भाजपा अनुसूचित जाति की रहनुमाई के दावे बेशक करे पर यह तथ्य है कि इस पार्टी ने 1980 में अपनी स्थापना से आज तक देश के किसी भी सूबे में अनुसूचित जाति का एक भी मुख्यमंत्री नहीं बनाया। इस समय भी देश के एक दर्जन से ज्यादा राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। लेकिन अनुसूचित जाति का कहीं कोई मुख्यमंत्री नहीं। और तो और देश के किसी भी राज्य में पार्टी का एक भी अध्यक्ष अनुसूचित जाति का नहीं है।
पार्टी ने 2016 में एक बार विजय सांपला को जरूर पंजाब का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था, पर तब पंजाब में भाजपा का शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन था। वैसे अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे तो भाजपा ने अनुसूचित जाति के बंगारू लक्ष्मण को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था। लेकिन एक साल के भीतर ही उन्हें पद से हटा दिया था।
कांग्रेस पर दलित संगठनों ने दलितों की उपेक्षा के आरोप भले लगाए हों लेकिन इस पार्टी ने 1960 में ही अनुसूचित जाति के दामोदरन संजीवैया को आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया था। जो करीब 26 महीने तक इस पद पर रहे। इसके बाद 1968 से 1972 के दौरान अनुसूचित जाति के भोला पासवान शास्त्री को कांग्रेस ने तीन बार बिहार का मुख्यमंत्री बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि वह सत्ता में दलितों को सम्मानजनक हिस्सेदारी देने में यकीन रखती है।
महाराष्ट्र जैसे बडे राज्य में भी कांग्रेस ने 2003 में अनुसूचित जाति के सुशील कुमार शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया था। उन्हें केंद्र की यूपीए सरकार में गृहमंत्री भी बनाया गया। गृहमंत्री तो कांग्रेस ने अनुसूचित जाति के पंजाब के बूटा सिंह को भी बनाया था। इतना ही नहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर 2021 में अनुसूचित जाति के चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया था।
राजस्थान में भी कांग्रेस ने 1980 में खटीक जाति के जगन्नाथ पहाड़िया को मुख्यमंत्री बनाया था। बाद में पहाड़िया को हरियाणा और बिहार का राज्यपाल भी बनाया। छत्तीसगढ़ का पहला मुख्यमंत्री भी 2000 में कांग्रेस ने अनुसूचित जाति के अजित जोगी को ही बनाया था। जो लगातार तीन साल तक इस पद पर रहे। उसके बाद यहां तीन चुनावों में लगातार भाजपा जीती।
लेकिन उसने राजपूत रमन सिंह को ही 15 साल तक मुख्यमंत्री बनाए रखा। कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी अनुसूचित जाति के हैं। वे इससे पहले लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता भी रहे हैं। मनमोहन सिंह की सरकार में वे श्रम मंत्री थे। अतीत पर नजर डालें तो बाबू जगजीवन राम कांग्रेस में अहम पदों पर रहे और केंद्र सरकार में भी महत्त्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। उनकी बेटी मीरा कुमार को भी कांग्रेस ने मनमोहन सरकार के दौरान लोकसभा अध्यक्ष बनाया था।
जनता पार्टी की साख भी इस कसौटी पर भाजपा से बेहतर रही है। अनुसूचित जाति के रामसुंदर दास, कर्पूरी ठाकुर के बाद 1979 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। पर 1980 में जनता पार्टी हार गई तो जगन्नाथ मिश्र कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री बने। जनता दल (एकी) के मुखिया नीतीश कुमार ने भी बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर 2014 में अनुसूचित जाति के जीतनराम मांझी को जब सरकार की कमान सौंपी तो सब हैरत में पड़ गए थे।
अनुसूचित जाति के नेताओं को भाजपा में अपेक्षित हिस्सेदारी नहीं मिली
करीब 40 साल तक भाजपा में सक्रिय रहे दलित नेता संघप्रिय गौतम ने भी माना कि अनुसूचित जाति के नेताओं को भाजपा में अपेक्षित हिस्सेदारी नहीं मिली। केंद्र हो या राज्यों की सरकारें, अनुसूचित जाति के मंत्रियों के हिस्से में सामाजिक अधिकारिता या अनुसूचित जाति कल्याण जैसा मामूली विभाग ही आता है। अनुसूचित जाति के मंत्रियों को भाजपा की सरकारों में कभी अहम विभाग नहीं मिलते।
यह बात अलग है कि भाजपा ने ही बसपा प्रमुख मायावती को जरूर अपने समर्थन से 1995, 1997 और 2002 में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था। गौतम के मुताबिक भाजपा ने अनुसूचित जाति के रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया। लेकिन गौतम मानते हैं कि इस मामले में भी पहल कांग्रेस के खाते में ही दर्ज है। जिसने केआर नारायणन को देश का पहला दलित राष्ट्रपति बनाया था।