सुरेंद्र सिंघल

पश्चिम उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने कई अहम चुनौतियां है। जिनमें सबसे बड़ी सत्ता विरोधी रूझान है। कोरोना की दो साल की अवधि में सैकड़ों बच्चे अनाथ हुए। लाखों लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ। भाजपा के ज्यादातर जनप्रतिनिधियों के कामकाज से जनता संतुष्ट नहीं है। भाजपा को अपने असंवेदनशील निष्क्रिय और निकम्मे विधायकोें को बदलने और उनकी जगह बेहतर एवं जिताऊ उम्मीदवारों का चयन करने में जबरदस्त दुश्वारी का सामना करना पड़ सकता है। भाजपा आलाकमान इस सबसे वाकिफ है। भाजपा कुछ एजेंसियों के जरिए उपयुक्त उम्मीदवारों के चयन की कसरत भी कर रही है।

उधर, अखिलेश यादव ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों खासकर प्रभावी जात-बिरादरी पर प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन और जयंत चौधरी के साथ मंच साझा कर भाजपा की उसके प्रभाव वाले इस क्षेत्र में उसकी मुश्किलें बढ़ा दी है। लखनऊ यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं किसानों के बीच सक्रिय भूमिका निभाने वाले शामली क्षेत्र के प्रोफेसर सुधीर कुमार कहते है कि अबकी सपा मुखिया अखिलेश उम्मीदवारों के चयन में बेहद सतर्कता दिखा रहे हैं। उनकी कोशिश है कि चुनाव मैदान में ऐसे उम्मीदवार उतारे जाएं जिनसे भाजपा को ध्रुवीकरण का लाभ न मिल पाए।

पिछले चुनाव परिणामों के अध्ययन और विश्लेषण से पता चलता है कि भाजपा के ज्यादातर उम्मीदवार विपक्षी दलों की कमजोर रणनीति के कारण जीते। शायद इसे भांपकर ही नरेंद्र मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ विकास पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। भाजपा जातीय समीकरणों पर भी ध्यान दे रही है।

2017 के विधानसभा चुनाव का शंखनाद करते हुए तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 5 नवंबर 2016 को सहारनपुर में मतदाताओं से अपील की थी कि वे प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनवा दे तो हम उत्तर प्रदेश में बदलाव लाकर दिखा देंगे। इसी माह 2 दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सहारनपुर में मां शाकुभरी राजकीय यूनिवर्सिटी के शिलान्यास समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में अपने भाषण में कहा कि भाजपा उत्तर प्रदेश में परिवर्तन लाने में सफल रही है।