Tripura Assembly Election 2023: त्रिपुरा विधानसभा चुनाव 2023 के लिए मतदान में अब कुछ घंटे ही बाकी हैं। चुनाव के लिए प्रचार अभियान मंगलवार को खत्म हो चुका है। 60 सदस्यों वाली त्रिपुरा विधानसभा में 20 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इन 20 सीटों पर स्थानीय आदिवासी पार्टी टिपरा मोथा ने बड़े राजनीतिक नैरेटिव को सेट कर दिया है। गुरुवार को होने वाली वोटिंग से पहले माणिक्य राजवंश के राजा प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने अपनी टिपरा मोथा पार्टी से काफी सियासी हलचल मचा दी है।

टिपरा मोथा ने राज्य में चुनाव को त्रिकोणीय बनाया

टिपरा मोथा ने राज्य में चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है। विधानसभा चुनाव के लिए मतदान से महज कुछ घंटे से भी कम समय में जब त्रिपुरा में प्रचार अभियान थम चुका है, सांस्कृतिक तौर पर नई पहचान थोपने से से जुड़ी गहरी चिंताओं ने पहाड़ियों में विकास की कमी के साथ मिलकर राज्य में तीन-कोण की लड़ाई के लिए मंच तैयार किया है। इसमें सत्तारूढ़ भाजपा, माकपा-कांग्रेस और आदिवासी पार्टी टिपरा मोथा शामिल हैं।

बंगाली और स्थानीयता का मुद्दा

अगरतला के एक निजी कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई कर रहे 20 वर्षीय छात्र दुसांता देबबर्मा पूछते हैं, “ त्रिपुरा में बाहरी को थोपने का मकसद हमारे इतिहास को मिटाना है। न केवल जगहों, बल्कि पहाड़ियों और नदियों के नाम भी बंगाली में बदल दिए गए हैं। क्या अब हम भी यहीं के हैं?” दुसांता के दोस्त अजीत देबबर्मा ने कहा, “प्रवासियों की आमद के कारण न केवल हमें अपनी जमीन बल्कि अपनी संस्कृति और भाषा भी खोनी पड़ी है। यह जारी नहीं रह सकता।”

टिपरा मोथा प्रमुख की आखिरी लड़ाई वाली भावुक अपील

चुनाव प्रचार के आखिरी दिन चारिलम (एसटी) निर्वाचन क्षेत्र में एक रैली को संबोधित करते हुए टिपरा मोथा के प्रमुख और शाही वंशज प्रद्योत देबबर्मा ने लोगों से अपने अधिकारों के लिए ‘एक आखिरी लड़ाई’ लड़ने की अपील की। उन्होंने कहा, “यह मेरा अब तक का आखिरी राजनीतिक भाषण है। मैं यहां अपना राजनीतिक जीवन समाप्त कर रहा हूं। लेकिन मैं तब तक रिटायर नहीं होऊंगा जब तक मैं आपकी (ग्रेटर टिपरालैंड के लिए) मांग पूरी नहीं कर देता, लेकिन अब मैं भाषण नहीं दूंगा और वोट नहीं मांगूंगा।’

त्रिपुरा में माणिक्य राजवंश का प्रभाव

रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा नामित माणिक्य राजवंश के पूर्व निवास उज्जयंत पैलेस का प्रवेश द्वार ब्रिटिश राज को चुनौती देने वाले बंगाली क्रांतिकारियों खुदीराम बोस और सूर्य सेन की मूर्तियों से सजा हुआ है। 1901 में बनाए गए पैलेस के पीछे एक स्टेडियम है। 19 वीं शताब्दी के बाद के हिंदू आध्यात्मिक नेता और दार्शनिक स्वामी विवेकानंद के नाम पर बना यह स्टेडियम अगरतला में बड़ी राजनीतिक रैलियों के लिए बेहद मशहूर है।

टिपरा मोथा पर स्थानीय लोगों का बढ़ा भरोसा

अगरतला को उदयपुर के दक्षिणी शहर से जोड़ने वाले राजमार्ग पर किराने की दुकान चलाने वाले धनंजय त्रिपुरा कहते हैं कि उनके गांव के लोगों ने अतीत में भाजपा और सीपीआई (एम) दोनों का समर्थन किया है, लेकिन अब हमारे पास इन पार्टियों का समर्थन करने का कोई कारण नहीं है। उन्होंने कहा, “टिपरा मोथा एक मौके का हकदार है, क्योंकि हमारे बुबगरा (राजा या प्रद्योत देबबर्मा) समझौता नहीं करेंगे।”

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भाजपा ने ग्रेटर टिपरालैंड को बताया अव्यवहारिक मांग

एक अलग जातीय मातृभूमि के वादे ने आदिवासियों के एक बड़े वर्ग की आकांक्षाओं को जगा दिया है और उन्हें टिपरा मोथा के पीछे लामबंद कर दिया है। टिपरा मोथा के साथ गठबंधन करने के अपने प्रयासों के विफल होने के बाद भाजपा ने इस विचार को अव्यावहारिक बताकर खारिज कर दिया। चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने भाषण में प्रद्योत देबबर्मा पर कम्युनिस्टों के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगाया।