लोकसभा चुनाव के लिए अधिसूचना अगले 1 महीने में जारी हो सकती है। लेकिन इससे पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति हर पल बदल रही है। उत्तर प्रदेश में भाजपा गठबंधन मजबूत स्थिति में है। वहीं लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी इंडिया गठबंधन का कुनबा बढ़ाने में जुटे हैं। पिछले कुछ हफ्तों से अखिलेश यादव को बड़े झटके लगे हैं।
राजभर, मौर्या और जयंत छोड़ चुके हैं साथ
करीब डेढ़ साल पहले ओमप्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव का साथ छोड़ा था। उसके बाद अब लंबे समय से सपा के साथ गठबंधन में रही आरएलडी ने भी साथ छोड़ दिया है। आरएलडी मुखिया जयंत चौधरी ने एनडीए के साथ जाने का ऐलान किया है। जबकि कुछ दिन पहले ही समाजवादी पार्टी के बड़े नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।
लगातार मिल रहे झटके से अखिलेश यादव टेंशन में थे। वह अब यूपी में सपा गठबंधन का कुनबा बढ़ाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। ऐसे में अखिलेश यादव ने अपने पुराने सहयोगी रहे जनसत्ता दल के अध्यक्ष और कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को याद किया है।
राजभर, जयंत चौधरी और स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने के बाद अखिलेश यादव और नुकसान नहीं रह सकते। ऐसे में वह उन छोटे दलों या एक क्षेत्र में खास दबदबा रखने वालों को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं, जो लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के परिणामों पर असर डाल सके। राजा भैया उनमें बड़ा नाम है। 2019 के लोकसभा चुनाव में राजा भैया ने कौशांबी लोकसभा सीट से जनसत्ता दल लोकतांत्रिक का उम्मीदवार शैलेंद्र कुमार को बनाया था। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी और बसपा का गठबंधन था। बीजेपी को इस सीट पर 3,83,009 वोट मिले थे। जबकि बीएसपी और सपा गठबंधन के प्रत्याशी इंद्रजीत सरोज को 3,44,287 वोट मिले थे। वहीं राजा भैया के उम्मीदवार को 1,56,406 वोट मिले थे। इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार विनोद सोनकर की जीत करीब 39,000 वोटों से हुई थी। ऐसे में अगर राजा भैया उस दौरान अखिलेश के साथ रहे होते तो यहां पर सपा गठबंधन को बड़ी जीत हासिल होती।
कुंडा सीट से 7 बार से विधायक हैं राजा भैया
कुंडा और बाबागंज विधानसभा सीट पर राजा भैया का दबदबा है। कुंडा विधानसभा सीट से राजा भैया खुद सात बार से विधायक हैं। तो वहीं बाबागंज विधानसभा सीट से विनोद सरोज विधायक हैं। विनोद सरोज राजा भैया के खास हैं। दोनों विधानसभा सीट कौशांबी लोकसभा क्षेत्र में पड़ती है। ऐसे में अगर राजा भैया अकेले चुनाव लड़ते हैं या फिर भाजपा के साथ जाते हैं, तो सीधा बीजेपी को फायदा होगा। वहीं अगर राजा भैया सपा के साथ आते हैं तो अखिलेश को उम्मीद है कि यह सीट वह निकाल लेंगे।
अखिलेश को है राजा की जरूरत
कुंडा प्रतापगढ़ जिले में पड़ता है। ऐसे में राजा भैया का प्रभाव सिर्फ कौशांबी लोकसभा क्षेत्र पर ही नहीं बल्कि प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर भी है। 2019 के चुनाव में प्रतापगढ़ लोकसभा सीट से बीजेपी को एक लाख से अधिक वोटों से जीत हुई थी। लेकिन राजा भैया के उम्मीदवार अक्षय प्रताप सिंह को भी करीब 47,000 वोट मिले थे। यह वोट राजा भैया के ही नाम पर मिले थे। माना जा रहा है कि अगर राजा भैया साथ आएंगे, तो प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर भी उनका वोट सपा गठबंधन को ट्रांसफर होगा। ऐसे में राजा भैया को अखिलेश यूं ही नहीं बुला रहे हैं बल्कि दो लोकसभा सीट का भी सवाल है।
नाराज चल रहे सपा विधायक
अखिलेश के लिए एक दिक्कत यह भी है कि सिराथू से विधायक पल्लवी पटेल और मंझरपुर से सपा विधायक इंद्रजीत सरोज भी कथित तौर पर पार्टी से नाराज चल रहे हैं। ऐसे में अखिलेश राजा को साथ लेकर संभावित डैमेज को कंट्रोल करना चाहते हैं। दोनों नेता कौशाम्बी लोकसभा क्षेत्र से आते हैं।
जब 2022 का विधानसभा चुनाव हुआ था, उस दौरान जयंत चौधरी, स्वामी प्रसाद मौर्य और ओमप्रकाश राजभर अखिलेश यादव के साथ थे। इसका फायदा भी सपा गठबंधन को विधानसभा चुनाव में मिला था। लेकिन अब तीनों ही नेता साथ छोड़ चुके हैं। जयंत चौधरी पश्चिमी यूपी में अच्छा प्रभाव रखते हैं और जाट वोटों पर उनकी पकड़ है। तो वहीं स्वामी प्रसाद मौर्य ओबीसी वर्ग से आते हैं जबकि ओम प्रकाश राजभर भी ओबीसी नेता है और राजभर वोटों पर उनकी अच्छी पकड़ है और उसका फायदा भी सपा को हुआ था।