बिहार में लोकसभा चुनाव को लेकर अलग अलग मुद्दे हैं। लोग तरह तरह की बातों को लेकर चर्चा कर रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस बीपी मंडल के गांव की हकीकत जानने पहुंचा। मधेपुरा शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर पूर्णिया-सहरसा राजमार्ग से दाईं ओर मुड़ते ही रेलवे लाइन पार करते ही टिन की छत वाले कई कच्चे मकान बने हैं। मुरहो गांव का नाम है और इसके अंत में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल) का स्मारक है, जो मंडल आयोग की रिपोर्ट के लिए प्रसिद्ध हैं।

जानें मंडल के गांव की हकीकत

मंडल स्मारक से बमुश्किल 100 मीटर की दूरी पर मुसहर टोले के एक कोने में एक मिट्टी की झोपड़ी है, जहां इस क्षेत्र के पहले सांसद किराय मुसहर के पोते रहते हैं। बिहार के सीएम और जनता दल (यूनाइटेड) के सुप्रीमो नीतीश कुमार पिछले साल जारी राज्य के जाति सर्वेक्षण का लाभ उठा रहे हैं और कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के नारे के तहत देश भर में जाति जनगणना का वादा कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि विकास ने मंडल के गांव को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है। देश की सामाजिक न्याय की राजनीति के प्रमुख पथप्रदर्शक मंडल की दूरदृष्टि ने समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक दिवंगत मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार सहित कई समाजवादी नेताओं को जन्म दिया। मंडल का पैतृक घर और उनके नाम पर बना स्मारक मुरहो गांव में बनी कुछ कंक्रीट संरचनाओं में से एक है।

‘लालू और नीतीश ने खत्म किया सामाजिक न्याय आंदोलन’

अपनी झोपड़ी से सटे बांस के पेड़ों की छाया में बैठे मुसहर के पोते जीवछ ऋषिदेव कहते हैं, “सामाजिक न्याय आंदोलन को लालू और नीतीश ने खत्म कर दिया क्योंकि दोनों ने अपनी-अपनी जातियों को फायदा पहुंचाना शुरू कर दिया। दलितों को दोनों से कुछ नहीं मिला। वे सबसे गरीब बने हुए हैं।”

उनके भाई उमेश (जो स्थानीय स्तर पर राजनीति में भी सक्रिय हैं और मधेपुरा के पूर्व सांसद पप्पू यादव के साथ काम करते हैं) कहते हैं, “हमारे अपने घर को देखिए। क्या आपने किसी पूर्व सांसद का ऐसा घर देखा है? महादलितों की इतनी चर्चा के बाद, यहां महादलितों की क्या हालत है? गांव की हालत देखिए।”

महादलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले किराई मुसहर ने 1952 में भागलपुर लोकसभा क्षेत्र (तब मधेपुरा इसका हिस्सा था) से सोशलिस्ट पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए जीत हासिल की थी।

भागलपुर से मधेपुरा संसदीय क्षेत्र बनने के बाद मंडल ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) के टिकट पर 1967 का चुनाव जीता। वे 1968 में कुछ समय के लिए बिहार के सीएम बने। यादव समुदाय से आने वाले मंडल बाद में दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष बने और 1978-80 के दौरान मंडल आयोग की रिपोर्ट लिखी, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए सरकारी नौकरियों में कोटा की सिफारिश की गई थी।

