राजीव सक्सेना

वेब शृंखलाओं पर किसी तरह के सेंसर का शिकंजा न होने का एक सबसे बड़ा असर, इनकी कथा-पटकथा में अब तक वर्जित रहे विषयों के शामिल किए जाने के रूप में दिखाई दे रहा है। देश के सर्वाधिक चर्चित घोटालों को कुछ वेब शृंखलाओं में बेहद मजबूती के साथ प्रदर्शित किया गया है। महारानी और रंगबाज में बिहार, यूपी के घोटालों के बाद मध्यप्रदेश के व्यापमं घोटाले को लेकर विसिल ब्लोअर और अब शिक्षा मंडल नाम से नई सीरीज हाजिर है।

शिक्षा मंडल : पर्दे के पीछे का सच

फिल्म निर्माताओं ने सरकारों की मुखालफत करने का ज्यादा जोखिम नहीं लिया। वह दबा हुआ विरोध शायद अब डिजिटल मीडिया पर वेब शृंखलाओं के जरिए बाहर आ रहा है, क्योंकि अब तक तो कोई ठोस बिल संसद में नहीं लाया गया है और ये माध्यम आजादी का जश्न मना रहा है। सोनी लिव पर कुछ माह पहले मध्य प्रदेश के व्यावसायिक शिक्षा संबंधी कांड पर विसिल ब्लोअर शीर्षक से उम्दा वेबसीरीज प्रसारित हुई थी, जिसमें मंत्रियों, आला अफसरों के इस कांड में शामिल होने का खुलासा किया गया था। घोटाले की आग चूंकि ठंडी पड़ चुकी है इसलिए संभवत: चाह कर भी किसी राजनेता या अफसर ने इस सीरीज पर कोई टिप्पणी नहीं की और इसी के मद्देनज़र एमएक्स प्लेयर पर एक बार फिर यही घोटाला वेबसीरीज का मुख्य विषय बनकर उभर आया।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से जुड़ी कहानी में कोचिंग कक्षा चलाने वाले आदित्य राय की बहन विद्या के साथ हुई घटना से लेकर एक विधायक प्रकाश पाटनी के बेटे की हत्या की तफ्तीश में मेडिकल प्रवेश परीक्षा से संबंधित तमाम रैकेट एक के बाद एक सामने आते जाते हैं। प्रदेश की पुलिस की नाकामी मानकर, विशेष अनुसंधान शाखा, एसटीएफ को मामले की जांच सौंपना खुद मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और बड़े अफसरों की नाक की नकेल साबित हो गया कि निजी विश्वविद्यालयों की दौड़ में शामिल एक अनपढ़ लेकिन शातिर दूध व्यवसायी धांसू यादव की दबंगई यूपी, बिहार के बाहुबली नेताओं से भी कहीं अधिक खतरनाक है, जिसे इस कहानी में दिखाया गया है। आइपीएस अनुराधा श्रीवास्तव का अंत तक डटे रहना उल्लेखनीय है।

दहन : रहस्य- रोमांच का तड़का

डिजनी हाटस्टार पर भारी प्रचार के साथ प्रस्तुत वेब शृंखला दहन, दर्शकों को एक अंतराल बाद फिर से पराशक्तियों पर विश्वास करने न करने की मानसिक उलझनों में उलझने को उकसाती है। राजस्थान के सुदूर अंचलों में, पुराने किलों, पहाड़ियों और गुफाओं में तथाकथित आत्माओं के भटकने और जनमानस को प्रभावित करने के अनगिनत किस्से आज भी कैद हैं। यह अलग बात है कि तेजी से डिजिटल होते जा रहे इस युग में इन्हें स्वीकार करने वालों से अधिक, भोले भाले गांव वालों की भावनाओं के साथ खेलते हुए इन किस्सों का गलत इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ी है। कहानी के मुताबिक, काल्पनिक गांव शैलासपुरा के विकास में बाधा बना हुई हैं, कथित मायावी शैतान राकन के मंडराते साये की अफवाह, जिसे हवा देने में सबसे आगे है गांव का प्रधान।

इस इलाके के पहाड़ों के गर्भ में छुपे बेशकीमती खनिज की खोज में जुटी सरकार से अनुबंधित निजी कंपनी मेग्नम कारपोरेशन के प्रयास तब तक आकार नहीं ले लेते जब तक कि जयपुर से एक तेजतर्रार आइएएस अफसर अवनि राउत वहां अपनी पोस्टिंग करवा कर नहीं आ पहुंचती। अपने पति की संदेहास्पद मौत के बाद मानसिक तौर पर असहज किशोर बेटे के साथ शैलासपुरा के डाक बंगले में डेरा डालकर निजी कंपनी का काम शुरू करवाते हुए अवनि राउत को कई सारी रहस्यपूर्ण आपराधिक घटनाओं का सामना करना पड़ता है। बेटा, स्थानीय हमउम्र किशोरों के साथ उन्हीं पहाड़ों में छुपे कथित ख़ज़ाने की खोज में जुट जाता है

राजस्थान की ग्रामीण पृष्ठभूमि में आंचलिक परंपरा में जकड़ी राजनीति, भाई- भतीजावाद, तंत्र-मंत्र, अंधविश्वास का चरम कहानी को कहीं रोचक तो कहीं उबाऊ भी बनाता है। डाक बंगले में एक बड़ी अफसर की सख्त सुरक्षा की बजाय पहले ही दृश्य में उनके कक्ष में चोरी की और बाद में कई सारी घटनाएं होना अविश्वसनीय लगता है। एक तरफ घोर डिजिटल ज़माना, दूसरी ओर पराशक्तियों का वजूद अब आसानी से हज़म नहीं होता। बेहतर होता कि शहर से आई उच्च प्रसाशनिक अधिकारी और उनका पढ़ा-लिखा बेटा गांववालों को सदियों पीछे जाने की बजाय आज के जमाने से कदमताल करने को प्रेरित करते।

निसर्ग मेहता, शिवा वाजपेयी और निखिल नायर की लिखी कपोल कल्पित कथा – पटकथा में विक्रांत पंवार ने अपने निर्देशन से दिलचस्प रंग-रोमांच के रंग भरने के लगभग विफल प्रयास किए हैं। जो कुछ सकारात्मक है उसमें मुख्य भूमिकाओं में अभिनेत्री टिस्का चोपड़ा के अलावा मंझे हुए अभिनेता सौरभ शुक्ला और मुकेश तिवारी का दमदार अभिनय ही माना जाएगा। राजेश तैलंग, रोहन जोशी और लहर खान ने भी अपने अपने किरदार उम्दा निभाए।