंने मुल्क के अल्पसंख्यकों और मुख्यतः हिंदुओं को निशाने पर लिया। इन प्रदर्शनकारियों ने कई मशहूर कलाकारों के घरों तक में घुसकर लूट-पाट और मारपीट की। प्रदर्शनकारयों द्वारा आम हिंदुओं को निशाना बनाया और कई की जान तक ले ली।

इतना ही नहीं, विरोध प्रदर्शन की आड़ में कट्टर मंसूबों वाले इन लोगों ने हिंदुओं के देवी-देवताओं के मंदिरों और उनकी मूर्तियों और तक को नहीं छोड़ा, जिसके चलते बांग्लादेश में 1 करोड़ से ज्यादा हिंदुओं की सुरक्षा पर खतरा मंडराने के संकेत मिलने लगे थे। इसको लेकर भारत सरकार ने भी चिंता जाहिर की थी और विदेश मंत्रालय ने इस पर नजर बनाए रखने का भी आश्वासन दिया था।

अंतरिम सरकार के गठन के बाद बदल रही स्थिति

इस पूरे घटनाक्रम के बीच मुल्क में सेना की देख-रेख में अंतरिम सरकार बनी है, जिसका मकसद में देश में स्वतंत्र रूप से चुनाव कराना है। इस सरकार के प्रमुख नोबल से सम्मानित मोहम्मद यूनुस बने। यह दिलचस्प है कि उन्होंने इस पूरे आंदोलन छात्रों का सरकार के खिलाफ रोष बताते हुए समर्थन दिया था। हालांकि सरकार बनने के बाद उन्होंने हिंसा खत्म कर कानून व्यवस्था कायम करने की बात कही थी।

हालिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने और भारत भाग जाने के बाद अपने समुदाय के लोगों पर पर जारी हमलों के विरोध में लाखों हिंदू बांग्लादेश की राजधानी ढाका और चटगांव की सड़कों पर उतर आए। इन हिंसा का विरोध करते हुए हिंदुओं की सुरक्षा के लिए सरकार के प्रयासों और आश्वासन की मांग की है।

मंदिरों, दुकानों और हिंदू नेताओं तक पर हुए हमले

बता दें कि 5 अगस्त से जारी हिंसक हमलों के चलते माना जा रहा है कि कई हिंदुओं के घरों और दुकानों पर हमला किया गया, जिसमें कई लोग घायल हुए और मौतें भी हुईं। विरोध प्रदर्शन के दौरान लोगों ने मुल्क के कई हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ की और शेख हसीना की पार्टी दो हिंदू नेताओं तक को मौत के घाट उतार दिया। इन सारे घटनाक्रमों को लेकर ही हिंदू समेत अल्पसंख्यकों की लाखों की भीड़ ने राजधानी ढाका में विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों के पास तख्तियां थीं, जिन पर लिखा था कि ‘हिंदुओं को भी जीने का अधिकार है।’

कुछ ऐसी ही स्थिति बांग्लादेश के दूसरे बड़े शहर चटगांव की भी रही। यहां भी बड़ी संख्या में हिंदू प्रदर्शनकारी स्थानीय अधिकारियों और वैश्विक संगठनों से सुरक्षा की मांग करते हुए सड़कों पर उतरे। उन्होंने अपने मंदिरों की सुरक्षा की भी मांग की। इसके साथ ही लंदन और फिनलैंड समेत दुनिया के कई हिस्सों से विरोध प्रदर्शन की खबरें आईं हैं, जिसके चलते अंतरिम सरकार बैकफुट पर आ गई।

मोहम्मद यूनुस बोले – हिंदुओं को भी जीने का हक

मोहम्मद यूनुस ने रंगपुर शहर एक कार्यक्रम के दौरान हिंदुओं को लेकर कहा कि क्या वे अल्पसंख्यक इस देश के लोग नहीं हैं। आप यानी छात्र इस देश को बचाने में पूरी तरह से आगे रहे हैं। क्या आप कुछ परिवारों को नहीं बचा सकते। आपको कहना चाहिए कि कोई भी उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकता। वे मेरे भाई हैं, हमने साथ मिलकर लड़ाई लड़ी है और हम साथ ही रहेंगे। युनुस ने कहा कि आपकी कोशिशों को बेकार करने के लिए कई सारे लोग खड़े हुए हैं। आप इस बार मत गिरिए।

Bangladesh Violence पर शुरू से थी भारत सरकार की नजर

5 अगस्त यानी जिस दिन से बांग्लादेश में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे, उसी दिन से भारत सरकार और विदेश मंत्रालय इस मुद्दे पर एक्टिव था। हिंदुओं की हत्या और उनके साथ ज्यादतियों का मुद्दा विदेश मंत्रालय ने भी उठाया था। इतना ही नहीं, पड़ोस में अंतरिम सरकार बनते ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार इस पूरे विवाद पर कुछ बोला था। उन्होंने सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस को बधाई तो दी थी, लेकिन हिंदुओं के साथ हो रही प्रताड़ना का मुद्दा उठा दिया था।

इतना ही नहीं, भारतीय गृहमंत्री अमित शाह ने बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर एक कमेटी तक बना दी थी, जो कि बांग्लादेश के अपने समकक्ष अधिकारियों के साथ हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर चर्चा करेगी। इसके अलावा बांग्लादेश के साथ लगने वाली सभी सीमाओं को पूरी तरह से सील कर दिया गया था। इसकी वजह यह थी कि भारत में असामाजिक तत्वों के साथ ही बांग्लादेश में प्रताड़ना का शिकार हो रहे हिंदू सैकड़ों की संख्या में नॉर्थ ईस्ट और पश्चिम बंगाल से सटे बांग्लादेश बॉर्डर पर आ गए थे। ये सभी अलग-अलग नारे लगाकर भारत सरकार से अपनी जान बचाने के लिए भारत में शरण की अपील कर रहे थे।

भारत आने को थे बेताब, अब खुलकर कर रहे विरोध

अब दिलचस्प बात यही है कि जो प्रताड़ित बांग्लादेशी हिंदू कल तक किसी भी कीमत पर भारत में दाखिल होना चाहते थे, उनमें अचानक इतनी हिम्मत कहां से आ गई, कि वे बांग्लादेश में ही विरोध प्रदर्शन करने लगे। राजनीतिक और कूटनीतिक मामले के विशेषज्ञ बताते हैं कि अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादती, का मुद्दा भारत ने वैश्विक पटल पर उठाया। इसके अलावा बॉर्डर पर होने वाली घुसपैट की वीडियो भी सामने आए, जिससे तीन दिन पहले बनी अंतरिम सरकार के लिए वैश्विक स्तर पर चुनौतियां बढ़ गईं।

भले ही, इस वक्त शेख हसीना भारत में हो लेकिन बांग्लादेश की सेना हो या वहां की राजनीतिक पार्टियां… कोई भी भारत से टकराव लेने की स्थिति में नहीं है। माना जा रहा है कि इसके चलते ही मोहम्मद यूनुस को इस्लामिक कट्टरपंथ की राह पर हिंदुओं को निशाना बनाने वाले लोगों को चेतावनी का लहजा दिखाना पड़ा।