ECI Lok Sabha Election/Chunav Results 2024 Analysis Updates: लोकसभा चुनाव 2024 में वोटों की पूरी हो चुकी है। एनडीए ने 293 सीटों के साथ बहुमत हासिल किया है। हालांकि, बीजेपी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा है जहां सपा और कांग्रेस गठबंधन ने बहुमत हासिल किया है। वैसे वहां 2019 में भी उसकी सीटें 2014 की तुलना में कम (71 से 62) हुई थीं। पर, इस बार यह गिरावट और ज्यादा दिख रही है। रुझानों में बीजेपी को सिर्फ 33 सीटों पर आगे दिखाया जा रहा है। अमेठी से स्मृति ईरानी भी 50 हजार से ज्यादा मतों से पीछे हो गई हैं।
ये नतीजे 1 जून को सामने आए एग्जिट पोल के आंकड़ों को गलत साबित कर रहे हैं जहां ज़्यादातर पोल्स में इंडिया गठबंधन के 200 से भी कम सीटों पर सिमटने का अनुमान लगाया था। तमाम एग्जिट पोल्स ने बीजेपी की प्रचंड का दावा किया था।
लोकसभा चुनाव परिणाम 2024 के रियल टाइम विश्लेषण के लिए पढ़ें जनसत्ता.कॉम का यह स्पेशल ब्लॉग।
लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बीच हिमाचल प्रदेश मेँ कांग्रेस अपनी सरकार बचाने में कामयाब रही है। हिमाचल प्रदेश में लोकसभा सीटों के साथ ही विधानसभा की 6 सीटों पर भी उपचुनाव हुआ था। अपनी सरकार बचाने के लिए इन 6 सीटों में से कांग्रेस को कम से कम एक सीट पर जीत हासिल करना जरूरी था। शाम 5 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक वह तीन सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 51 में कहा गया है, “रिटर्निंग अधिकारी मतदान के लिए तय की गई तारीख या पहली तारीख से कम से कम एक सप्ताह पहले, वह स्थान डिसाइड करें जहां वोटों की गिनती की जाएगी, साथ ही वह तारीख और समय तय करें जिस पर गिनती शुरू होगी।”
रिटर्निंग अधिकारियों के लिए ईसीआई की हैंडबुक कहती है, “एकरूपता के लिए, वोटों की गिनती की तारीख और समय आयोग द्वारा तय किया जाता है।” मतगणना का स्थान आरओ द्वारा निर्धारित किया जाता है। किसी विशिष्ट विधानसभा क्षेत्र के वोटों की गिनती एक ही स्थान पर की जाती है। ECI का कहना है कि “प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र या संसदीय क्षेत्र के एक विधानसभा क्षेत्र की गिनती एक अलग हॉल में की जानी है और किसी भी परिस्थिति में एक हॉल में एक से अधिक विधानसभा क्षेत्रों की गिनती एक साथ नहीं की जा सकती है।” प्रत्येक मतगणना हॉल में आरओ की टेबल के अलावा अधिकतम 14 मतगणना टेबल हो सकती हैं।
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए जारी काउंटिंग के बीच बीजेपी के लिए राजस्थान से बुरी खबर है। चुनाव आयोग की ओर से जारी 3 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक, बीजेपी यहां 14 सीटों पर आगे है जबकि कांग्रेस 8 और अन्य दल तीन सीटों पर आगे चल रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो बीजेपी ने राजस्थान की सभी 25 सीटें जीती थी। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
एक काउंटिंग हॉल में कई काउंटिंग टेबल होती हैं। चूँकि उम्मीदवार या उनका चुनाव एजेंट प्रत्येक मतगणना स्थल और टेबल पर मौजूद नहीं हो सकता है, इसलिए कानून उम्मीदवार को उतने ही काउंटिंग एजेंटों को नियुक्त करने की अनुमति देता है जितनी काउंटिंग टेबल हैं, जिसमें वह टेबल भी शामिल है जहां पोस्टल बैलेट्स की गिनती की जाती है।
