दिल्ली में वायु प्रदूषण गंभीर स्तर तक पहुंच चुका है। भविष्य में इसके और ज्यादा खराब होने की आशंका है। इसी को देखते हुए दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने एक बार फिर ऑड-ईवन लागू करने की घोषणा की है। यह दिवाली की अगली सुबह से शुरू होने वाले सप्ताह यानी 13 नवंबर से लागू होगा और पूरे सप्ताह यानी 20 नवंबर तक चलेगा।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली में औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) सोमवार (6 नवंबर) को 421 था। पिछले कुछ दिनों से AQI लगातार 450 से ऊपर बना हुआ है।
CPCB के पैमाने के मुताबिक, अगर AQI 201 से 300 के बीच हो तो हवा को सांस लेने के लिए “खराब” माना जाता है। अगर AQI 301-400 के बीच हो तो यह “बहुत खराब” होता। 401-500 के बीच AQI होना “गंभीर” और उसके ऊपर “अत्यधिक गंभीर” माना जाता है।
13-20 नवंबर को पिछले सात वर्षों में दिल्ली में चौथी बार ऑड-ईवन योजना लागू किया जा रहा है। पहली बार इसे 2016 में लागू किया गया था।
क्या है ऑड-ईवन योजना?
ऑड का मतलब होता है विषम। जो संख्या 2 से विभाज्य नहीं हो उसे विषम माना जाता है, जैसे 1, 3, 5…। ईवन मतलब होता है सम। जो 2 से पूर्णतः विभाज्य हो उन्हें सम संख्या माना जाता है, जैसे 2, 4, 6…।
‘ओड-ईवन’ नियम के तहत गाड़ी चलाने का मतलब होता है कि ईवन नंबर वाली तारीखों पर केवल वहीं गाड़ियों दिल्ली की सड़कों पर चल सकती हैं, जिनके रजिस्ट्रेशन नंबर के आखिर में ईवन नंबर है। इसी तरह ऑड नंबर वाली तारीखों पर केवल वहीं गाड़ियों दिल्ली की सड़कों पर चल सकती हैं, जिनके रजिस्ट्रेशन नंबर के आखिर में ऑड नंबर है।
इस योजना को लागू करने के पीछे दिल्ली सरकार का विचार है कि इससे सड़क पर कारों की संख्या लगभग आधी कर हो जाएंगी, जिससे AQI के स्तर में सुधार आएगा।
पहले जब सरकार ने यह लागू किया था तो वाहनों की कई श्रेणियों को छूट दी गई थी, जिनमें टैक्सी (जो सीएनजी से चलने वाली हैं), महिलाओं द्वारा चलाई जाने वाली कारें, इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहन और सभी दो पहिया वाहन शामिल हैं।
दिल्ली में कितने वाहन?
अर्जुन सेनगुप्ता, मल्लिका जोशी ने दिल्ली परिवहन विभाग के सूत्रों के हवाले से द इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि वर्तमान में दिल्ली में रजिस्टर्ड करीब 75 लाख गाड़ियां सड़कों पर दौड़ रही हैं। इन 75 लाख गाड़ियों में से एक तिहाई कारें हैं। इस तरह ऑड-ईवन योजना का मतलब यह होगा कि हर दिन लगभग 12.5 लाख कारें (इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड को छोड़कर) दिल्ली की सड़कों से हट जाएंगी।
दिल्ली सरकार के अर्थशास्त्र और सांख्यिकी निदेशालय द्वारा प्रकाशित Delhi Statistical Handbook 2022 के अनुसार, 31 मार्च, 2022 तक दिल्ली में पंजीकृत कारों और जीपों की संख्या 20,57,657 थी। वहीं मोटर साइकिल और स्कूटर की की कुल संख्या 51,35,821 थी। कुल 77,39,369 वाहनों में से बाकी ऑटो रिक्शा, टैक्सी, बस, मालवाहक वाहन और ट्रैक्टर आदि थे।
बाहर की गाड़ियां दिल्ली पर बोझ नहीं!
