Lok Sabha Election 2019 के लिए मतदान की शुरुआत में अब चंद घंटे बचे हैं। इस बार गांधी परिवार का गढ़ अमेठी हर बार की तुलना में ज्यादा चर्चा में है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की इस सीट पर एक बार फिर बीजेपी से स्मृति ईरानी मुकाबले में उतरी हैं। वे गुरुवार (11 अप्रैल) को अपना नामांकन भी दाखिल करेंगी। पिछले चुनावों में उन्होंने हार का अंतर कम करके राहुल गांधी के लिए थोड़ी ही सही लेकिन चुनौती तो पेश कर ही दी है। भले ही अमेठी गांधी परिवार का गढ़ है लेकिन इस बार यहां की सियासी फिजाओं में बदलाव तो है। जानिए क्या है यहां का इतिहास, वर्तमान और संभावित भविष्य…
गांधी परिवार के गढ़ में कब-कब हारी कांग्रेसः अमेठी लंबे समय से गांधी परिवार का गढ़ रहा है। यहां संजय गांधी (1980), राजीव गांधी (1981, 1984, 1989, 1991) और सोनिया गांधी (1999) के बाद अब राहुल गांधी (2004, 2009, 2014) भी सांसद रहे हैं। लेकिन कई चुनाव ऐसे भी आए जब कांग्रेस को इस सीट पर जीत नहीं मिल पाई। 1967 में बनी इस सीट पर 1977 में भारतीय लोक दल (बाद में जनता दल) के रवींद्र प्रताप सिंह ने संजय गांधी को हरा दिया था। इसके बाद 1998 में भी संजय सिंह ने बीजेपी के टिकट पर यह सीट जीती थी। 1984 में तो यहां से खुद गांधी परिवार की बहू मेनका गांधी ने ही राजीव गांधी के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था, हालांकि उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था।
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राजीव गांधी का सीट से जुड़ावः अमेठी के लोग आज भी राजीव गांधी और संजय गांधी के नाम पर कांग्रेस को वोट देते हैं। राजीव गांधी ने इस शहर को अपने संसदीय कार्यकाल में कई सौगातें दी थीं। राजीव चार बार यहां से सांसद चुने गए थे। 1981 में अपने पहले चुनाव में राजीव ने इस सीट की उस समय की सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी। तब उनकी जीत का अंतर 2,37,766 था। उनके बाद 2009 में उन्हीं के बेटे राहुल गांधी ने उनका रिकॉर्ड तोड़कर अमेठी की सबसे बड़ी जीत हासिल की थी। 1984 में राजीव यहीं से जीतकर वे देश के प्रधानमंत्री बने थे।
…तो राहुल के बाद प्रियंका लड़ सकती हैं अमेठी सेः राहुल गांधी पहली बार दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार उन्होंने अमेठी के साथ-साथ केरल की वायनाड सीट से भी नामांकन दाखिल किया है। अमेठी के लोगों और सियासी गलियारों में चर्चा है कि राहुल अगर दोनों सीटों पर जीते तो वे अमेठी सीट छोड़ देंगे। अगर ऐसा होता है तो हाल ही में सक्रिय राजनीति में एंट्री कर पार्टी की महासचिव बनाई गईं प्रियंका गांधी वाड्रा अमेठी से चुनावी करियर की शुरुआत भी कर सकती है।
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गांधी परिवार के लिए ‘एंट्री गेट’ रहा है अमेठीः गांधी परिवार के सबसे ज्यादा सदस्यों ने अपना चुनावी डेब्यू भी अमेठी से किया और पहली जीत भी अमेठी से ही जीत दर्ज की है। इनमें संजय गांधी (पहला चुनाव 1977, पहली जीत 1980), राजीव गांधी (1981), सोनिया गांधी (1999) और राहुल गांधी (2004) शामिल हैं। ऐसे में यदि अब प्रियंका को भी यहीं से शुरुआत का मौका मिलता है तो वे गांधी परिवार से ताल्लुक रखने वालीं ऐसी पांचवीं सदस्य होंगी। इस लिहाज से अमेठी को गांधी परिवार के सदस्यों के लिए संसद में एंट्री का गेट कहा जा सकता है।
स्मृति ईरानी की सक्रियता से मुकाबला दिलचस्पः पिछले लोकसभा चुनाव में करीब एक लाख मतों के अंतर से हार के बावजूद स्मृति ने अमेठी का साथ नहीं छोड़ा। पिछले पांच सालों में उन्होंने यहां लगातार दौरे किए और लोगों के साथ जुड़ी रहीं। अमेठी से कुंभ मेले में जाने के लिए मुफ्तों बसों की व्यवस्था, सरकारी योजनाओं का लाभ अमेठी वालों को दिलाने की कोशिश, अमेठी के लिए कई योजनाएं स्वीकृत करवाने, कुम्हारों को चाक बांटना, खिलाड़ियों को वॉलीबॉल किट देना और उनके लिए प्रतियोगिताएं करवाना। ये ऐसे काम हैं जो लगातार उन्होंने अमेठी से खुद को जोड़े रखने के लिए किए हैं। ऐसे में उन्हें पिछली बार की तुलना में काफी मजबूत माना जा रहा है।