निम्नलिखित को मतगणना हॉल में प्रवेश करने की अनुमति है- काउंटिंग सुपरवाइजर, काउंटिंग असिस्टेंट, माइक्रो ऑब्सर्वर ईसीआई-अधिकृत ऑब्सर्वर, चुनाव ड्यूटी पर पब्लिक सरवेंट, उम्मीदवार, चुनाव एजेंट और काउंटिंग एजेंट। इस संदर्भ में पुलिस अधिकारियों और सरकारी मंत्रियों को पब्लिक सरवेंट के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है। उम्मीदवार, आरओ या सहायक आरओ सहित किसी को भी मतगणना हॉल के अंदर मोबाइल फोन ले जाने की अनुमति नहीं है। एकमात्र व्यक्ति जो ऐसा कर सकता है वह ईसीआई का पर्यवेक्षक है।
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को हरियाणा के अंदर कांग्रेस से जबरदस्त टक्कर मिली है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थी। लेकिन चुनाव आयोग के मुताबिक 2:45 बजे तक कांग्रेस और भाजपा दोनों पांच-पांच सीटों पर आगे चल रहे थे। 2019 में बीजेपी को 58.02% वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 28.42%। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
एक्सिस माई इंडिया द्वारा प्रकाशित 2019 एग्जिट पोल के आंकड़ों में साफ देखा जा सकता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए समर्थन विभिन्न आय श्रेणियों में काफी हद तक स्थिर है और भाजपा सभी वर्गों में आगे है। एक्सिस माई इंडिया ने अपने सर्वे में 31,000 रुपये और उससे अधिक के मासिक खर्च को हाई इनकम के रूप में लिया है। सीएसडीएस-लोकनीति डेटा के मुताबिक भाजपा को अमीर वर्गों के बीच फायदा मिलता दिख रहा है। 2019 के लोकनीति सीएसडीएस नेशनल इलेक्शन स्टडी सर्वे के मुताबिक, बीजेपी को अपर-मिडिल क्लास वर्ग के बीच 44% वोट शेयर मिला। वहीं, कांग्रेस के लिए यह आंकड़ा 20% का था। मिडिल क्लास आय वर्ग की बात की जाये इनके बीच बीजेपी को 38%, कांग्रेस को 21% वोट शेयर मिला। लोअर क्लास के बीच बीजेपी को 36% और कांग्रेस को 21% वोट शेयर मिला। वहीं, गरीबों के बीच बीजेपी को 36% और कांग्रेस को 17% वोट शेयर मिला।
मतगणना प्रत्येक सीट के लिए रिटर्निंग ऑफिसर (RO) की देखरेख और निर्देशन में, उम्मीदवारों और उनके चुनाव एजेंटों की उपस्थिति में की जाती है। आरओ, जो आम तौर पर संबंधित जिले का जिला मजिस्ट्रेट होता है, उसे भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा नॉमिनेट किया जाता है। सहायक रिटर्निंग अधिकारियों को भी मतगणना की निगरानी करने का अधिकार दिया गया है, खासकर जहां एक आरओ एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों के लिए जिम्मेदार है। विभिन्न टेबलों पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में वोटों की वास्तविक गिनती आरओ द्वारा नियुक्त गिनती अधिकारियों द्वारा की जाती है, जो पोस्टल बैलेट की अनुमानित संख्या और काउंटिंग टेबलों की संख्या के आधार पर होती है।
1999 से 2009 तक जब राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला, लगभग 22%-25% विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में विजेता उन लोकसभा क्षेत्रों के विजेताओं से भिन्न थे, जिनका वे हिस्सा थे। यह तब बदल गया जब भाजपा ने बहुमत हासिल कर लिया। 2014 और 2019 में केवल 18% और 17% विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों ने अपने लोकसभा क्षेत्रों की तुलना में अलग-अलग मतदान किया। लोकसभा चुनावों में विधानसभा स्तर के परिणाम इस अवधि के दौरान कुछ कारणों से कुछ हद तक बदल गई। 2008 के परिसीमन तक बहुत सारे विधानसभा क्षेत्र लोकसभा क्षेत्रों को ओवरलैप करते थे। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कुछ राज्यों में लोकसभा क्षेत्रों में कोई बदलाव किए बिना विधानसभा क्षेत्र की संख्या बदल दी गई, जैसे कि उत्तराखंड में। 199 के चुनाव में लगभग 25% विधानसभा क्षेत्रों में लोकसभा क्षेत्रों से अलग मतदान हुआ। 2004 और 2009 मे यह आंकड़ा 22% और 25% रहा।
