कर्नाटक विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने की पूरी कोशिश कर रही हैं और मतदाताओं को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। हाई-वोल्टेज चुनाव प्रचार से लेकर राजनीतिक आमना सामना तक और दिलचस्प उम्मीदवारों के चयन तक, चुनावी मौसम रोमांचक होता जा रहा है।

कर्नाटक में 10 मई को एक ही चरण में मतदान होगा और मतगणना 13 मई को होगी। कर्नाटक में कुल 224 सीटें हैं। संख्याबल के हिसाब से यह देश की सातवीं सबसे बड़ी विधान सभा है। भले ही राजनीतिक दल तीन प्रमुख समुदायों: लिंगायत, कुरुबा और वोक्कालिगा का समर्थन पाने के लिए सभी प्रयास कर रहे हैं, लेकिन मुस्लिम मतदाताओं के महत्व को नजरअंदाज करना कठिन होगा। इस चुनावी लड़ाई में मुस्लिम वोट महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

मुस्लिम वोट कर्नाटक चुनाव को कैसे प्रभावित कर सकते हैं? जानिए

कर्नाटक में मुसलमानों की आबादी 13% से अधिक है। राज्य के 224 निर्वाचन क्षेत्रों में से 40 से अधिक में यह समुदाय महत्वपूर्ण है। 2018 के चुनावों में, कांग्रेस और जद (एस) ने 17 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। हालाँकि भाजपा ने 2018 में मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा। कर्नाटक में 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 80 सीटें जीतीं, भाजपा को 104 सीटें मिलीं, जबकि जद (एस) को 37 सीटें मिलीं।

जबकि मुसलमान कर्नाटक के सभी जिलों में पाए जाते हैं। लेकिन मुसलमानों की उत्तरी कर्नाटक में विशेष रूप से गुलबर्गा, बीदर, बीजापुर, रायचूर और धारवाड़ में मजबूत उपस्थिति है। कालाबुरागी उत्तर, पुलकेशीनगर, शिवाजीनगर, जयनगर और पद्मनाभनगर तुमकुर, चामराजपेट भी मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र हैं।

सभी का मानना ​​है कि अल्पसंख्यक समुदाय के वोट कम से कम विधानसभा चुनाव में सीधे कांग्रेस पार्टी को जाते हैं। इस बार कांग्रेस और जद (एस) दोनों को भरोसा है कि बड़ी मुस्लिम आबादी वाले निर्वाचन क्षेत्रों में उनका पलड़ा भारी रहेगा।

हालांकि बीजेपी नेताओं का मानना ​​है कि बेंगलुरू में ‘धर्मनिरपेक्ष’ पार्टियों के पक्ष में अल्पसंख्यकों का एक होना वास्तविकता से अधिक एक मिथक है। कांग्रेस एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसके विधानसभा में 8 अल्पसंख्यक विधायक हैं। इनमें सात मुस्लिम और एक ईसाई शामिल हैं।

SDPI ने कांग्रेस-जेडीएस की बढ़ाई चिंता

कांग्रेस और जद (एस) भी चिंतित हैं कि सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI), एक मुस्लिम समर्थक संगठन अल्पसंख्यक वोटों को विभाजित करेगा, जो अंत में भाजपा को फायदा करेगा।

एसडीपीआई इस बार 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर बड़े पैमाने पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की योजना बना रही है। स्थानीय निकायों में इसकी उपस्थिति के साथ (इसमें मंगलुरु महानगर पालिका में दो सदस्य, शिवमोग्गा महानगर पालिका और बीबीएमपी में एक-एक सदस्य हैं, इसके अलावा मदिकेरी, उल्लाल चामराजनगर, बंटवाल, कौपू और शाहपुर की नगर पालिका परिषदों में सदस्य हैं), एसडीपीआई उम्मीद कर रहा है विधानसभा में भी उसका खाता खुलेगा।

कर्नाटक में ऐसी 65 सीटें हैं, जहां मुस्लिम मतदाता 20% से अधिक हैं और लगभग 45 सीटें हैं जहां अल्पसंख्यक वोट 10% से 20% हैं। 2018 में लगभग 50 सीटों पर 5,000 वोटों से कम हार जीत का अंतर था। ओबीसी श्रेणी में मुस्लिम समुदाय के लिए 4% कोटा खत्म करना और राजनीतिक रूप से दो सबसे शक्तिशाली समुदायों – लिंगायत और वोक्कालिगा – के लिए इसे बढ़ाना आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनावों में प्रमुख मुद्दों में से एक होना तय माना जा रहा है।