कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली महाराष्ट्र की नागपुर लोकसभा सीट पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरने से मुकाबला रोमांचक हो गया है। देशभर की निगाहें इस सीट पर हैं। भाजपा उम्मीदवार गडकरी आरएसएस के बेहद करीबी हैं।
नितिन गडकरी द्वारा किए गए विकास कार्यों के साथ-साथ जनता से सीधा संवाद स्थापित करने से उनके प्रशंसकों की एक बड़ी संख्या है। 2014 में गडकरी ने सात बार के सांसद विलास मुत्तेमवार को 2.84 लाख मतों के अंतर से हराया था और 2019 में कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई के तत्कालीन प्रमुख नाना पटोले को 2.16 लाख मतों से हराकर सीट बरकरार रखी।
नागपुर सीट पर 22,18,259 मतदाता हैं, जिनमें 11,10,840 पुरुष, 11,07,197 महिलाएं और 222 ट्रांसजेंडर शामिल हैं। यह विदर्भ का सबसे बड़ा शहर है और इसका संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से है, जो भाजपा का वैचारिक संगठन है। साथ ही नागपुर आंबेडकरवाद के लिए भी पहचाना जाता है क्योंकि महान समाज सुधारक ने यहीं बौद्ध धर्म अपनाया था। नागपुर सीट कांग्रेस का गढ़ थी, जिसने 17 में से 13 बार इस पर जीत हासिल की है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गडकरी आरएसएस पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं और वे संगठन के बहुत करीब हैं। उन्हें भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में भी देखा जाता है। ये दो पहलू नागपुर को एक बहुत अहम सीट बनाते हैं।
गडकरी 2014 में मोदी लहर के कारण जीते जबकि 2019 में वे अपने ‘विकास पुरुष’ वाली छवि के कारण दोबारा जीते। गडकरी ने नागपुर के साथ-साथ देश में कई बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू कीं। विश्लेषकों का दावा है कि सीधे अपनी बात रखने की क्षमता ने गडकरी को मोदी के समक्ष चुनौती पेश करने वाले एकमात्र नेता के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई है।
गडकरी की छवि निर्णायक साबित हो सकती है
नागपुर में गडकरी का काम और मतदाताओं के बीच उनकी छवि निर्णायक कारक साबित हो सकती है। हालांकि विश्लेषकों का दावा किया कि नागपुर में लगभग 12 लाख मतदाता दलित, कुनबी, हल्बा और मुसलिम समुदायों से हैं और ये जातिगत समीकरणों को बिगाड़ सकते हैं। पटोले को नागपुर के बाहर से होने के बावजूद 2019 में 4.5 लाख वोट मिले जबकि कांग्रेस के 2024 के उम्मीदवार विकास ठाकरे एक स्थानीय नेता हैं, ऐसे में चुनावी मुकाबला खासा रोमांचक हो सकता है।
