भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच भारत बायोटेक की कोवैक्सिन (Covaxin) और जाइडस कैडिला की जाइकोव-डी (ZyCoV-D) ने उम्मीद की किरण जगाई है। इन दोनों वैक्सीन को ह्यूमन ट्रायल की अनुमति भी मिल गई है। ऐसे में संभावना है कि अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो अगले 15 से 18 महीनों के बीच इन वैक्सीन को लाइसेंस भी मिल जाएगा। आपको बता दें कि पिछले कुछ सालों में भारत वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग के हब के रूप में उभरा है। यूनिसेफ को सप्लाई होने वाली करीब 60% वैक्सीन भारत ही सप्लाई करता है। ऐसे में भले ही कोरोना वायरस की वैक्सीन दुनिया का कोई देश बना ले, लेकिन भारतीय निर्माताओं की मदद के बगैर बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव नहीं है।
वैक्सीन बनाने में जुटी हैं 6 भारतीय कंपनियां: इस वक्त दुनिया भर की 140 से ज्यादा वैक्सीन डेवलपमेंट के अलग-अलग स्टेज में हैं। इसमें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और अमेरिका की एक कंपनी की वैक्सीन रेस में सबसे आगे है। इन दोनों कंपनियों ने वैक्सीन के मास प्रोडक्शन के लिए भारतीय कंपनियों से करार भी किया है। भारत की 6 कंपनियां और संस्थान वैक्सीन की रेस में शामिल हैं। नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी और सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलीक्युलर बायोलॉजी के मुताबिक इस वक्त छह भारतीय कंपनियां कोविड-19 का टीका विकसित करने में जुटी हैं। बता दें कि दुनिया भर की 140 में से 11 वैक्सीन ह्यूमन ट्रायल के फेस में भी पहुंच चुकी हैं, जिसमें भारत की कोवैक्सिन और जाइकोव-डी भी शामिल है।
क्यों वैक्सीन है जरूरी? रोगाणु के ऐन्टिजन और ह्यूमन इम्यून सेल द्वारा निर्मित एंटीबॉडी साड़ी और उसी से मिलते-जुलते ब्लाउज की मैचिंग जोड़ी की तरह होते हैं। हर रोगाणु की अपनी खास संरचना होती है, जिसे एंटीजन कहा जाता है। किसी भी रोगाणु से संक्रमित होने के बाद, व्यक्ति का इम्यून सिस्टम एंटीबॉडी का निर्माण करता है जो एंटीजन की तरह होती है। जिस तरह एक दुकानदार साड़ी-ब्लाउज के तमाम रंग और डिजाइन रखता है, ठीक इसी तरह हमारे इम्यून सिस्टम में भी 10 प्रकार के एंटीबॉडी हैं। यदि रोगाणु एक जाना-पहचाना दुश्मन है, तो इम्यून सिस्टम स्टॉक से मिलते-जुलते डिज़ाइन का उपयोग करती है। मिलान हो जाने के बाद रोगाणु निष्क्रिय हो जाता है। अब यह संक्रमित नहीं कर सकता है।
अब वैक्सीन की बात करें तो ये कृत्रिम रूप से हमारे इम्यून सिस्टम की मेमोरी को प्रेरित करने का काम करता है। यानी जब शरीर में कोई रोगाणु प्रवेश करता है, तो ये प्रतिरक्षा प्रणाली को उससे मेल खाती एंटीबॉडी और प्रतिरक्षात्मक स्मृति को विकसित करने के लिए उत्प्रेरित करता है। भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन – निष्क्रिय वायरस वैक्सीन विकसित करने के लिए उस वायरस का उपयोग किया है जिसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी द्वारा एक भारतीय मरीज से अलग किया गया था।
कोरोना वायरस को कैसे रोकेगी वैक्सीन? कोरोनाा वायरस अपने स्पाइक प्रोटीन की मदद से ह्यूमन सेल्स को संक्रमित करता है। वायरस का स्पाइक प्रोटीन व्यक्ति के सांस लेनेेे के रास्ते की कोशिकाओं की सतह पर एसीई 2 रिसेप्टर्स के साथ बंध जाता है। जब वायरस एकरूप (फ्यूज) हो जाता है तो वायरल जीनोम मानव कोशिका में प्रवेश कर जाता है, जहां सिर्फ दस घंटों में लगभग एक हजार वायरस बन जाते हैं। ये शिशु वायरस पास की कोशिकाओं में जाते हैं। इस संक्रमण को तभी रोका जा सकता है जब स्पाइक प्रोटीन को निष्क्रिय करने में सक्षम होते हैं।