Salaam Venky Movie Review in Hindi: काजोल की फिल्म ‘सलाम वेंकी’ रिलीज हो चुकी है, .ह फिल्म जहां एक तरफ दिल को छूती है वहीं दूसरी तरफ दिमाग को झकझोर कर रख देती है। यह फिल्म इच्छामृत्यु यानी यूथनेशिया की वकालत करने वाली फिल्म है। भारत में इच्छामृत्यु का कानूनी इजाजत नहीं है लेकिन समय-समय पर इसकी आवाज उठती रही है। जिन मामलों की वजह से ये मांग उठती रही है उसमें एक है हैदराबाद के एक लड़के के वेंकटेश की कहानी।

के. वेंकटेश की साल 2004 में डुशने मस्कूलर डिजीज से मुत्यु हो गई थी। उसकी मृत्यु एक तरह से तय थी क्योंकि इस बीमारी का वजह से शरीर लगातार अशक्त होता जाता है और मांशपेशियां बहुत ढीली हो जाती हैं। वेंकटेश और उसकी मां के जीवन और रिश्तों पर लिखी गई पुस्तक `द लास्ट हुर्रा’ पर आधारित ये फिल्म शारीरिक अंगों के दान के मसले को सामने लाती है।

के. वेंकटेश सिर्फ अपनी आंख का दान ही कर सका था हालांकि वो चाहता था कि उसके शरीर के कुछ और अंग दूसरों के काम आ सकें। इस फिल्म मे भी वेंकी सिर्फ अपनी आंखें ही दान कर सका जो उसकी दृष्टिहीन प्रेमिका को मिलती है।

काजोल ने एक बीमार लड़के की मां की शानदार भूमिका निभाई है और विशाल जेठवा ने मृत्यु की तरफ बढ़ते उस शख्स की जो अपनी अस्वस्थता के बावजूद अपने जीवन में हंसी को बचाए रख सका और जीवन के उद्देश्य को भी पूरा कर सका। फिल्म में ये सवाल भी उठता है कि आखिर पारिवारिक मूल्य क्या है?

वेंकी का पिता उसका त्याग देता है। सिर्फ उसकी मां और बाद में उसकी बहन उसे जीवित और जिंदादिल बनाए रखती हैं। के. वेंकटेश अपने छोटे से जीवन काल मे शतंरज का एक बेहतरीन खिलाड़ी बन गया था और इस फिल्म में वेंकी भी इस खेल को बहुत अच्छा खेलता है।

फिल्म में एक रोचक अदालती दृश्य भी है और राहुल रॉय ने वकील के रूप में और प्रकाश राज ने एक न्यायाधीश के रूप में अपनी अपनी भूमिकाओं से कानून की सीमा और संभावना– दोनों को सामने लाया है। रेवती के निर्देशन और प्रकाश राज के अभिनय ने इस मसले को कानूने के दायरे से निकालकर भावना के दायरे में पेश करके पूरे मसले को नई दिशा दे दी है।

राजीव खंडेलवाल डॉक्टर के रूप में प्रभावशाली रहे है। फिल्म के संवाद में कई जगह पर हास्य का पुट भी है, जो फिल्म को इंट्रेस्टिंग बनाता है।