भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात पर सबकी नजर रहती है। यह मुलाकात, जो इस सदी के पहले वर्ष 2001 से लेकर अब तक कई बार हो चुकी है, अभी तक विभाजन के जख्म सहते-रहते दोनों देशों के बाशिंदों और दूसरी ऐसी ताकतों की निगाहों का मरकज रहती है जो इन जख्मों को नासूर में बदलने की नीयत से इस पर हिंसा का नमक लगातार छिड़कते रहते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से देश के लोगों को असीम उम्मीदें हैं, जो काले धन में से अपने हिस्से के 15 लाख रुपए लेने से लेकर दोनों देशों के बीच शांति तक फैली हुई हैं। लिहाजा इस बार की मुलाकात मामूली नहीं है। देश के लोगों को इससे बेशुमार उम्मीदें हैं, फिर चाहे वह पाकिस्तान में चल रहे आतंकी शिविरों का ध्वस्त करना हो, 26/11 के मुंबई हमलों के दोषी जकी-उर-रहमान लखवी को भारत के सुपुर्द करना हो, दाऊद इब्राहीम की गर्दन तक सुरक्षा एजंसियों के हाथों की पहुंच बनाना हो, सीमा पर युद्धविराम के लगातार हो रहे उल्लंघन पर अंकुश लगाना हो या फिर कश्मीर से पाक की नापाक नजर को हटाना हो।

मोदी के देश के शीर्ष पद पर होने से यह उम्मीदें और भी ऊंची उठ गई हैं। जिस तरह से प्रधानमंत्री की पहल पर यह बैठक हुई और वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की अगवानी के लिए पहले से मौजूद रहे, उससे यह आशा जगी है कि इस शिष्टता और सहनशीलता का पाकिस्तान माकूल जवाब देगा और यह बैठक मछुआरों की रिहाई और चिकनी-चुपड़ी बातों तक सीमित होकर नहीं रह जाएगी। यह सब तो 2001 से लेकर अब तक होता ही रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी की शरीफ से यह दूसरी मुलाकात है। पहली औपचारिक रही जब उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशियाई देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया था। शरीफ ने प्रधानमंत्री के न्योते को स्वीकारा भी था। यह औपचारिकता भी बहुत अहम थी क्योंकि देश के प्रधानमंत्री के पद पर मोदी की मौजूदगी को पड़ोसी देश में बैठी कुछ ताकतें अपने तरीके से पारिभाषित कर रही थीं।

इस मुलाकात में उपहारों के आदान प्रदान से दोनों देशों के विदेश सचिव मिल बैठकर इन संभावनाओं को तलाश करेंगे कि आपसी बातचीत आगे कैसे बढ़े। यह दीगर बात है कि इस मुलाकात का जोश पाकिस्तानी उपायुक्त की अलगाववादी हुर्रियत नेताओं के साथ मुलाकात के साथ ही ठंडा पड़ गया था।

पिछले एक अरसे से पाकिस्तान जिस तरह जुर्रत के साथ नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम का उल्लंघन कर रहा है और जैसी भड़काऊ बयानबाजी पाकिस्तान के नेता कर रहे हैं, उसके चलते मुलाकात के लिए मोदी का हाथ बढ़ाना इस तथ्य को साबित करने के लिए काफी है कि भारत दोनों देशों के बीच सद्भावना बनाए रखना चाहता है।

मोदी की शरीफ से मुलाकात से पहले पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का यह बयान आया कि उनके पास परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का विकल्प खुला है। ‘हमारे हथियार महज सजावट की वस्तु नहीं।’ आसिफ का यह बयान दोनों देशों के बीच किसी भी बातचीत के बीच बड़ा रोड़ा हो सकता था लेकिन मोदी ने शरीफ की ओर हाथ बढ़ाया।

इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि मुलाकात के बाद भी शरीफ के राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने यह कह कर मुलाकात की सार्थकता पर सवालिया निशाना लगाने की भरपूर कोशिश की कि अगर कश्मीर बातचीत के एजंडे पर नहीं, तो बात हो ही नहीं सकती।

दिलचस्प यह भी है कि मोदी और शरीफ की रूस के उफा में हुई बैठक के दौरान अजीज मौजूद थे। दोनों देशों के नेताओं के बीच की मुलाकात का जहां अमेरिका ने स्वागत किया वहीं चीन ने लखवी के मामले में पाकिस्तान का साथ दिया।

ऐसा माना जा रहा था कि जिस तरह से भारत ने पाकिस्तान को लखवी की मुंबई धमाकों में संलिप्तता के सबूत मुहैया कराए हैं, उनके चलते इस मुद्दे पर पाकिस्तान देश का पूरा सहयोग करेगा लेकिन बैठक के बाद भी इस दिशा में पाकिस्तान का रुख कोई सकारात्मक नहीं दिखा।

बैठक के समांतर ही नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से धड़ल्ले से युद्धविराम का उल्लंघन और आरोपों का सिलसिला जारी रहा। पाकिस्तान के नेताओं की बदजुबानी भी बदस्तूर है। लेकिन इन तमाम बातों के बावजूद इस मुलाकात से जागी उम्मीदों पर कोई खास फर्क नहीं।

इसका प्रमुख कारण यह है कि देश में भाजपा और खासतौर पर मोदी के प्रधानमंत्री पद पर सत्तासीन होने के बाद दोनों देशों के बीच जो एक बिना वजह के तनाव की स्थिति विश्लेषक बना रहे थे, वह सच साबित नहीं हुई। मोदी ने इस मामले में जबर्दस्त उदारता का उदाहरण पेश किया है।