दिल्ली के बाहरी क्षेत्र यानी एनसीआर या अन्य जगहों पर रजिस्टर्ड 20 लाख वाहन भी दिल्ली में चलते हैं। हालांकि इनकी वजह से कभी दिल्ली में गाड़ियों की संख्या नहीं बढ़ती, क्योंकि जितनी बाहर की गाड़ियां दिल्ली में चल रही होती है, उतनी ही दिल्ली की गाड़ियां बाहर चल रही होती हैं।
दिल्ली की हवा खराब करने में गाड़ियां कितनी जिम्मेदार?
मौजूदा संकट के पीछे कई कारण हैं। दिल्ली की वायुमंडलीय स्थिति कुछ ऐसी है, जिससे प्रदूषण फैलाने वाले तत्व यहां फंस जाते हैं। गिरते तापमान और हवा की धीमी गति के कारण, प्रदूषक तत्व उड़कर दूर नहीं जाते या नष्ट होते बल्कि दिल्ली के आसमान में पसर जाते हैं। इसी से वह कुख्यात स्मॉग पैदा होता है, जिसकी आज कल बहुत चर्चा है।
दिल्ली की हवा को वाहन और धूल तो पूरे साल खराब किए रहते हैं। लेकिन साल के इन्हीं कुछ महीनों (दिवाली के आसपास) में वायु प्रदूषण अधिक विकराल रूप ले लेता है। ऐसा इसलिए भी होता है, क्योंकि इसी वक्त पंजाब और हरियाणा में फसलों की कटाई के बाद पराली जलाई जाती है। वहां से उठने वाले धुएं भी दिल्ली की आबोहवा को खराब करने में भूमिका निभाते हैं।
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के एक अध्ययन में पाया गया था कि पिछले वर्षों में खेतों में लगाई जाने वाली आग ने हवा में पीएम 2.5 की मात्रा को बढ़ाने में 40% का योगदान दिया है।
हालांकि, खेतों में आग एक तय अवधि के भीतर ही लगाई जाती है। पूरे वर्ष दिल्ली के वायु प्रदूषण में उनका योगदान केवल 3% या उससे कम है। कई अध्ययनों से पता चला है कि दिल्ली के अधिकांश वायु प्रदूषण का कारण दिल्ली में ही मौजूद है। जहां तक गाड़ियों की बात है तो, वाहन शहर की वार्षिक पीएम 2.5 सांद्रता में 30% तक का योगदान देते हैं।
वाहन NO2 (Nitrogen dioxide) जैसे अन्य प्रदूषक भी उत्सर्जित करते हैं। CSE का अनुमान है कि इस वर्ष NO2 का स्तर पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 60% तक अधिक है।
ऑड-ईवन कितना कारगर?
वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय के रूप में ऑड-ईवन को चीन, मैक्सिको और फ्रांस के शहरों में भी किसी न किसी रूप में आजमाया गया है। यह कितना प्रभावी है, इसे लेकर लगभग हर जगह बहस है।
दिल्ली में 2019 में भी ऑड-ईवन लागू किया गया था। तब द इंडियन एक्सप्रेस ने इसका विश्लेषण किया था कि यह कितना प्रभावी है। दिल्ली के AQI के स्तर की तुलना गुड़गांव, गाजियाबाद और नोएडा के साथ-साथ अन्य एनसीआर क्षेत्र से की गई थी। परिणाम स्पष्ट थे। दिल्ली में औसत AQI में गिरावट आई थी।
ऑड-ईवन लागू होने से पहले 23 अक्टूबर से 3 नवंबर 2019 के बीच दिल्ली में औसत AQI 369.5 था। ऑड-ईवन के दौरान 4-15 नवंबर तक, औसत AQI 328.5 था, यानी 41 अंक की कमी आयी थी। इसी अवधि में गुड़गांव में AQI 7.6 अंक बढ़ गया था। नोएडा और गाजियाबाद में थोड़ी कमी देखी गई थी। हालांकि, इस डेटा के बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण पर किसी व्यक्तिगत उपाय का सटीक प्रभाव निर्धारित करना मुश्किल है।
अभिनय हरिगोविंद ने द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि सड़क पर वाहनों की संख्या कम करने से निश्चित रूप से भयंकर प्रदूषण स्तर में कमी आएगी। लेकिन यह आपातकालीन कार्रवाई कोई उम्मीद की किरण नहीं है। इसका प्रभाव सीमित होगा क्योंकि दोपहिया वाहन और टैक्सियों को को छूट दी गई है, इन दोनों का प्रदूषण फैलने में प्रभावी योगदान होता है।
आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर और नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के संचालन समिति के सदस्य सच्चिदा नंद त्रिपाठी बताते हैं कि गाड़ियां दो तरह से प्रदूषण फैलाती हैं। पहला है, उनके साइलेंसर से निकलने वाला धुआं और दूसरा है सड़क पर उनके टायरों की रगड़ और ब्रेक से निकलने वाले कण।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि प्रदूषकों में परिवहन का सबसे बड़ा योगदान है। जब कई दिनों तक हवा की गुणवत्ता ‘गंभीर’ बनी रहती है तो आपातकालीन कार्रवाई में इसे छोड़ा नहीं जा सकता।
माना जा रहा है कि इस योजना से प्रदूषण में कमी आएगी। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कितनी कमी आएगी इसका सटीक अनुमान लगाना मुश्किल है। आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर त्रिपाठी कहते हैं, “परिवहन क्षेत्र के उत्सर्जन का कुछ हिस्सा दिल्ली के बाहर से आता है और ये प्रतिबंध दिल्ली में लागू किए जा रहे हैं। प्रतिबंध भी वास्तव में सभी गाड़ियों पर लागू नहीं है। साथ ही यह इस पर भी निर्भर करता है कि आप इसे कितना प्रभावी बना सकते हैं।… यह कहना मुश्किल होगा कि एक व्यक्तिगत हस्तक्षेप का क्या प्रभाव हो सकता है।”
ऑड-ईवन के प्रभाव के बारे में बात करते हुए त्रिपाठी जनवरी 2016 में लागू की गई ऑड ईवन योजना पर किए गए एक अध्ययन की याद दिलाते हैं। इस अध्ययन से संकेत मिलता है कि योजना “वायु प्रदूषण को कम करने में विफल” रही थी। त्रिपाठी इस अध्ययन में शामिल लोगों में से एक थे।
क्या ऑड-ईवन से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को कम करने में मदद मिलेगी?
द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में एनोना दत्त लिखती हैं कि हो सकता है ऑड-ईवन से प्रदूषण में कुछ कमी आ जाए। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है।
ऑड ईवन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने में कितना कारगर हो सकता? इस सवाल के जवाब में आईआईटी दिल्ली के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर रिसर्च इन क्लीन एयर के कोऑर्डिनेट प्रोफेसर सागनिक डे कहते हैं कि यह योजना बैंडेज पट्टी जितनी भी सहायक नहीं होगी।
अपनी बात को समझाते हुए प्रोफेसर डे कहते हैं, “ऑड-ईवन वास्तव में सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या में 50% की कटौती नहीं करता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उत्सर्जन में कमी का मतलब हमेशा हवा में प्रदूषक सांद्रता में कमी नहीं होता है, क्योंकि यह हवा की गति जैसे मौसम संबंधी कारकों पर निर्भर करता है। अब तक के रिजल्ट से यही पता चलता है कि इससे कुछ क्षेत्रों में प्रदूषण में कमी देखी आती है, कुछ में नहीं। कहीं तो प्रदूषण में सिर्फ कुछ घंटों के लिए कमी आती है।”
हालांकि, डॉ डे यह भी मानते हैं कि यह दिखाने के लिए कोई अध्ययन नहीं है कि वायु प्रदूषण के स्तर में थोड़ी कमी से लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है या नहीं।
एम्स (दिल्ली) में पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. करण मदान बताते हैं, “जब पीएम 2.5 का स्तर 500 से अधिक है, तो 20% की कमी का मतलब केवल 400 तक की गिरावट होगी। यह अभी भी बहुत हानिकारक है।”
लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यह फेफड़ों की बीमारियों और कैंसर के खतरे को भी बढ़ा सकता है। साथ ही वायु प्रदूषण से इम्यूनिटी कम होती है और यह डिप्रेसन का कारण बन जाता है।