मिजोरम में 7 नवंबर को विधानसभा चुनाव होना है। यहां 40 सीटों पर प्रत्याशी अपना भाग्य आजमाएंगे। हालांकि इस बीच चर्चा का विषय है कि क्या मिजोरम इस बार विधानसभा चुनाव में अपना शर्मनाक रिकॉर्ड तोड़ पाएगा। क्या इस बार भी महिला विधायकों की संख्या शून्य होगी। दरअसल, इस राज्य ने 2018 के विधानसभा चुनाव में एक भी महिला को नहीं चुना। दरअसल, मिजोरम विधानसभा में 1987 के बाद से 27 सालों तक एक भी महिला विधायक नहीं चनी गई थी। इसके बाद 2014 में वनलालावम्पुई चावंगथु ने ह्रांगतुर्ज़ो सीट से उपचुनाव जीता और मंत्री बनीं। इससे उलट छत्तीसगढ़ राज्य में महिला विधायकों की संख्या सबसे अधिक है। हालांकि दोनों ही राज्यों में एक दिन की चुनाव होगा।
मिजोरम में प्रति 1,000 पुरुषों पर 975 महिलाएं हैं। इसके बावजूद लोकसभा में शून्य सांसद भेजने और सबसे कम महिला विधायक होने का रिकॉर्ड इस राज्य के नाम है। दरअसल, मिजोरम में इस रिकॉर्ड का कारण पितृसत्तात्मक समाज है। यहां महिलाओं को राजनीतिक सत्ता संभालने के लिए लायक नहीं माना जाता है। मिज़ोरम में लगभग 36 सालों में मंत्रिमंडल में केवल दो महिलाएं थीं। राज्य के मंत्रिमंडल में पहली बार 1987 में लालहलिम्पुई हमार शामिल हुई थीं। 27 साल बाद वनलालावम्पुई चावंगथु ने 2014 में उपचुनाव जीता और उन्हें कांग्रेस सरकार में रेशम उत्पादन, मत्स्य पालन और सहकारी विभाग मिला। मिजोरम में पहला विधानसभा चुनाव 1972 में हुआ था। उस समय चार महिलाओं ने नामांकन दाखिल किया था लेकिन वे सभी चुनाव हार गईं। यहां तक कि उनकी जमानत भी जब्त हो गई।
मिजोरम की पहली महिला विधायक
मिजोरम को पहली महिला विधायक तब मिली जब 1978 में दूसरा विधानसभा चुनाव हुआ। एल थानमावी मिजोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के टिकट पर सेरछिप क्षेत्र से चुनाव जीत गईं। तब उनकी उम्र लगभग 34 साल थी। वह पार्टी का पहला चुनाव था। थनमावी ने चार लोगों के खिलाफ चुनाव लड़ा और मामूली अंतर से अपने पक्ष में 1,824 वोट हासिल कर चुनाव जीता। उस साल थानमावी अकेली महिला उम्मीदवार थीं। इसके 8 साल बाद मिजोरम को पहली महिला मंत्री मिलीं।
चुनाव आयोग के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेश मिजोरम में आखिरी चुनाव 1984 में हुआ था। जिसमें किसी भी महिला ने चुनाव नहीं लड़ा था। 1986 में मिजोरम को राज्य का दर्जा दिया गया था। राज्य में 1987 में 40 निर्वाचन क्षेत्रों के साथ राज्य के रूप में अपना पहला विधानसभा चुनाव हुआ था।
27 सालों से महिलाओं के लिए निराशा
मिज़ोरम में 1989 और 1993 के बाद के चुनावों में महिलाओं की भागीदारी का रिकॉर खराब ही रहा। जिसमें 89 में 4और 93 में 3 महिलाओं ने भाग लिया। ये महिलाएं चुनाव हार गईं। कई तो तो अपनी जमानत भी दर्ज नहीं करा पाईं। 1998 में मिजोरम चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी। इस बार 10 महिलाओं ने नामांकन दाखिल किया मगर सभी चुनाव हार गईं। 2003 में 7 महिलाओं ने नामांकन दाखिल किया और सभी हार गईं। 2008 में भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ। इस बार 9 महिलाएं मैदान में उतरी लेकिन उनमें से कोई भी जीत नहीं सकी।
मिजोरम को मिली दूसरी महिला मंत्री
यह सिलसिला 2013 में भी जारी रहा। इस बार 6 महिलाओं में से किसी को भी सीट नहीं मिली। इतना ही नहीं उनमे से 4 की जमानत जब्त हो गई। इसके बाद 2014 के उपचुनाव में वनलालावम्पुई चावंगथु विजेता बनकर उभरीं और 3 साल बाद मंत्री बनीं। हालांकि वह 2018 के चुनाव में ह्रांगतुर्ज़ो सीट से हार गईं। 2018 में मिजोरम विधानसभा चुनाव में महिलाओं की सबसे अधिक भागीदारी देखी गई। इस बार 18 महिलाएं मैदान में थी। हालांकि सभी चुनाव हार गईं।
तो अब सवाल यह है कि क्या मिजोरम विधानसभा चुनाव 2023 में राज्य को 5वीं महिला विधायक और तीसरी महिला मंत्री मिलेगी? इसका जवाब तो 3 दिसंबर को ही मिलेगा, जब चुनाव का रिजल्ट आएगा।