पहले शरीफ को शपथ ग्रहण का न्योता दिया और उफा में दोबारा दोस्ती का हाथ बढ़ाया। भारतीय जनता पार्टी के पिछले शासन काल में भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के बीच आगरा में मुलाकात हुई परंतु इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।

कारगिल युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच युद्ध से एक दशक पहले हुई लाहौर करार की मूल भावना ही तार-तार हो गई। आगरा में दो दिवसीय सम्मेलन से उभरी सभी आशाएं तभी धूलि-धूसरित हो गईं और फिर आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला अनवरत जारी रहा।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कई बार अपनी इस भावना का सार्वजनिक इजहार भी किया कि दोनों देशों के बीच की तनाव की डोर को तोड़ना चाहते हैं। वे विभिन्न सम्मेलनों में मुशर्रफ, यूसुफ रजा गिलानी व आसिफ अली जरदारी सरीखे शक्तिशाली नेताओं से उनके शासन काल में मिले। यहां तक कि दोनों देशों में तनाव की एक अहम वजह बने रहने वाले क्रिकेट के खेल के माध्यम से भी गतिरोध को तोड़ने की कोशिश हुई लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। मोहाली में नेता मिले पर खेल के बहाने कूटनीति की कोशिश कोई खास कामयाब नहीं हुई।

प्रचंड बहुमत के साथ देश में सत्ता संभालने के बाद मोदी की इस पहल से दोनों देशों के बीच उम्मीद की किरण फिर दिखाई दे रही है। जो बैठक आधे घंटे में खत्म होनी थी, एक घंटे से भी ज्यादा चली। बैठक से पहले और बैठक के बाद सीमा पार से जो शाब्दिक विषवमन हुआ था, उसका इस पर कोई असर अभी तक तो दिखाई नहीं दिया। सीमा पर देश के जवान अपने तरीके से जवाब दे रहे हैं। विदेश सचिव ने यह साफ कर दिया है कि तमाम बयानबाजी के बावजूद बातचीत की प्रक्रिया जारी रहेगी पर सीमा पर पाक को मिलेगा करारा जवाब।

मुद्दा यही है कि कमरे में दोनों नेताओं के बीच जो भी बातचीत हुई, उस पर पाकिस्तान की सेना का क्या रुख रहता है। पाकिस्तान की राजनीति में सेना की भूमिका सदा अहम रही है। जो भी होगा आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा। लेकिन इस बीच उम्मीद की लौ जलती रहेगी। अब देखना यही है कि यह प्रज्वलित होकर नाउम्मीदी के अंधकार को चीर जाती है या
फिर बुझ के धुंआ हो जाती है।

रंजिश ही सही…

पाकिस्तान से बातचीत एक सकारात्मक पहल है। द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने की तरफ यह एक और कदम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच उफा में बातचीत चीजों के सकारात्मक होने की तरफ संकेत करती है। उम्मीद है इससे दोनों देशों में विश्वास बहाली का नया रास्ता खुलेगा।… राजनाथ सिंह, गृह मंत्री, भारत

हमारे हथियार संग्रहालय में रखने के लिए नहीं हैं। वे इस्तेमाल के लिए हैं। भारत यदि हम पर युद्ध थोपता है तो उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा और इसमें हथियारों का इस्तेमाल भी किया जाएगा। भारत के मंत्री जानबूझकर उकसावे बाले बयान दे रहे हैं क्योंकि वे पाकिस्तान का ध्यान आतंकवाद से चल रही उसकी लड़ाई से हटाना चाहते हैं।… ख्वाजा आसिफ, रक्षा मंत्री, पाकिस्तान

कश्मीर और पानी से जुड़े मसलों के बिना भारत से कोई बात नहीं हो सकती। इन मुख्य बातों को एजंडे में रखना ही होगा। यह मुद्दे पाकिस्तान के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और हम (जम्मू) कश्मीर के लोगों को अकेला नहीं छोड़ सकते। दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य बनाने के लिए नियंत्रण रेखा पर तनाव कम करना भी जरूरी है।… सरताज अजीज, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, पाकिस्तान

सीमा पर पाकिस्तान की तरफ से युद्ध विराम का उल्लंघन हो रहा है। हमारे (कांग्रेस) मन में मोदी सरकार की विदेश नीति, खासकर पूर्वी पड़ोसी (पाक) को लेकर शंकाएं हैं। हम बातचीत का समर्थन करते हैं और सरकार की कोशिश को कम करके नहीं आंकना चाहते लेकिन पुराने अनुभव को ध्यान में रखना भी जरुरी है।… सलमान खुर्शीद, पूर्व विदेश मंत्री

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नवाज शरीफ के उफा (रूस) से पाकिस्तान लौटने पर भले सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने कश्मीर को एजंडे में शमिल किए बिना भारत से किसी भी तरह की बातचीत से इनकार किया, रूस में शरीफ और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच मुलाकात के महत्त्व को कम करके नहीं आंका जा सकता।

पहले भी बातचीत और विश्वास बहाली उपायों से दोनों पड़ोसी मुल्कों ने संबंध सुधारने की पहल की है, हालांकि इसके नतीजे सकारात्मक नहीं निकल सके हैं। यह देखना होगा कि सीमा पार से घुसपैठ की क्या स्थिति रहती है और सीमा पर युद्धविराम के समझौते का पाकिस्तान कितनी ईमानदारी से पालन करता है।