Lok Sabha Election 2019 में एयर स्ट्राइक से पहले तक किसानों की दुर्दशा का मुद्दा देशभर में शीर्ष पर था। मोदी सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, इस वादे पर कितनी खरी उतर पाई है यह अभी भी बहस का विषय है। हालांकि थोड़े-थोड़े अंतराल में होने वाले किसानों के आंदोलन, विरोध प्रदर्शन और सिलसिलेवार खुदकुशी की घटनाएं बताती हैं कि अन्नदाता का हाल कैसा है। मध्य प्रदेश के पश्चिमी छोर पर स्थित मंदसौर में 6 जून 2017 को पुलिस की गोलियों से पांच किसानों की मौत के बाद आंदोलन उग्र हो गया था। इस आंदोलन ने प्रदेश में लंबे समय से जमी तत्कालीन शिवराज सरकार को भी परेशान कर दिया। लगातार कई साल कृषि कर्मण अवॉर्ड जीतने वाले मध्य प्रदेश में किसानों के साथ हुआ यह कांड इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हो गया था। अब लोकसभा चुनाव में यहां का हाल कैसा है? किसान आंदोलन में हुए घटनाक्रम को लेकर लोगों की राय क्या है? क्या हैं यहां के किसानों की प्रमुख चुनौतियां? युवाओं की मांगें क्या हैं? पढ़िए ग्राउंड रिपोर्ट में…

किसान आंदोलन की घटना पर लोगों की रायः किसान आंदोलन को लेकर यहां के लोगों की राय बंटी हुई है। शहरी क्षेत्र के ज्यादातर लोग इसे पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित घटना बताते हैं। वहीं ग्रामीण इलाकों में अधिकांश लोग साफ-साफ कह रहे हैं कि वो दुर्घटना राजनीति से प्रेरित तो नहीं थी लेकिन साथ ही वो पुलिस या शिवराज सरकार से नाराजगी की बात से भी इनकार करते हैं।

‘आंदोलन का मकसद पूरा नहीं हुआ’: हंगामे में बरखेड़ा पंथ के रहने वाले 20 वर्षीय अभिषेक की भी जान चली गई थी। अभिषेक के बड़े भाई मधुसूदन कहते हैं कि शिवराज सरकार ने मुआवजे के पैसे तो दे दिए लेकिन जिन मांगों को लेकर आंदोलन हुआ था, उन पर कुछ काम नहीं हुआ। उनका कहना है, ‘फसल की लागत ज्यादा है और कमाई कम। मजदूरी महंगी पड़ रही है। शिवराज सरकार के समय काम अच्छा था समय से काम हो जाता था। अब कमल नाथ सरकार में बोनस मिलने का भरोसा नहीं है। बोनस को लेकर टालमटोल हो रही है।’ मधुसूदन के मुताबिक कमल नाथ सरकार के कामकाज से लोग संतुष्ट नहीं है इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा। उन्होंने कहा कि किसानों के छोटे-छोटे कर्ज ही माफ किए हैं। ज्यादातर किसानों का पूरा कर्ज माफ नहीं हुआ है। मोदी सरकार की योजनाओं के बारे में पूछने पर वे बताते हैं, ‘आयुष्मान भारत की थोड़ी-थोड़ी जानकारी है। प्रधानमंत्री आवास योजना का फॉर्म उन्होंने दो साल से भर रखा है, अब तक न लिस्ट में नाम आया न जानकारी मिली।’

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किसान आंदोलन में मारे गए बरखेड़ा पंथ के अभिषेक पाटीदार के भाई मधुसूदन (फोटोः Pritesh Gupta)

 

रोजगार पर भारी राष्ट्रवादः मंदसौर के माली चौक क्षेत्र में रहने वाले अरुण माली रोजगार की समस्या होने का जिक्र तो करते हैं लेकिन इसके साथ-साथ वे प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी का समर्थन भी कर रहे हैं। बीजेपी प्रत्याशी के प्रचार को लेकर राय रखते हुए अरुण कहते हैं कि शहरी क्षेत्र में उन्हें एक-दो बार ही देखा गया है, उनका ज्यादातर फोकस ग्रामीण इलाकों के मतदाताओं पर है। फाइनेंस सेक्टर में काम करने वाले अरुण और तरुण खामोरा नोटबंदी के चलते एनपीए बढ़ने की बात कह रहे हैं। उनका कहना है कि लोगों ने नोटबंदी के दौरान एक-दो से लेकर छह महीनों तक पेमेंट नहीं किया। अभी भी पूरी तरह से रिकवरी नहीं हो पाई है। हालांकि जीएसटी को लेकर अरुण कहते हैं कि शुरुआती दिनों में थोड़ा असर पड़ा था लेकिन अब ऐसी कोई दिक्कत नहीं है। वहीं कृषि उपज मंडी के पास रेस्टोरेंट और मोबाइल शॉप के संचालक हर्ष अग्रवाल कहते हैं चुनावी माहौल तो ठंडा है लेकिन पिछली बार की तरह इस बार भी वोट नरेंद्र मोदी के नाम पर दिए जाएंगे।

