पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की जिन 58 सीटों पर पहले चरण में 10 फरवरी को मतदान है, वे भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गई हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन इन्हीं 11 जिलों में रहा था, जब उसने 53 सीटों पर सफलता हासिल करते हुए सपा-कांगे्रस गठबंधन और बसपा दोनों का ही सूपड़ा साफ कर दिया था।

भाजपा और उसके नेताओं ही नहीं पहले चरण का चुनाव सूबे की सरकार के आठ मंत्रियों के लिए भी अग्निपरीक्षा सरीखा है। ये मंत्री हैं-श्रीकांत शर्मा, सुरेश राणा, लक्ष्मी नारायण चौधरी, कपिल देव अग्रवाल, संदीप सिंह, अतुल गर्ग, अनिल शर्मा और जीएस धर्मेश। संदीप सिंह पार्टी के कद्दावर नेता रहे कल्याण सिंह के पौत्र और एटा के सांसद राजबीर सिंह के बेटे हैं।

चुनावी रैलियों पर कोरोना संक्रमण के कारण लगी पाबंदी की वजह से भाजपा की तरफ से पार्टी के तमाम कद्दावर नेता घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं। पर न योगी सरकार के पांच साल के कामकाज और न केंद्र सरकार के लगभग आठ साल के कामकाज को भाजपा ने प्रचार में मुद्दा बनाया है। पार्टी ने अपनी सारी ताकत मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के प्रयास में झोंक दी है। अमित शाह ने तो अपने प्रचार अभियान की शुरुआत उसी कैराना से की जिसे 2014 के चुनाव में वहां के भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने पलायन के मुद्दे से जोड़ा था।

पिछले तीन चुनावों में बड़ी तादाद में भाजपा का साथ देने वाले जाट मतदाताओं में किसान आंदोलन के कारण इस बार सत्तारूढ़ दल से नाराजगी स्पष्ट है। किसान यूनियन ने इन दोनों तबकों को कटुता भुलाकर एक साथ लाने में अहम भूमिका निभाई है। भाजपा जहां दंगाई, पलायन, गुंडाराज, मंदिर-मस्जिद, पाकिस्तान और जिन्ना का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं वहीं सपा-रालोद गठबंधन महंगाई, बेरोजगारी और गन्ना किसानों के मुद्दों को उभार रहा है। भाजपा ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगनी करने का जो वादा किया था, उसकी याद दिलाकर पहले से नाराज चल रहे किसानों के गुस्से को उभार रहा है।

इलाके के किसानों की एक बड़ी समस्या आवारा और छुट्टे पशु हैं, जो उनकी फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। जगह-जगह इन आवारा पशुओं के लिए सरकारी खर्च पर आश्रय गृह बनाने के सरकार के दावे आमतौर पर हवाई साबित हुए हैं। ऊपर से खेती के लिए मुफ्त बिजली का वादा कर अखिलेश यादव ने गरीब किसानों के लिए लागू छह हजार रुपए सालाना की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की चमक गायब कर दी है।

तभी तो किसान नेता राकेश टिकैत कह रहे हैं कि उन्हें फसल का उचित दाम चाहिए, सरकार की खैरात नहीं। गन्ना किसानों का चौदह दिन के भीतर भुगतान कराने का भाजपा का चुनाव पूर्व किया गया वादा भी उसके लिए गले की फांस साबित हुआ है। इसके अलावा सूबे के किसान पड़ोसी हरियाणा की तुलना में खेती की बिजली कई गुना महंगी कर देने के कारण भी योगी सरकार से नाराज हैं।

भाजपा नेता वास्तविक मुद्दों से जी चुरा रहे हैं। वे किसानों के मुद्दों पर कतई नहीं बोल रहे। राकेश टिकैत ने 31 जनवरी को विश्वासघात दिवस मनाकर किसानों को याद दिलाया कि तीन कृषि कानून भले वापस हो गए हों पर उनसे सरकार ने जो वादे किए थे, उन पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ी है। भाजपा जगह-जगह प्रभावी मतदाता संवाद तो कर रही है पर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा हाथरस में होते हुए भी उस दलित युुवती के घर नहीं गए जिसकी सामूहिक बलात्कार के बाद पिछले साल हत्या कर दी गई थी। जातीय जोड़तोड़ का सहारा लेते हुए मायावती इस बार 2007 जैसे चमत्कार की उम्मीद लगा रही हैं। पर निरंतर खामोश बने रहना, अभी तक भी प्रचार के लिए मैदान में न आना व तमाम कद्दावर नेताओं का पार्टी छोड़ जाना बसपा उम्मीदवारों के पक्ष में कोई हवा नहीं बना पा रहा।