चुनाव से पहले ईवीएम की जांच उसका निर्माण करने वाली कंपनियों के इंजीनियरों द्वारा की जाती है। मतदान खत्म होने के बाद, पीठासीन अधिकारी ईवीएम, वीवीपैट और अन्य चुनाव सामग्री को सील कर देते हैं। सीलबंद सामग्रियों को आगे की प्रक्रियाओं के लिए सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल के तहत संग्रह केंद्रों में ले जाया जाता है। डिस्ट्रिक्ट कंट्रोल रूम इन सामग्रियों के समन्वय और मतदान केंद्रों के साथ कम्यूनिकेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मतदान समाप्त होने और परिणाम घोषित होने के बाद ईवीएम को उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की उपस्थिति में सील किया जाता है। बैलेट यूनिट्स और कंट्रोल यूनिट्स को उनके कैरी केस में सील कर दिया जाता है जबकि वीवीपैट पर्चियों को काले लिफाफे में स्टोर किया जाता है। जिला निर्वाचन अधिकारी की कस्टडी में इन्हें स्ट्रांग रूम तक पहुंचाया जाता है। इन स्ट्रांग रूम में सीसीटीवी कैमरे और डबल लॉक सिस्टम होते हैं। अगले चुनाव याचिका दायर करने की समय सीमा तक ईवीएम स्टोर रहती हैं।
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है। अब तक के रुझानों के मुताबिक, एनडीए को 290 सीटों पर और इंडिया गठबंधन को 225 सीटों पर बढ़त हासिल है। ये नतीजों 1 जून को सामने आए एग्जिट पोल के आंकड़ों को गलत साबित कर रहे हैं जहां ज़्यादातर पोल्स में इंडिया गठबंधन के 200 से भी कम सीटों पर सिमटने का अनुमान लगाया था। देखिये तमाम एग्जिट पोल्स का आंकलन।
केरल, तमिलनाडु और पंजाब, जहां कुल मिलाकर 72 सीटें हैं अब तक के सभी चुनावों में भाजपा के लिए मुश्किल राज्य रहे हैं। इसका मुख्य कारण इन राज्यों में राजनीति के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू हैं। यहां तक कि ब्रांड मोदी भी इन राज्यों में पार्टी को कोई भी सीट जिताने में विफल रहा है। भाजपा हाल के वर्षों में इन राज्यों में सत्तारूढ़ दलों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का लाभ उठाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। इससे पार्टी के वोट शेयर में मामूली बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या वह इसे सीटों में तब्दील कर पाएगी। पंजाब और तमिलनाडु में, भाजपा के लिए 2019 की तुलना में अधिक कठिन चुनौती है क्योंकि शिअद और एआईडीएमके के एनडीए से बाहर निकलने के बाद वह अपने दम पर चुनाव लड़ रही है।
चुनाव आयोग की ओर से जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में 30 करोड़ से ज्यादा लोगों ने वोट नहीं डाला था। पिछले कुछ सालों के आंकड़ों को देखें तो साल 1998 में 61.97%, 1999 में 59.99%, 2004 में 57.65%, 2009 में 58.19%, 2014 में 66. 40% और 2019 में कुल 67.36% मतदान हुआ था। निश्चित रूप से मतदान का यह आंकड़ा काफी कम है। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
