उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा से पहले सभी राजनीतिक दल ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे है। जबकि चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रहीं और बसपा सुप्रीमो मायावती इस बार कुछ खामोश नजर आ रही हैं। मायावती की इस ‘खामोशी’ की वजह हर कोई जानना चाहता है। क्या यह उनकी किसी रणनीति का हिस्सा है जो चुनावों के इतने नजदीक होने के बावजूद बसपा सुप्रीमो रैलियों से दूर हैं।

एक तरफ, समाजवादी पार्टी ताबड़तोड़ जनसभाएं कर रही है, सत्ताधारी दल भाजपा पूरी ताकत के साथ चुनावी सभाओं के जरिए विपक्ष पर निशाना साध रही है। कांग्रेस पार्टी महिलाओं के बीच जनाधार मजबूत करने की कोशिश कर रही है। लेकिन बड़ी-बड़ी रैलियों को संबोधित करने वाली मायावती कहीं नजर नहीं आ रही हैं। जानकारों का मानना है कि बसपा सुप्रीमो की चुनावी रैलियों से दूरी कोई नई रणनीति का हिस्सा नहीं है बल्कि वह खुद पर और अपने परिवार के सदस्यों पर आय से अधिक संपत्ति होने का दबाव महसूस कर रही हैं और इन्हीं कारणों से वह चुनावी रैली नहीं कर पा रही हैं।

मायावती करीब 3 महीने पहले एक चुनावी सभा में नजर आई थीं, जिसके बाद से वह जनसभाओं से दूर रही हैं। हालांकि, इस दौरान वह प्रेस कॉन्फ्रेंस के उपस्थिति दर्ज कराती रही हैं। 6 दिसंबर को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि के अवसर पर उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया था। 23 दिसंबर को मायावती ने अयोध्या जमीन घोटाले की जांच की मांग करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था। 30 नवंबर को मायावती ने पार्टी कार्यालय में बसपा के पदाधिकारियों के साथ चुनाव को लेकर चर्चा की थी। 23 नवंबर को मायावती ने चुनावी बैठक के साथ ही कार्यकर्ताओं को जुड़ने का संदेश दिया था।

इसके अलावा, 26 नवंबर को बसपा ने संविधान दिवस के कार्यक्रम का बहिष्कार किया था। 24 नवंबर को पार्टी ने अपने शासनकाल में किए गए विकास कार्यों का लेखा-जोखा जारी किया था। इसके बाद मायावती ने 19 नवंबर को कृषि कानून की वापसी के मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था। जबकि उन्होंने 9 नवंबर को भाजपा के चुनावी वादों पर घेराबंदी करने के लिए बैठक की थी। 9 अक्टूबर को कांशीराम की पुण्यतिथि के मौके पर मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के अलावा और जनसभा को संबोधित किया था।

मायावती ट्विटर पर लगातार सक्रिय रही हैं और विभिन्न मुद्दों को उठाते हुए वह सरकार पर निशाना साधती रही हैं लेकिन इस चुनावी महासमर में अधिकांश मौकों पर जनसभाओं से वह दूर ही रही हैं। वहीं, कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि मायावती इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि उनका समर्पित जनाधार और उनके समर्थक वर्तमान राजनीतिक माहौल में अन्य दल की तरफ आसानी से नहीं जाएंगे।