Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान के चुनावी रण में लड़ाई ने नया मोड़ ले लिया है। राज्य के विधानसभा चुनाव में आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल और एएसपी (आजाद समाज पार्टी (काशीराम) के चीफ चंद्रशेखर आजाद ने गुरुवार को एकजुट होकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। अब दोनों पार्टियां कंधे से कंधा मिलाकर चुनाव मैदान में उतरेंगी, जो बीजेपी और कांग्रेस के लिए बेचैनी का सबब बन सकती हैं। राजस्थान के मौजूद केंद्र में इस वक्त जातिगत गणना की काफी चर्चा है, जो आरएलपी और एएसपी को एक साथ लाने में काफी कारगर साबित हुई है।
गठबंधन से दलित वोट मिलेंगे
बेनीवाल के समर्थकों का दावा है कि गठबंधन से दलित वोट मिलेंगे। जबकि राजस्थान में आरएलपी पहले से ही एक जाट पार्टी के रूप में स्थापित हो चुकी है। वहीं आरएलपी पहले से ही अनुसूचित जाति के बीच कुछ पकड़ का दावा कर सकती है, क्योंकि उसके तीन मौजूदा विधायकों में से दो दलित हैं।
कुछ समय के लिए 2019 के लोकसभा चुनावों के आसपास आरएलपी ने भाजपा के साथ गठबंधन किया था। बेनीवाल ने पार्टी के समर्थन की बदौलत सांसद के रूप में चुनाव लड़ा और जीता, लेकिन बाद में कृषि कानूनों को लेकर उन्होंने खुद को भाजपा से अलग कर लिया।
आजाद के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए बेनीवाल वे गठबंधन की घोषणा की। उन्होंने कहा कि राज्य में भाजपा और कांग्रेस के लिए एक मजबूत विकल्प और “किसान, जवान और दलितों को एक साथ आने” की जरूरत है।
राजस्थान की आबादी में जाटों की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत
जहां राजस्थान की आबादी में जाटों की हिस्सेदारी लगभग 10% है, वहीं एससी 18% के करीब हैं। राजस्थान जाट महासभा के अनुसार, समुदाय कम से कम 40 सीटों पर हावी है और कई अन्य को प्रभावित करता है। 2018 के विधानसभा चुनावों मेंकुल 3.56 करोड़ वोटों में से लगभग 76 लाख वोट (या 21.34%) न तो सत्तारूढ़ कांग्रेस और न ही भाजपा के लिए थे। वहीं आरएलपी और एएसपी का कहना है कि उनका मुख्य फोकस इन्हीं वोटों पर है।
3.56 करोड़ वोटों में से कांग्रेस और उसके सहयोगियों लोकतांत्रिक जनता दल, राष्ट्रीय लोक दल और एनसीपी ने 1.40 करोड़ से अधिक वोट हासिल किए थे। बीजेपी को 1.38 करोड़ मिले थे। 58 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली आरएलपी को कुल 8.5 लाख वोट मिले थे।
एएसपी, जो राजस्थान में अपना पहला चुनाव लड़ रही है। उसको उम्मीद है कि जिन सीटों पर वह चुनाव लड़ेगी, उन पर इसका सीमित प्रभाव पड़ेगा, लेकिन जहां आरएलपी-एएसपी की महत्वाकांक्षाएं खत्म हो सकती हैं, वहीं जाट-दलित गठजोड़ कांग्रेस और भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
बेनीवाल, जिन्होंने शनिवार को 10 उम्मीदवारों की घोषणा की थी। उन्होंने सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बनाई है। साथ ही कहा कि वे संभावति तीसरे मोर्चे में गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस दलों का स्वागत करने के लिए तैयार हैं। 2018 में, आरएलपी ने घनश्याम तिवारी की भारत वाहिनी पार्टी के साथ गठबंधन किया था, जिसने सभी 63 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 62 पर अपनी जमानत खो दी थी।
वहीं अपने ही सीएम की मांग कर रहे जाट समुदाय में बेचैनी बढ़ती जा रही है। कुछ महीने पहले तक, कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रदेश अध्यक्ष जाट थे। इससे पहले भाजपा ने सतीश पूनिया की जगह सीपी जोशी को नियुक्त किया था।