भारत का 44 दिनों तक चला आम चुनाव आखिरकार ख़त्म हो गया। ईसीआई मतदान केंद्रों तक पहुंचने के लिए गहन विश्लेषण करता है और सीआरपीएफ को उसके अनुसार ही तैनात किया जाता है। चुनावी कदाचार की पिछली घटनाएं और एक ही उम्मीदवार के पक्ष में अधिक मतदान होने से महत्वपूर्ण मतदान केंद्रों की पहचान करने में मदद मिलती है। देशभर में 3 लाख से ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए। भारतीय रेलवे देश भर में चुनावकर्मियों की आवाजाही में मदद करती है।
चुनाव परिणामों के अर्थव्यवस्था पर असर की बात की जाए तो कोविड महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में काफी सुधार हुआ है और यह निरंतर बढ़ रही है। ऐसे में मजबूत जनादेश के साथ एक स्थिर सरकार का होना महत्वपूर्ण है जो नीतिगत बदलाव ला सके और विकास की इस गति को बनाए रखने के लिए आवश्यक सुधारों को शुरू कर सके। इसलिए मजबूत जनादेश की आवश्यकता के साथ ही श्रम भूमि और कृषि कानून में भी सुधार की आवश्यकता है। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
ईवीएम पर सत्ता से बाहर होने वाले राजनीतिक दल सवाल खड़े करते रहे हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में पहली बार ईवीएम मशीन पर सवाल खड़े किए गए। इस दौरान बीजेपी उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी और तत्कालीन जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने ईवीएम के जरिए चुनावों में धांधली के आरोप लगाए थे। वहीं, 2010 में बीजेपी नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने भी मशीन पर सवाल खड़े किए। इस दौरान सुब्रमण्यम स्वामी सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गए थे। ईवीएम पर उठ रहे सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट के उपयोग का भी निर्देश दिया था। मार्च 2017 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद राजनीतिक दल चुनाव आयोग गए और ईवीएम पर सवाल उठाए। हालांकि, यह चलन अभी भी जारी है कई राजनीतिक दल और उनके नेता ईवीएम मशीन की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने का मांग कर रहे हैं। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
2019 के लोकसभा चुनावों तक पोस्टल बैलेट की गिनती पहले की जाती थी और उसके 30 मिनट बाद ईवीएम की गिनती शुरू होती थी। साथ ही ईवीएम की गिनती पूरी होने से पहले सभी पोस्टल बैलेट की गिनती की जाती थी। 2019 के चुनावों के बाद चुनाव आयोग ने दिशानिर्देशों में बदलाव करने का फैसला किया क्योंकि पोस्टल बैलेट की संख्या बढ़ गई थी, खासकर इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ETPBS) की शुरुआत के बाद। उस समय हर विधानसभा क्षेत्र से किसी भी पांच मतदान केंद्रों की वीवीपीएटी पर्चियों की अनिवार्य गिनती की जाती थी। नए नियम के अनुसार अब पोस्टल बैलेट की गिनती ईवीएम की गिनती से 30 मिनट पहले शुरू होती है लेकिन इसे ईवीएम से पहले पूरा करना जरूरी नहीं है। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
इलेक्शन रिजल्ट से पहले विपक्षी नेताओं ने चुनाव आयोग से मांग उठाई कि पहले पोस्टल बैलट की गिनती की जाए और यह काम पूरा होने के बाद ही ईवीएम के वोट गिनना शुरू किया जाना चाहिए। असल में यह मांग इस वजह से करनी पड़ी, क्योंकि चुनाव आयोग ने 2019 में मतगणना से संबंधित नियम में एक बदलाव कर दिया था। आयोग ने कहा है कि मतगणना से पहले राजनीतिक दलों ने आयोग से जो भी मांग किए और मुद्दे उठाए, उन सबका समाधान कर दिया गया है।