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पांच सालों में क्या उम्मीदेंः अरुण के साथ बैठे उनके दोस्त आदित्य मेड़तवाल का नजरिया थोड़ा अलग है। मंदसौर से दूर गुजरात के वडोदरा में एक फार्मा कंपनी में जॉब करने वाले आदित्य मेड़तवाल कहते हैं, ‘सरकार का फोकस सिर्फ मनरेगा जैसी योजनाओं में गड्ढे खुदवाने पर नहीं होना चाहिए। कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि मनरेगा के तहत गड्ढे खुदवाए जाते हैं, फिर उनको भरवाया जाता है। अब इन सबसे आगे निकलकर टेक्नोलॉजी और उसके हिसाब से लोगों की स्किल्स डेवलप करने की जरूरत है। जॉब्स इतनी कम भी नहीं हैं, जरूरत लोगों को उनके हिसाब से तैयार करने की है। सरकार को लोगों की मूलभूत जरूरतें पूरी करनी चाहिए, ताकि वे इनसे ऊपर निकलकर सोचें और देश को आगे बढ़ाने में मदद कर सकें।’

फाइनेंस सेक्टर में काम करने वाले अरुण (फोटो-1) और फार्मा कंपनी में आईटी इंप्लॉयी आदित्य मेड़तवाल (फोटोः Pritesh Gupta)

बिजली पर क्या बोले मंदसौर के लोगः मंदसौर जिला मुख्यालय से करीब 18 किमी दूर स्थित गांव ढाबला में खेती के साथ-साथ किराना दुकान चलाने वाले मोहनलाल गुप्ता कहते हैं कि किसानों की स्थिति खराब है और आर्थिक हालत खस्ता होने के चलते वे रोजमर्रा की जिंदगी भी कर्ज लेकर जीने को मजबूर हैं। हालांकि वे सरकार बदलने को समस्या का हल नहीं मानते। बिजली को लेकर शिकायत करते हुए वे अपनी स्थानीय भाषा में कहते हैं, ‘शिवराज के टेम बराबर लाइटां आती थीं, अबे कोई टेम नी है कदी आवे, कदी जावे, भगवान जाणे।’ यानी सरकार बदलते ही बिजली की स्थिति पुराने दौर (दिग्विजय सरकार) में जाती दिख रही है। शिवराज सरकार में बराबर बिजली मिलती थी। वहीं मधुसूदन कहते हैं कमल नाथ सरकार ने बिजली बिल में राहत जरूर दी है, अब छह महीने के लिए 1050 रुपए देने पड़ रहे हैं। बिजली की स्थिति शिवराज सरकार के मुकाबले कमजोर है।

Mohanlal Gupta
गांव ढाबला के रहने वाले मोहनलाल गुप्ता (फोटोः Pritesh Gupta)

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दूसरी बार आमने-सामने हैं दोनों प्रत्याशीः बीजेपी ने यहां से अपने मौजूदा सांसद सुधीर गुप्ता को ही दोबारा मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस की तरफ से पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन को ही मौका मिला है। दोनों नेता लगातार दूसरी बार आमने-सामने हैं।
सुधीर गुप्ता, बीजेपीः मोदी लहर में पहली बार चुनाव जीते गुप्ता संसद में सबसे ज्यादा सवाल पूछने वाले और सर्वश्रेष्ठ 24 सांसदों में शुमार किए गए थे। सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत गुप्ता द्वारा गोद लिया गांव बालागुढ़ा भी देश के शीर्ष-15 में 10वां स्थान मिला था। पिछली बार की तरह इस बार भी पार्टी के एक धड़े ने यहां उनकी उम्मीदवारी का अंदर ही अंदर विरोध तो किया। लेकिन इसका ज्यादा असर पड़ता नहीं दिख रहा।

मीनाक्षी नटराजन, कांग्रेसः मीनाक्षी इस सीट से तीसरी बार चुनाव लड़ रही हैं। 2009 में जब उन्हें पांडेय के खिलाफ उतारा गया था तो स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने उनका कड़ा विरोध किया था। हालांकि इसके बावजूद वे बीजेपी के गढ़ को ढहाने में कामयाब रहीं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की करीबी मानी जाने वालीं नटराजन ने इस जीत के बाद स्थानीय कार्यकर्ताओं में भी अपनी पकड़ खासी मजबूत कर ली। इस बार भी कांग्रेस में कई दावेदार थे लेकिन कांग्रेस ने उन पर ही भरोसा जताया। 2014 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

संसदीय चुनावों में भी बीजेपी का दबदबाः 1951 से अब तक मंदसौर लोकसभा सीट पर कांग्रेस सिर्फ 5 बार जीत पाई है। डॉक्टर लक्ष्मीनारायण पांडेय यहां से 8 बार (बीजेपी, भारतीय जनसंघ और जनता दल) सांसद बने। कांग्रेस को यहां से 1951 (कैलाश नाथ काटजू), 1956 (माणकभाई अग्रवाल), 1980 (भंवरलाल राजमल नाहटा), 1984 (बालकवि बैरागी) और 2009 (मीनाक्षी नटराजन) में जीत मिली थी। 2014 में बीजेपी के सुधीर गुप्ता ने यहां से जीत दर्ज की थी।

विधानसभा चुनाव में शिवराज का एकतरफा समर्थनः पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को राज्य में करीबी शिकस्त का सामना करना पड़ा। हालांकि किसानों आंदोलन की तमाम कड़वाहट के बावजूद मंदसौर संसदीय क्षेत्र में आने वाली विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने जबर्दस्त प्रदर्शन किया। यहां की 8 में से सिर्फ एक सीट (सुवासरा) कांग्रेस के खाते में गई, वह भी सिर्फ 350 वोटों के अंतर से। वहीं जावरा, मंदसौर, मल्हारगढ़, भानपुरा, नीमच, जावद और मनासा पर बीजेपी ने जीत दर्ज कर ली। यहां के हालात को देखते हुए शिवराज सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद यहां जनसभाएं की थीं। विधानसभा चुनाव में शिवराज को 8 में से 7 सीटें देने वाले मंदसौर संसदीय क्षेत्र में अब मोदी सरकार की परीक्षा है।

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