नेपाल के बिराटनगर से सटे अररिया लोकसभा सीट पर मोदी का जादू चलता है कि तेजस्वी का तेज, यह तीसरे चरण के 7 मई को मतदान के दिन पता चलेगा। यहां से भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह तीसरी दफा कमल खिलाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे है। वहीं तस्लीमुद्दीन के बेटे राजद उम्मीदवार शाहनबाज आलम पहली दफा लोकसभा चुनावी जंग में कूदे हैं। ये 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम प्रत्याशी की हैसियत से जोकीहाट क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे। बाद में इन्होंने राजद की लालटेन थाम ली थी। इंडिया गठबंधन के राजद ने इन पर भरोसा जताया है।

अररिया सीट से तस्लीमुद्दीन भी सांसद रह चुके है

ऐसे अररिया सीट से तस्लीमुद्दीन भी सांसद रह चुके है। 2018 में इनके इंतकाल के बाद हुए उपचुनाव में इनके बेटे सरफराज आलम को राजद ने टिकट दिया था। जिसमें पांच लाख से ज्यादा मत लाकर इनको जीत हासिल हुई थी। भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह को 4 लाख 47 हजार से अधिक मत मिले थे। वहीं 2019 के आम चुनाव में हालात पलट गए। भाजपा उम्मीदवार प्रदीप कुमार सिंह को छह लाख से ज्यादा मत मिले। और राजद के सरफराज आलम को 4 लाख 81 हजार मत प्राप्त हुए थे। जीत प्रदीप सिंह को मिली। यों भाजपा प्रत्याशी की हैसियत से 2009  लोकसभा आम चुनाव में प्रदीप सिंह को अररिया का प्रतिनिधित्व संसद में करने का सौभाग्य मिला है। 

BJP का पुराने पर भरोसा, RJD ने बदला प्रत्याशी

इस दफा भाजपा ने अपना प्रत्याशी नहीं बदला है। लेकिन राजद ने सरफराज की जगह इनके भाई शाहनबाज आलम पर भरोसा जताया है। ये दोनों ही मरहूम तस्लीमुद्दीन के बेटे है। हालांकि आपस में नाराजगी जरूर है। लेकिन युद्ध और राजनीति में सब कुछ जायज है। फारबिसगंज के बैद्य आनंद शर्मा बताते है कि 19 लाख 85 हजार से ज्यादा मतदाताओं में से 42 फीसदी मुस्लिम और 12 फीसदी यादव है। माई समीकरण के भरोसे राजद नेता और उम्मीदवार ताल ठोंक रहे है। दोनों भाइयों के बीच मनमुटाव को तस्लीमुद्दीन की पत्नी (इनकी मां) पाट रही है। गर्मी का पारा यहां भी 40 पार है। भाजपा के नारे 400 पार का अररिया सहयोग कर पाएगा या नहीं, यह देखना है। 

इसके लिए बीजेपी और राजद ने पूरा दम लगा दिया है। भाजपा की तरफ से 2 मई को राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सभा कर गए है। 26 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी सभा कर वोट मांगे थे। बीजेपी के प्रदेश  नेता तो दर्जनों दफा आ चुके है। और पड़ाव भी डाले हुए है। राजद नेता तेजस्वी यादव और वीआईपी प्रमुख मुकेश साहनी भी कई दफा आ चुके है। बल्कि पांच मई तक अररिया और आसपास टिके है।अररिया संसदीय क्षेत्र में  छह विधानसभा इलाके है।  तीन पर भाजपा का कब्जा है। और एक-एक पर कांग्रेस, राजद और जद(एकी) के पास है। सिकटी, नरपतगंज, फारबिसगंज, अररिया, जोकीहाट और  रानीगंज(सु) विधानसभा सीट है।

वैसे  1967 और 1971 से यहां कांग्रेस के तुलमोहन राम को जीत मिली। 1980 व 1984 में कांग्रेस के ही डूमर लाल बैठा के गले विजयश्री का हार डाला गया । 1977 में लोकदल के महेंद्र नारायण सरदार जीते। 1989, 1991, 1996, 1999 में जनता दल के सुखदेव पासवान को विजय मिली। 2004 में इन्होंने भाजपा का कमल थाम लिया और जीते। 1998 में बीजेपी के रामजी दास ऋषिदेव जीते।  2009 और 2019 में बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह ने फतह की। 2014 में राजद के मो. तस्लीमुद्दीन , 2018 के उपचुनाव में राजद के सरफराज आलम को सफलता मिली। दोनों ही उम्मीदवार विकास का दावा कर रहे है। सड़कें तो वाकई चकाचक बनी है। भागलपुर से यहां ढाई- तीन घंटे में कार से पहुंच सकते है। जंगलराज और विकास, बेरोजगारी का नारा बुलंद है। मगर जनता मूक दर्शक बनी है।