World Thalassemia Day 2024 Date: थैलेसीमिया (Thalassemia) खून से जुड़ी एक अनुवांशिक बीमारी है जो माता-पिता से बच्चों तक पहुंचती है। इस बीमारी में व्यक्ति के शरीर में हीमोग्लोबिन बनना बंद हो जाता है। ऐसे में दुनिया भर के लोगों में इस गंभीर बीमारी को लेकर जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से हर साल 8 मई के दिन को विश्व थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day) के तौर पर मनाया जाता है। आइए समझते हैं थैलेसीमिया क्या है, इसके लक्षण क्या हैं और किस तरह से इस बीमारी का इलाज किया जाता है-

कैसे होती है थैलेसीमिया की समस्या?

नारायणा हॉस्पिटल, गुरुग्राम में कंसल्टेंट -पीडियाट्रिक हेमेटोलॉजी ऑन्कोलॉजी और बीएमटी, डॉ. मेघा सरोहा बताती हैं, ‘हर साल 10,000 से अधिक बच्चे थैलेसीमिया के सबसे गंभीर रूप के साथ पैदा होते हैं। ये बीमारी शरीर में हीमोग्लोबिन और रेड ब्लड सेल्स का उत्पादन करने की क्षमता को प्रभावित करती है। ऐसे में थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति को समय-समय पर खून चढ़ाने की जरूरत होती है।’

कितनी खतरनाक हो सकती है ये बीमारी?

इस सवाल का जवाब देते हुए एक्शन कैंसर अस्पताल में कंसल्टेंट हेमेटोलॉजी, हेमाटो-ऑन्कोलॉजी और बीएमटी डीएमसी डॉ. आकाश खंडेलवाल बताते हैं, ‘क्योंकि थैलेसीमिया होने पर पेशेंट को बार-बार बाहर से खून चढ़ाने की जरूरत होती है। ऐसे में खून चढ़ाने के कारण रोगी के शरीर में अतिरिक्त आयरन तत्व जमा होने लगते हैं, जो लंबे समय पर हृदय, लिवर और फेफड़ों में पहुंचकर उन्हें गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।’

ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सावधान

नारायणा हॉस्पिटल, हावड़ा की एक अन्य कंसल्टेंट-हेमेटोलॉजी, हेमेटो ऑन्कोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, डॉ सौम्या मुखर्जी के मुताबिक, थैलेसीमिया से पीड़ित रोगी में उम्र बढ़ने के साथ-साथ अलग-अलग लक्षण नजर आ सकते हैं और ये तमाम लक्षण रोग की गंभीरता पर भी निर्भर करते हैं। हालांकि, कुछ सामान्य लक्षणों में एनीमिया के साथ बच्चे की जीभ और नाखून पीले पड़ने लगना, बच्चे का विकास रुक जाना, अपनी उम्र से काफी छोटा और कमजोर दिखना, अचानक वजन गिरने लगना है और सांस लेने में तकलीफ होना जैसी समस्याएं शामिल हैं।

क्या इस बीमारी का इलाज संभव है?

इस सवाल का जवाब देते हुए धर्मशिला नारायणा हॉस्पिटल, दिल्ली की सीनियर कंसल्टेंट ब्लड एंड मैरो ट्रांसप्लांटेशन, हेमेटोलॉजी सरिता रानी जायसवाल ने बताया, ‘थैलेसीमिया को जड़ से हटाना संभव है। डॉक्टर रोग की गंभीरता, लक्षणों और मरीज को हो रही समस्याओं के आधार पर थैलेसीमिया का इलाज करते हैं।’

डॉ. जायसवाल बताती हैं, ‘पेशेंट्स के शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर कम ना हो, इसके लिए थोड़े-थोड़े समय पर खून चढ़ाया जाता है, अतिरिक्त आयरन को शरीर से बाहर निकलने का प्रयास किया जाता है, फोलिक एसिड जैसे सप्लीमेंट्स की सलाह दी जाती है और आवश्यकता पड़ने पर बोन मैरो ट्रांसप्लांट आदि के माध्यम से भी इलाज किया जाता है।

Disclaimer: आर्टिकल में लिखी गई सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य जानकारी है। किसी भी प्रकार की समस्या या सवाल के लिए डॉक्टर से जरूर परामर्श करें।