नरेंद्र मोदी सरकार ने आईएएस अधिकारी शाह फैसल के इस्तीफा वापस लेने के आवेदन को स्वीकार कर उन्हें सेवा में बहाल कर दिया है। फैसल की सेवाएं केंद्र सरकार को सौंपी जाएंगी। जम्मू कश्मीर सरकार ने केंद्र में उनकी प्रतिनियुक्ति को हरी झंडी दे दी है। हालांकि इस्तीफे के बाद राजनीति में शामिल होने और पीएसए के तहत बंदी बनाए गए किसी आईएएस अधिकारी का इस्तीफा रद्द कर उनकी सेवाएं बहाल करने का यह पहला मामला है।
कश्मीर के निवासी फैसल ने 2009 में यूपीएससी परीक्षा में टॉप किया था। लेकिन सूबे में हो रहीं लगातार हत्याओं को मुद्दा बना उन्होंने 2019 में नौकरी से इस्तीफा दे अपना राजनीतिक दल बना लिया था। लेकिन राजनीति में बात बनी नहीं और अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के साथ-साथ अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया तो उन्हें धक्का लगा। शाह फैसल इस्तांबुल जाने की कोशिश में थे पर सरकार ने उन्हें हिरासत में ले लिया था। वो जून 2020 तक हिरासत में ही थे। फिलहाल उनके खिलाफ कोई केस नहीं है। उनके खिलाफ लगा पीएसए एक्ट भी रद्द हो चुका है।
क्या हैं इस्तीफा देने के नियम
इस्तीफे के मामले में सरकार इसे नौकरी छोड़ने की एक औपचारिक घोषणा मानती है। नियमों के मुताबिक इस्तीफा सीधा और सपाट होना चाहिए। इस्तीफा वीआरएस से पूरी तरह से अलग होता है। वीआरएस लेने वाले अफसर को सेवानिवृत्ति के लाभ मिलते हैं। जैसे की पेंशन। लेकिन इस्तीफा देने वाले अफसर को इन सभी लाभों से वंचित होना पड़ जाता है। नौकरी से बर्खास्त होने वाले अफसरों को भी पेंशन नहीं दी जाती।
राज्य में तैनात आईएएस अपने चीफ सेक्रेटरी को इस्तीफा देते हैं। जबकि केंद्र में प्रति नियुक्ति पर काम कर रहे अफसर इस्तीफा संबंधित मंत्रालय के सचिव को इस्तीफा देते हैं। मंत्रालय अपनी टिप्पणी के साथ संबंधित राज्य के काडर को इस्तीफा फॉरवर्ड कर देते हैं। इस्तीफा मिलने के बाद राज्य की ओर से जांच की जाती है कि अधिकारी का कुछ बकाया तो नहीं है। फिर उसके खिलाफ करप्शन के मामलों की जांच की जाती है। ऐसा कोई केस पेंडिंग होने की स्थिति में इस्तीफा खारिज कर दिया जाता है। आईएएस के मामले में डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग और आईपीएस के मामले में गृह मंत्रालय और फॉरेस्ट सेवा के मामले में पर्यावरण मंत्रालय इस्तीफे पर फैसला लेता है। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग मंत्रालय के मसलों पर प्रधानमंत्री खुद फैसला लेते हैं, क्योंकि ये महकमा उनकी ही देखरेख में सारा काम करता है।
फैसल का इस्तीफा मंजूर ही नहीं हुआ
हालांकि, सर्विस रूल कहता है कि कोई आईएएस अधिकारी इस्तीफा देने के लगभग 90 दिन के भीतर ही अपनी सेवा बहाली का आग्रह कर सकता है। अगर वह इस दौरान किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है तो उसकी सेवाएं बहाल नहीं की जाती। शाह फैसल ने जनवरी 2019 में सरकारी सेवा छोड़ने का एलान करते हुए इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने एक राजनीतिक दल भी बनाया। लेकिन शाह फैसल का इस्तीफा कभी मंजूर नहीं हुआ था। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि शाह फैसल ने कुछ समय पहले इस्तीफे को वापस लेने के लिए औपचारिक आवेदन किया था। करीब 17 दिन पूर्व उनका इस्तीफा नामंजूर हो गया। वो फिर सर्विस में लौट आए।
सोशल मीडिया की पोस्ट पर अटका था इस्तीफा
लेकिन सर्विस रूल देखे जाए तो साफ है कि फैसल के मामले में कई नियमों की अनदेखी की गई। उन्होंने तकरीबन तीन साल पहले इस्तीफा दिया था। फिर अपनी पार्टी भी बना ली। वो पीएसए एक्ट के तहत हिरासत में भी रहे। फिर भी सरकार ने उनकी सेवाएं बहाल करने का फैसला ले लिया। एक रिपोर्ट के अनुसार फैसल का इस्तीफा कभी स्वीकृत ही नहीं किया गया था। उन पर कुछ देश विरोधी पोस्ट करने का आरोप था। इसे आधार बनाकर सरकार ने उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया।
इस्तीफा मंजूर होता तो वापसी मुमकिन नहीं थी
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक शाह फैसल ने जनवरी 2019 को इस्तीफा दिया। लेकिन उनके इस्तीफे पर कोई एक्शन नहीं हुआ। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग मंत्रालय की वेबसाइट पर शाह फैसल का नाम कार्यरत अधिकारी के रूप में है। इसमें उनकी पोस्टिंग की कोई जानकारी नहीं दी गई है। शाह फैसल का इस्तीफा अगर स्वीकार कर लिया जाता तो उनके लिए वापसी के रास्ते बंद हो जाते। उनकी वापसी का सबसे बड़ा आधार ये ही है कि केंद्र ने फैसल का इस्तीफा कभी स्वीकार ही नहीं किया। इससे उनकी वापसी मुमकिन हो सकी।