मंडल पैनल की रिपोर्ट

मंडल पैनल की रिपोर्ट को वी पी सिंह सरकार ने 1990 में लागू किया था, जिसके कारण बिहार और उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ। यादवों के वर्चस्व वाले मधेपुरा में 7 मई को तीसरे चरण में मतदान होने जा रहा है। मुरहो के कई निवासियों के लिए, उनके गांव और अन्य स्थानों से उत्पन्न सामाजिक न्याय का शानदार इतिहास अपना बहुत अधिक महत्व खो चुका है। इस गांव में मुख्य रूप से यादवों का घर है। इसके अन्य समुदायों में कुर्मी और पचपनिया जैसे कुछ अन्य ओबीसी समूह और महादलित शामिल हैं। 70 वर्षीय दिनेश यादव कहते हैं, ”मेरी पूरी जिंदगी एक फूस की छत के नीचे गुजरी है। अब मैं क्या उम्मीद कर सकता हूं। मैं अब बस अपने दिन गिन रहा हूं।” 25 वर्षीय चंदन यादव टिन शेड के नीचे मवेशियों का चारा काट रहे हैं। वहां एक कोने में एक सफेद बोर्ड पड़ा है जिस पर गणित के समीकरण लिखे हुए हैं और एक बिस्तर पर खुली किताबें बिखरी हुई हैं। बी.एड. की डिग्री और आईटीआई सर्टिफिकेट होने के बावजूद चंदन पिछले कुछ सालों से नौकरी की तलाश कर रहे हैं, लेकिन असफल रहे हैं। खाली समय में वह गांव में स्कूली बच्चों को फीस लेकर पढ़ाते हैं। वह सभी पार्टियों से नाराज हैं।

चंदन ने कहा, “असली मुद्दों पर कोई बात नहीं कर रहा है। असली मुद्दा बेरोजगारी है। बुजुर्गों ने मुझे टीचिंग में जाने के लिए बीए, बीएड करने को कहा। मैंने किया, लेकिन नौकरी नहीं मिली। फिर उन्होंने कहा कि रेलवे में जाने के लिए आईटीआई करो। मैंने किया, फिर भी किस्मत नहीं मिली। अब मैंने चपरासी की पोस्ट के लिए फॉर्म भरा है, लेकिन एक साल से कोई परीक्षा नहीं हुई है।”

चंदन पूछते हैं, “सभी पार्टियां सामाजिक न्याय की बात करती हैं, लेकिन असली सामाजिक न्याय आर्थिक सशक्तिकरण होगा। परिवार में एक आदमी को नौकरी मिल जाती है और पूरा परिवार ऊपर उठ जाता है। मुझे ट्यूशन क्यों पढ़ाना पड़ता है? ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकारी स्कूल में ठीक से पढ़ाई नहीं हो रही है। शिक्षा के बिना क्या सामाजिक न्याय हासिल किया जा सकता है?”

पचपनिया (ओबीसी बनिया) समुदाय से ताल्लुक रखने वाले गांव के दुकानदार नरेंद्र दास कहते हैं कि कोई भी राजनेता गांव में नहीं आता है और सालों से यहां कोई विकास नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, “जल नल योजना अच्छी गुणवत्ता वाला पानी नहीं देती है। गांव में नल तो लग गए हैं, लेकिन नालियां नहीं हैं। यहां कोई कूड़ा उठाने भी नहीं आता। पीएम आवास योजना भी यहां नहीं पहुंची है।हालांकि, कुछ कट्टर आरजेडी समर्थक हैं, जो दावा करते हैं कि पिछले कुछ सालों में गांव में सड़कें बनी हैं और किसानों को उनकी मक्के की फसल का अच्छा दाम मिल रहा है।”

बीपी मंडल के पोते और आरजेडी नेता आनंद मंडल कहते हैं, “सामाजिक न्याय केवल एक विचारधारा नहीं है। यह एक आंदोलन भी है। दुर्भाग्य से इस आंदोलन से जो लोग उठे, वे या तो अपने परिवार को बढ़ावा देने या सत्ता हथियाने में लग गए। लेकिन जब तक सामाजिक-आर्थिक असमानता है, समाजवाद जीवित रहेगा।” मधेपुरा में 2019 के चुनावों में जेडी(यू) के दिनेश चंद्र यादव ने आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले शरद यादव को 3 लाख से अधिक मतों से हराया था। इस बार निवर्तमान सांसद दिनेश का मुकाबला आरजेडी के चंद्रदीप यादव से है, जो पूर्व सांसद रमेंद्र कुमार रवि के पुत्र हैं। यह सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी इंडिया गठबंधन के बीच दिलचस्प मुकाबला हो सकता है।