प्रेग्नेंसी के 9 महीने हर महिला के लिए बेहद नाजुक होते हैं। इन 9 महीनों में महिलाओं को तमाम तरह की चुनौतियों से होकर गुजरना पड़ता है, शरीर में कई तरह के बदलाव आते हैं। वहीं, इन बदलावों के साथ-साथ गर्भावस्था में कई बार कुछ गंभीर परेशानियां भी महिलाओं को घेर लेती हैं। इन्हीं में से एक परेशानी है जेस्टेशनल डायबिटीज। आइए जानते हैं इस गंभीर बीमारी के बारे में विस्तार से-

क्या है जेस्टेशनल डायबिटीज?

  • इससे पहले बता दें कि डायबिटीज के दो टाइप हैं। पहला टाइप 1 डायबिटीज, जिसमें पेंक्रियाज में हार्मोन इंसुलिन बनना बंद हो जाता है और इससे हमारे खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है। इस तरह की समस्या अनुवांशिक होती है।
  • दूसरा टाइप 2 डायबिटीज, जिसमें पेंक्रियाज में जरूरत के हिसाब से इंसुलिन नहीं बनता है या ठीक से काम नहीं करता है। हेल्थ एक्सपर्ट्स खराब लाइफस्टाइल और अनहेल्दी खानपान को टाइप 2 डायबिटीज के शुरुआती कारणों में से सबसे अहम बताते हैं।
  • वहीं, जब गर्भवती महिलाओं का शरीर उनके और उनके बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन बनाना बंद कर देता है, तो उसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है। बता दें कि अगर किसी मां को जेस्टेशनल डायबिटीज हो जाता है, तो उसका बुरा प्रभाव बच्चे पर भी पड़ सकता है।

किन महिलाओं को है अधिक खतरा?

हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, वैसे तो ये समस्या प्रेग्नेंसी के दौरान किसी भी महिला को अपना शिकार बना सकती है। हालांकि, अगर आपके परिवार में पहले से ही किसी को डायबिटीज है, तो गर्भवती महिला को प्रेगनेंसी के दौरान डायबिटीज होने का खतरा अधिक है। इसके अलावा गर्भावस्था में अत्यधिक शुगर, मैदा, कार्बोहाइड्रेट या आलू का सेवन करने से भी डायबिटीज का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है, जो जच्चा और बच्चा दोनों के लिए बेहद गंभीर हो सकता है। इन सब के अलावा प्रेगनेंसी में खराब लाइफस्टाइल, हर समय बैठे रहना, किसी तरह की शारीरिक गतिविधि न करना, एक्सरसाइज न करना या वजन ज्यादा होने के कारण भी जेस्टेशनल डायबिटीज हो सकती है।

हो सकते हैं ये गंभीर नुकसान

  • जेस्टेशनल डायबिटीज होने पर महिलाओं में सिजेरियन डिलीवरी के चांसेस बढ़ जाते हैं।
  • प्री टर्म डिलीवरी होने का खतरा बना रहता है।
  • जन्म के समय बच्चे का ब्लड शुगर लेवल बहुत कम हो सकता है।
  • इन सब के अलावा बच्चा ओवरवेट हो सकता है, साथ ही बच्चे के डायबिटीज से पीड़ित होने के चांस भी काफी हद तक बढ़ जाते हैं।

इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज

जेस्टेशनल डायबिटीज होने पर पीड़ित महिलाओं को बार-बार प्यास लगना या जल्दी-जल्‍दी पेशाब आना, त्‍वचा में संक्रमण, बिना वजह अधिक थकान मबसूस होना, धुंधला नजर आना, कंपकंपी महसूस होना आदि लक्षण नजर आ सकते हैं। इन लक्षणों की पचहान कर समय रहते जांच करा लेना बेहद जरूरी है।

ये हैं बचाव के तरीके

  • वहीं, बात अगर बचाव की करें, तो सबसे पहले हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं, साथ ही ज्यादा मात्रा में शुगर का सेवन करने से बचें। इससे अलग एक्सपर्ट गर्भवती महिलाओं को फाइबर युक्‍त चीजों का सेवन करने की सलाह देते हैं।
  • प्रेगनेंसी के दौरान समय-समय पर शुगर की जांच करवाती रहें। साथ ही रोज समय निकालकर करीब 30 मिनट हल्के व्यायाम भी जरूर करें।

Disclaimer: आर्टिकल में लिखी गई सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य जानकारी है। किसी भी प्रकार की समस्या या सवाल के लिए डॉक्टर से जरूर परामर्श करें।