पिछले कुछ सालों से यह सवाल बार-बार उठाया जा रहा है कि वीवीपैट की सभी पर्चियों को ना गिनकर केवल पांच पोलिंग बूथ की वीवीपैट पर्चियों को ही क्यों गिना जाता है? चुनाव आयोग ने इसका जवाब सुप्रीम कोर्ट में दायर एक दस्तावेज में दिया था। दरअसल, साल 2018 में चुनाव आयोग ने भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) से “गणितीय रूप से सही, सांख्यिकीय रूप से ठोस और व्यावहारिक रूप से पर्याप्त” एक सैंपल साइज की मांग की ताकि EVM द्वारा डाले गए वोटों के साथ VVPAT पर्चियों की ऑडिट की जा सके।
फरवरी 2018 में चुनाव आयोग ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से किसी एक मतदान केंद्र पर VVPAT पर्चियों की गिनती का आदेश दिया था। अप्रैल 2019 में TDP नेता चंद्रबाबू नायडू द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इसे बढ़ाकर पांच मतदान केंद्रों तक कर दिया गया था। संबंधित निर्वाचन अधिकारी लॉटरी के माध्यम से पांच मतदान केंद्रों का चयन करते हैं, और इसके लिए उम्मीदवारों/उनके एजेंटों को बुलाया जाता है। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
पिछले सालों में महिलाओं की वोटर और प्रत्याशी के रूप में चुनाव में हिस्सेदारी बढ़ी है पर यह प्रगति इतनी धीमी है कि भारत अब भी कई बड़े देशों से इस मामले में पीछे है। महिला वोटर्स की संख्या में तो इजाफा हुआ है पर कैंडीडेट और सांसदों के तौर पर उनकी संख्या अभी भी बहुत कम है। आंकड़ों की अगर बात करें त 1962 के चुनाव में भारत में 42% महिला वोटर्स थीं वहीं 2019 में यह संख्या 48.2% थी। वहीं, 1962 में 3.2% महिला उम्मीदवार थीं जिनकी संख्या 2019 के चुनाव में बढ़कर 9% हो गयी। अगर सांसदों की बात की जाये तो 1962 में 6.3% महिला सांसद थीं वहीं 2019 में यह संख्या 14.4% थी। 1996 से 2019 तक पिछले 7 लोकसभा चुनावों की बात की जाये तो किसी भी बड़े राजनीतिक दल ने 10% से ज्यादा महिला उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया। कांग्रेस ने जहां 10 में से 1 महिला को टिकट दिया, वहीं बीजेपी ने 20 में से 1 महिला को टिकट दिया। पांच बड़ी पार्टियों ने कुल मिलाकर 8.5% महिलाओं को टिकट दिया। पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें
आजादी के बाद संविधान निर्माताओं ने चुनाव के मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने फैसला लिया कि वयस्कों को मताधिकार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों का आधार होना चाहिए।
इस दौरान संविधान सभा सचिवालय ने 1947 में एक ड्राफ्ट मतदाता सूची तैयार करना शुरू कर दिया। ऑर्निट शानी ने अपनी किताब, ‘हाउ इंडिया बिकेम डेमोक्रेटिक’ में लिखा है, “विभाजन की गंभीर त्रासदी के बाद मताधिकार के आधार पर मतदाता सूची का ड्राफ्ट तैयार करना, अंततः भारत की 49% आबादी का नामांकन करना, जिनमें से अधिकांश गरीब और अशिक्षित थे, इसके लिए एक समृद्ध राजनीतिक कल्पना की आवश्यकता है।”
1950 में, चुनाव आयोग (EC) ने संविधान सभा सचिवालय द्वारा किया जाने वाला काम अपने हाथ में ले लिया। कानून पारित करने, राज्यों की चुनाव तैयारियों और बिहार में बाढ़ के कारण पहले चुनाव में देरी हुई। उस साल नवंबर में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने संसद के सदस्यों को सूचित किया कि आम चुनाव नवंबर-दिसंबर 1951 में होंगे।