सूबे में 30 जाट विधायक
निवर्तमान विधानसभा में लगभग 30 जाट विधायक हैं। वहीं, जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील का कहना है कि उनकी मांग है कि दोनों पार्टियां कम से कम 40 जाटों को मैदान में उतारें।
राज्य में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 34 सीटों में आरएलपी के पास दो,19 कांग्रेस के पास, 12 भाजपा के पास और एक निर्दलीय बाबूलाल नागर हैं, लेकिन कांग्रेस ने इस बार नागर को दूदू से मैदान में उतारा है।
आरएलपी ने लगाई है भाजपा के वोटों में सेंध
माना जाता है कि पिछले तीन-चार वर्षों में हुए उपचुनावों में आरएलपी ने भाजपा के वोटों में सेंध लगाई है। उदाहरण के लिए, 2022 के सरदारशहर उपचुनाव में कांग्रेस को फायदा हुआ, जाट वोट बीजेपी और आरएलपी के बीच बंट गया। कांग्रेस 26,000 से अधिक वोटों से जीती। आरएलपी को 46,628 मिले।
2021 के वल्लभनगर उपचुनाव में कांग्रेस जीती और भाजपा चौथे स्थान पर रही, जहां आरएलपी ने भाजपा के बागी उदयलाल डांगी को मैदान में उतारा था।
सुजानगढ़ उपचुनाव में कांग्रेस के मनोज कुमार ने भाजपा के खेमाराम के खिलाफ 35,600 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। आरएलपी के सीताराम नायक को 32,210 वोट मिले। 2018 के बाद से कुछ अन्य उपचुनावों में भी आरएलपी उम्मीदवारों को पर्याप्त वोट मिले हैं।
इन सब समीकरण से यही लगता है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में यदि मुकाबला कठिन होता है, तो आरएलपी विजेता और हारने वाले के बीच महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
बसपा के वोट पर चंद्रशेखर आजाद की नजर
जहां तक आजाद की बात है, तो वह राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के वोट पर कब्जा करने की कोशिश करेंगे। बसपा ने 2018 में छह सीटें जीतीं, लेकिन उसके सभी विधायक बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
पिछले साल मई में आज़ाद ने कहा था, “बसपा समर्थकों को धोखा दिया गया है। उन्होंने अपना गुस्सा व्यक्त किया है और पार्टी के राज्य नेतृत्व का सामना किया है। आजाद ने कहा कि एएसपी राजस्थान में अगला विधानसभा चुनाव लड़ेगी, लोग हमें एक विकल्प के तौर पर देखेंगे।
आरएलपी द्वारा घोषित 10 उम्मीदवारों में से बेनीवाल जो वर्तमान में नागौर से लोकसभा सांसद हैं, अपने भाई नारायण बेनीवाल, मौजूदा विधायक के स्थान पर खुद खींवसर से चुनाव लड़ेंगे। विधायक इंदिरा देवी को मेड़ता से बरकरार रखा गया है और भोपालगढ़ से पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पुखराज गर्ग मैदान में हैं।
इन जिलों में हैं बेनीवाल का खासा असर-
सियासी जानकारों का कहना है कि हनुमान बेनीवाल का एक दर्जन जिलों में असर माना जाता है। राजस्थान का शेखावटी इलाका जाट बहुल है, लेकिन सीकर, झुंझुनू, नागौर के साथ जोधपुर क्षेत्र में जाट समाज का पॉलिटिक्स में बड़ा दखल रहा है। कई सीटों पर बेनीवाल खेल बिगाड़ सकते हैं।
बता दें, राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 142 सीटे सामान्य, 33 सीट अनुसूचित जाति और 25 सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं, लेकिन दलगत टिकट बंटवारे में सामान्य वर्ग में जहां राजपूत उम्मीदवार को सर्वाधिक टिकट मिलते हैं। वहीं ओबीसी में सबसे ज्यादा टिकट जाटों को दिए जाते हैं।