उपवास या फॉस्टिंग करना संपूर्ण सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। फास्ट करने से बॉडी डिटॉक्सीफाई होती है और पाचन तंत्र ठीक रहता है। फास्ट करने से मानसिक और शारीरिक हेल्थ दुरुस्त रहती है। भारत में फास्ट करने का चलन सदियों पुराना है। मुख्य रूप से देवी-देवताओं की श्रद्धा के रूप में लोग उपवास करते हैं। उपवास से मतलब है कि एक निश्चित अवधि के लिए भोजन का सेवन नहीं करना। मौजूद समय में वजन कम करने के लिए लोग फास्ट रखते हैं। वजन कंट्रोल करने के लिए एक खास तरह के उपवास का चलन ज़ोरों पर है वो है ‘water fasting’यानि जल उपवास। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि इस उपवास में भोजन का सेवन नहीं करते बल्कि उसके बजाए पानी,बिना चीनी वाली ब्लैक कॉफी या चाय जैसे तरल पदार्थों का सेवन करना शामिल है।

कई रिसर्च में ये बात सामने आ चुकी है कि वाटर फॉस्टिंग के सेहत को बेहद फायदे हैं। वाटर फॉस्टिंग करने से क्रॉनिक बीमारियों का जोखिम कम होता है और शरीर को बॉडी की वसा को तोड़ने में मदद मिलती है। हालांकि इस फॉस्टिंग को लेकर सीमित सबूत मौजूद हैं। ये फॉस्टिंग ज्यादा करने पर नुकसान भी पहुंचा सकता है।

वाटर फॉस्टिंग क्या है?

वाटर फॉस्टिंग का मतलब है कि आप पानी के अलावा किसी चीज का सेवन नहीं कर सकते। लोग इस उपवास को या तो धार्मिक कारणों से या फिर सेहत को फायदा पहुंचाने के लिए करते हैं। इस फास्ट में ऑटोफैगी भी शामिल है। ऑटोफैगी आपके शरीर की पुरानी और क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को दोबारा नवीनीकृत करता है। लेमन डिटॉक्स क्लींज एक प्रकार का वाटर फास्ट है, जिसमें लोग केवल एक सप्ताह तक दिन में कई बार नींबू का जूस, पानी, लाल मिर्च और मेपल सिरप पीते हैं।

अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल, बेंगलुरु में स्पोर्ट्स एंड क्लिनिकल डायटीशियन-न्यूट्रिशनिस्ट शरण्य शास्त्री ने इंडियन एक्सप्रेस को वाटर फॉस्टिंग के फायदे और नुकसान के बारे में बताया है। आइए एक्सपर्ट से जानते हैं कि वाटर फॉस्टिंग कैसे सेहत को फायदा पहुंचा सकती है और इसे ज्यादा करने से बॉडी को कौन-कौन से नुकसान पहुंच सकते हैं।

वाटर फॉस्टिंग सेहत को कैसे प्रभावित करती है:

एक्सपर्ट के मुताबिक वाटर फॉस्टिंग 24 घंटे से लेकर 3 दिनों तक की जा सकती है। फॉस्टिंग का ये समय कई स्थितियों जैसे व्यक्ति की भावनात्मक / मानसिक भलाई, तनाव का स्तर, शारीरिक गतिविधि का स्तर, भूगोल, जलवायु, स्वास्थ्य की स्थिति और बॉडी के हाइड्रेट रहने की स्थिति पर निर्भर करता है। कुछ लोगों को वाटर फॉस्टिंग करने से बचना चाहिए। दिल, किडनी रोग, माइग्रेन, गाउट, टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज और प्रेग्नेंट महिलाओं को इस उपवास को करने से बचना चाहिए।

वाटर फॉस्टिंग के बाद डाइट कैसी होनी चाहिए:

एक्सपर्ट के मुताबिक वाटर फॉस्टिंग कम समय के लिए करने की कोशिश करें। खासकर अगर आपका पहला उपवास है तो ज्यादा लम्बा नहीं होना चाहिए। उपवास के बाद खाना भरपेट नहीं खाएं बल्कि स्मॉल पोर्शन लें। इसके अलावा प्रतिदिन दो से तीन लीटर पानी पिएं वरना डिहाइड्रेशन की परेशानी हो सकती है। उपवास के बाद ज्यादा हैवी फूड्स नहीं खाएं बल्कि स्मूदी और स्मॉल मील का सेवन करें। फास्ट के बाद का समय बेहद मायने रखता है। अगर फास्ट के बाद भरपेट खा लिया जाए तो रिफीडिंग सिंड्रोम का खतरा हो सकता है,जो एक खतरनाक स्थिति हैं। इस स्थिति में शरीर के द्रव और इलेक्ट्रोलाइट स्तरों में तेजी से परिवर्तन होता हैं।

जल उपवास से जुड़े कुछ जोखिम:

  • चूंकि वाटर फॉस्टिंग में कोई कैलोरी शामिल नहीं है, इसलिए आप बहुत जल्दी वजन कम कर सकते हैं।
  • वाटर फॉस्टिंग से बॉडी में डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ सकता है,क्योंकि पानी के सेवन का एक बड़ा हिस्सा हमारे द्वारा खाए जाने वाले फूड्स से आता है। इस फॉस्टिंग में मतली, सिरदर्द, कब्ज, चक्कर आना और लो ब्लड प्रेशर की परेशानी हो सकती है।
  • यह यूरिक एसिड के उत्पादन को बढ़ा सकता है, गाउट के हमलों से जुड़ा एक स्वास्थ्य जोखिम है।
  • वाटर फॉस्टिंग इटिंग डिसऑर्डर की परेशानी को बढ़ा सकता है।