गर्भावस्था एक महिला के जीवन का सबसे खास और संवेदनशील समय होता है। इस दौरान मां और गर्भ में पल रहे बच्चे दोनों की हेल्थ अच्छी रहना जरूरी है। इस देखभाल प्रक्रिया में अल्ट्रासाउंड तकनीक एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह न केवल शिशु के विकास पर नजर रखने में सहायता करता है, बल्कि समय रहते किसी भी संभावित जटिलता की पहचान कर उपचार की दिशा भी तय करता है।
हालांकि, प्रेगनेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी को लेकर तमाम तरह के सवाल किए जाते हैं, जिसमें सबसे कॉमन सवाल है कि क्या प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड की वजह से बच्चे को कोई नुकसान पहुंच सकता है? डॉ. वर्षा वी पाटिल, निदेशक एवं विभागाध्यक्ष (एचओडी), सिद्धगिरि जननी आईवीएफ एवं टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर ने बताया कि प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड का क्या महत्व होता है और इसे कब-कब करवाना चाहिए।
क्या होता है अल्ट्रासाउंड
अल्ट्रासाउंड एक चिकित्सा इमेजिंग तकनीक है, जो हाई आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों का उपयोग करके शरीर के अंदर के अंगों, ऊतकों और अन्य संरचनाओं की तस्वीरें बनाती है। इसे सोनोग्राफी या अल्ट्रासोनोग्राफी भी कहा जाता है। अल्ट्रासाउंड सुरक्षित और दर्द रहित होता है। इसके माध्यम से शरीर के भीतर भ्रूण, प्लेसेंटा, गर्भाशय तथा अन्य संरचनाओं का वास्तविक समय में अवलोकन करने की अनुमति देती है। यह विधि रेडिएशन मुक्त होने के कारण शिशु और माता दोनों के लिए पूरी तरह सुरक्षित मानी जाती है।
अल्ट्रासाउंड का उपयोग
- गर्भकालीन आयु की सटीक पता लगाने के लिए
- भ्रूण की संरचनात्मक विसंगतियों का प्रारंभिक पता लगाना
- भ्रूण के विकास और हेल्थ की निगरानी
प्रेगनेंसी में कितनी बार किया जाता है अल्ट्रासाउंड?
प्रेगनेंसी के दौरान आमतौर पर 4-5 बार अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी की जाती है। एक्सपर्ट के मुताबिक, कई प्रेगनेंसी में 4 से 5 सोनोग्राफी में लगभग सभी चीजों का पता लग जाता है, लेकिन कई बार हाई रिस्क वाली प्रेगनेंसी में इससे ज्यादा बार भी सोनोग्राफी की जरूरत पड़ सकती है।
पहली तिमाही (6 से 13+6 सप्ताह)
इस चरण का अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था की पुष्टि करने, भ्रूण की स्थिति जानने और गर्भकालीन आयु की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। इसे करने का मुख्य कारण गर्भाशय में भ्रूण की उपस्थिति एवं उसकी जीवितता की पुष्टि करना होता है। इसके अलावा भ्रूणों की संख्या का निर्धारण करने यानी 1 बच्चा है या दो तय करना।
दूसरी तिमाही (18 से 22 सप्ताह)
यह स्कैन भ्रूण की शारीरिक संरचना का संपूर्ण मूल्यांकन करता है। इसका मुख्य उद्देश्य मस्तिष्क, हृदय, रीढ़, चेहरे, फेफड़े, पेट, गुर्दे एवं अंगों की संरचना का पूरी तरह से जांच करना।
तीसरी तिमाही (28 सप्ताह से आगे)
28 सप्ताह से ज्यादा होने पर विकास स्कैन एवं बायोफिजिकल प्रोफाइल (BPP) किया जाता है। यह गर्भावस्था के अंतिम चरण में शिशु के विकास की निगरानी के लिए किया जाता है। इससे भ्रूण की बायोमेट्री यानी सिर की परिधि, पेट की परिधि, फीमर की लंबाई का पता लगाना और भ्रूण का वजन एवं विकास की जानकारी पता करने के लिए किया जाता है।
क्या अल्ट्रासाउंड से बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है?
हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी पूरी तरह सुरक्षित है और पिछले 40 सालों से ज्यादा समय से होता आया है। सोनोग्राफी बेसिकली ध्वनि की तरंगे होती हैं। इससे बच्चे को बिल्कुल भी किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता है। यह पूरी तरह सेफ है।
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