30 की उम्र पार करने के बाद शरीर में कई प्राकृतिक और हार्मोनल बदलाव शुरू हो जाते हैं। ये बदलाव धीरे-धीरे होते हैं, इसलिए अक्सर लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यही बदलाव वजन बढ़ने, थकान, पेट की चर्बी और मेटाबॉलिज्म स्लो होने की बड़ी वजह बनते हैं। 30 साल की उम्र के बाद अक्सर देखा गया है कि लोगों की बॉडी फैलने लगती है। उनकी कमर का साइज बढ़ जाता है और पेट अपने शेप से बाहर दिखने लगता है। महिलाओं में खासतौर पर ये बदलाव देखने को मिलते हैं जबकि खानपान और वर्कआउट रूटीन में कोई खास बदलाव नहीं होता।
कैलिफोर्निया स्थित गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ सेठी, जो AIIMS, हार्वर्ड और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से प्रशिक्षित हैं, ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर उम्र बढ़ने के साथ पेट की चर्बी बढ़ने की वजह बताई है, और ये भी बताया है कि इसे घटाना पहले के मुकाबले ज्यादा मुश्किल क्यों हो जाता है।
इंस्टाग्राम पोस्ट में डॉ. सेठी ने बताया वही खाना ज्यादा पेट की चर्बी बढ़ाने लगता है जो हम नॉर्मल खाते है और वही वर्कआउट पहले जैसे नतीजे नहीं देता जो हम रेगुलर करके बॉडी को फिट रखते हैं। एक्सपर्ट के मुताबिक यह बदलाव अचानक अनुशासन की कमी की वजह से नहीं होता, बल्कि इसके पीछे शरीर में होने वाली स्वाभाविक जैविक प्रक्रियाएं जिम्मेदार होती हैं। आइए जानते हैं कि 30 साल के बाद अचानक पेट की चर्बी क्यों बढ़ने लगती है और इसके लिए कौन-कौन से कारण जिम्मेदार हो सकते हैं।
30 साल की उम्र के बाद पेट बढ़ने का मुख्य कारण
मांसपेशियों का कम होना
30 की उम्र के बाद हर दशक में शरीर की मांसपेशियां प्राकृतिक रूप से 3 से 8 प्रतिशत तक कम हो जाती हैं। चूंकि मांसपेशियां कैलोरी बर्न करने और ब्लड शुगर को कंट्रोल रखने में अहम भूमिका निभाती हैं, इसलिए इनके घटने से शरीर की रोज़ाना ऊर्जा खपत कम हो जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि शरीर में ग्लूकोज को इस्तेमाल करने का 70 से 80 प्रतिशत काम मांसपेशियां करती हैं। जब मसल मास कम हो जाता है, तो ग्लूकोज ज्यादा देर तक खून में बना रहता है और पेट के आसपास फैट के रूप में जमा होने लगता है।
इंसुलिन सेंसिटिविटी है जिम्मेदार
पेट की चर्बी बढ़ने की एक और बड़ी वजह है इंसुलिन सेंसिटिविटी में कमी। डॉ. सेठी के मुताबिक यह क्षमता हर दशक में लगभग 4–5 प्रतिशत घट जाती है। इसका मतलब यह है कि पहले जितना कार्बोहाइड्रेट खाने से कोई असर नहीं होता था, वही कार्बोहाइड्रेट अब ब्लड शुगर को तेजी से बढ़ाता हैं और फैट जल्दी जमा होने लगता है,खासतौर पर पेट के आसपास।
हार्मोन भी हैं जिम्मेदार
पेट के पास चर्बी जमा होने के लिए हार्मोनल बदलाव भी बड़ी भूमिका निभाते हैं। ग्रोथ हार्मोन, टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन का स्तर घटता है, जबकि कॉर्टिसोल हार्मोन बढ़ने लगता है। डॉ. सेठी कहते हैं कि ये कॉम्बिनेशन पेट के अंदर स्ट्रांग चर्बी जमा होने के लिए अनुकूल होता है। समय के साथ ये विसरल फैट में बदल जाता है जो सेहत के लिए खतरनाक होता हैं। ये फैट अंगों के चारों ओर जमा हो जाता है और इंसुलिन रेजिस्टेंस व सूजन को बढ़ाता है। ये प्रभाव खासतौर पर फैटी लिवर, प्रीडायबिटीज, डायबिटीज या हाई ट्राइग्लिसराइड्स वाले लोगों में ज्यादा देखा जाता है।
कैसे पहचानें कि पेट की चर्बी विसरल फैट है?
साइटकेयर हॉस्पिटल्स, बेंगलुरु में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. आदित्य वी. नरगुंड ने बताया विसरल फैट वो चर्बी होती है, जो लिवर और आंतों जैसे आंतरिक अंगों के आसपास जमा होती है। यह मेटाबॉलिक रूप से ज्यादा सक्रिय होती है। डॉ. नरगुंड के मुताबिक सबक्यूटेनियस फैट, जो त्वचा के नीचे होता है और जिसे उंगलियों से दबाया जा सकता है, उससे अलग विसरल फैट पेट को सख्त और बाहर की ओर उभरा हुआ बना देता है। यह सिर्फ वजन घटाने से आसानी से कम नहीं होता। क्लिनिकल तौर पर, बढ़ती कमर इसकी शुरुआती पहचान है। डॉ. नरगुंड बताते हैं कि भारतीय वयस्कों में पुरुषों की कमर 90 सेमी और महिलाओं की 80 सेमी से ज्यादा होना, अतिरिक्त विसरल फैट की ओर इशारा करता है। अल्ट्रासाउंड, CT स्कैन या DEXA जैसे टेस्ट से इसकी पुष्टि की जा सकती है, हालांकि आमतौर पर इसकी जरूरत नहीं पड़ती।
क्या 30 के बाद मांसपेशियों का कम होना तय है?
डॉ. नरगुंड कहते हैं कि 30 के बाद उम्र से जुड़ी मसल लॉस की प्रक्रिया जिसे सार्कोपेनिया कहा जाता है, शुरू हो जाती है। एक्सपर्ट के मुताबिक ज्यादातर मामलों में इसकी वजह उम्र नहीं, बल्कि शारीरिक निष्क्रियता, पर्याप्त प्रोटीन न लेना, नींद की कमी, लगातार तनाव होती है। एक्सपर्ट के मुताबिक हफ्ते में दो से चार दिन टार्गेटेड स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करने से 40–50 की उम्र में भी मांसपेशियों को दोबारा से स्ट्रांग बनाया जा सकता है। इसके साथ अगर डाइट में दालें, डेयरी, अंडे, मछली या लीन मीट जैसे हाई-क्वालिटी प्रोटीन शामिल किए जाएं, तो मेटाबॉलिज्म को और बेहतर किया जा सकता है।
क्यों जरूरी है मसल्स को बनाए रखना?
मांसपेशियां शरीर की इंसुलिन सेंसिटिविटी को बेहतर बनाती हैं और रेस्टिंग एनर्जी एक्सपेंडिचर को बढ़ाती हैं। इसका सीधा फायदा यह होता है कि शरीर कार्बोहाइड्रेट को बेहतर तरीके से इस्तेमाल करता है और पेट के आस-पास फैट जमा होने की संभावना कम हो जाती है।
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